एकता बड़े काम की चीज

अनेकता में एकता भारत की विशेषता है, बचपन में गुरुजी ने इस पर बहुते लेख लिखवाया था। हालांकि अकल आने पर ऐसन लगा जैसे गुरुजी को देशभक्ति से मतलब कम था, ऊ अपने सरकारी होने का ऋण बेसी उतार रहे थे। हम अभियो तक ऐसने सोच रखते थे, लेकिन भगवान भला करे बंगाल सरकार का, जिसने हमरी सोच बदल कर रख दी। अब हमको फिर से अनेकता में एकता दिखने लगी है।

दरअसल, 'सेक्युलर' बंगाल सरकार ने जब से तसलीमा नसरीन को 'कम्यूनल' राजस्थान सरकार के संरक्षण में भेजा है, हम सोच में पड़ गया हूं। हमरे समझ में ई नहीं आ रहा रहा कि कॉमरेडों ने संघियों पर एतना विश्वास करना कब से शुरू कर दिया कि उसके भरोसे तसलीमा नसरीन को छोड़ दिया! ई तो भाजपाई सरकार को सेक्युलर होने का परमाण पत्र देने जैसी बात है, यानी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसन बात! मानवाधिकार औरो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर जिस महिला को आप सालों से सुरक्षा-संरक्षा देते आ रहे हैं, एके झटका में आप उससे पल्ला कैसे झाड़ सकते हैं?

हमने यही बात अपने कामरेड मित्र से पूछी। ऊ बोलने लगे, 'मत जाइए, सेक्युलर औरो कम्युनल जैसन बात पर। ई सब तुच्छ बात है। असल बात तो ई है कि हमरे इस कदम से अनेकता में एकता को बढ़ावा मिला है। जो हमरे राज्य के लिए समस्या है, ऊ अगर दूसरे राज्य के लिए समस्या नहीं है, तो ऐसन आदान-परदान तो चलते रहना चाहिए। अब देखिए कि दिल्ली के उत्पाती बंदरों को मध्य परदेश जैसन राज्य सब अपने यहां शरण दे रहा है कि नहीं?'

हमने कहा कि बात तो आपकी ठीक है, लेकिन आप इहो तो देखिए कि इससे दिल्ली में बंदरों की संख्या कम नहीं हो रही है! जेतना बंदर दूसरे राज्य में भेजा जाता है, उससे बेसी यहां पैदा हो जाता है या कहीं से आ जाता है। ई ग्लोबल विलेज है, न तो आप किसी को पैदा होने से रोक सकते हैं औरो न ही किसी को अपने राज्य आने से। तो काहे नहीं आप भी दिल्ली की मुखमंतरी जैसन फैल जाते हैं? ऊ पतरकारों से कहती हैं कि बंदरों का हमरे पास कौनो इलाज नहीं है, आपके पास है, तो बताइए? अब आप ही बताइए, जनता का पैसा खाकर अगर ऊ कुछो नहीं सोच सकतीं, तो पतरकार लोग अपना खाकर केतना सोचेंगे?

तो बेहतर ई रहेगा कि आप भी खुलेआम कह दीजिए कि ई झूठो-मूठो के मानवाधिकार औरो व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कुछो नहीं रखा है, जैसने दूसरी पारटी है, वैसने हम भी हूं। सब समस्या ही खतम हो जाएगी। देश का आदमी आपसे संरक्षण मांगने नहीं आएगा, तसलीमा जैसन विदेशी को कौन पूछे!
ऊ बोले, आप बात तो ठीक कह रहे हैं, लेकिन दिक्कत ई है कि लोकतंत्र में सीधे हाथ से घी नहीं निकलता। अगर हमहूं यही कहूंगा कि हम कांगरेस या भाजपाई जैसन हूं, तो हमको वोट के देगा? आप ई तो देखिए कि भाजपाई कांगरेस व हमरे द्वारा पैदा की गई समस्या पर राजनीति करते हैं औरो हम भाजपाई व कांगरेस द्वारा पैदा की गई समस्याओं पर! अब जब हम राजनीति में जमने के लिए एक दूसरे को एतना मदद करते हैं, तो अपनी समस्या राजस्थान के हवाले नहीं कर सकते?

सचमुच अपने देश में अनेकता में एकता है!

टिप्पणियाँ

आप झुट्ठे न परेशान हो रहे हैं जी. असल बात तो ई है जे संघी लोग एक नंबर का सामंतवादी होता है. ए मामले में कामरेड लोग अपने पूरे व्यवहार में ए-1 नम्बर का सामंतवादी होता है. दूनो में अंतर कुछ नहीं, सिर्फ दूकान का नाम अलग-अलग है.
rajivlochan ने कहा…
tuhari baaten padh bahut aananda aaya bhaiyya.

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