डरने का फायदा!

स्वतंत्रता दिवस के दिन जब लाल किला से हमरे परधानमंतरी अपनी कमजोर आवाज में पाकिस्तान को सुधर जाने की 'कड़क' चेतावनी दे रहे थे, तब मारे डर के हम अपने घर में दुबके हुए थे। यहां तक कि हम तभियो बाहर नहीं निकले, जबकि पूरी दुनिया पतंग उड़ाने के लिए अपनी छतों पर चढ़ आई। का है कि सुबह में हमको बस में फिट बम का खतरा सताता रहा, तो दिन में पतंग में फिट बम का। कमबख्त बम नहीं हो गया, टैक्स हो गया- कहीं न कहीं से सिर पर गिरेगा ही!

खैर, चैन से हम बैठ नहीं पाए। मन ने कोसा, 'तुम जैसे 'नौजवान' पर ही तो देश को नाज है। कम से कम देश की खातिर को झंडा फहराने निकलो।' अभी साहस बांधकर हम घर से निकलबे किए थे कि पता चला डर के मारे परधानमंतरी जी अपनी 'शाही' बीएमडब्ल्यू कार छोड़कर 'टुच्चा' टाटा सफारी में झंडा फहराने लाल किला पहुंचे। फिर तो मत पूछिए, सारा साहस न जाने कहां घुस गया। आखिर जिस आदमी की सुरक्षा में पूरा फोर्स लगा हो, जब ऊ अपनी कार में चलने का साहस नहीं कर पाता, तो हमरे जैसन गरीब की औकात का है?

मैंने इस डर को निकलाने का एक रास्ता सोचा कि सरकार को नौजवानों को मिलिटरी टरेनिंग देनी चाहिए, इससे उनका डर कम हो जाएगा। लेकिन इससे हमको संतुष्टि नहीं मिली। अब देखिए न भारतीय किरकेटया टीम को। अभी श्रीलंका जाने से पहले पूरी टीम सेना के हवाले थी, ताकि उनमें कुछ साहस-वाहस आए। भज्जी से लेकर तेंडुलकर तक का पेपर में फौजी डरेस में बड़का-बड़का फोटुआ छपा, लेकिन का हुआ? २२ गज लंबा पीच के ई शेर सब एकदम कमजोर मेमना निकला! डर के मारे कोलंबो में १५ अगस्त पर तिरंगा फहराने एको ठो नहीं जा सका, जबकि होटल से भारतीय दूतावास मात्र सौ मीटर दूर है। अब आप ही बताइए ऐसन मिलिटरी टरेनिंग का कौनो फायदा है?

फिर हमरे मन में आया कि हर मोहल्ला में एक-एक ठो थाना खोल दिया जाए, तो लोगों का डर कम हो जाएगा। लेकिन इससे भी हमरे मन का डर दूर नहीं हुआ। का है कि डर के मारे खुदे दिल्ली पुलिस की हालत खस्ता हो रही है, तो उ दूसरे की सुरक्षा कैसी करेगी? आतंकियों के बम का डर उसको एतना सता रहा है कि आईटीओ वाले पुलिस हेडक्वॉर्टर के खिड़की तक को प्लाईवुड से आजकल सील किया जा रहा है।

खैर, एतना कुछ सोचते-सोचते हम लाल किला नहीं गए, लेकिन इसका घाटा परधानमंतरी को गया। का है कि डर के मारे में हम लाल किला उनका भाषण सुनने जा नहीं सके औरो बिजली कटौती के कारण टीवी पर उनका भाषण आया नहीं। भाषण नहीं सुनने से उनकी एको ठो 'स्वर्णिम' योजना की जानकारी हमको हो नहीं पाई औरो अब आगे हो भी नहीं पाएगी, काहे कि हमको पूरा विशवास है कि उनमें से एक ठो को लागू तो होना है नहीं। अब आप ही बताइए, अगले २६ जनवरी तक हम उनकी पार्टी को काहे भोट काहे देंगे?

लेकिन आप आश्चर्य करेंगे कि उन दिन आतंकवादियों से एतना डरने औरो बिजली के नहीं रहने के बावजूद हम अपने को भाग्यशाली समझता हूं। का है कि अगर हम डरते नहीं या फिर बिजली जाती नहीं, तो परधानमंतरी जी के भाषण से तनिये देर के लिए सही, हम उल्लू तो बन ही न जाते! अब तो झूठे आश्वासनों से हम सरपट बच गया हूं। जय हो बिजली महरानी की! जय हो आतंकवादी महराज की!!

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
डर के मारे किटकिटाते दांत इतने बढ़िया बजे है तो साहस भरी हुंकार कैसी होगी। मेरा भारत महान आप नौजवानों के कारण ही तो बना है। बधाई स्वीकार करें।
ई-छाया ने कहा…
बिहारी बाबू, गीता बांचिये काम पर चलिये, डरने से का होगा भाई

जो होना है वो होना है, फिर किस बात का रोना है।

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