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फ़रवरी, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक एक कर सब बिक गए!

लीजिए, सब बिक गए। का तेंडुलकर, का धोनी, का जयसूर्या, का पॉन्टिंग...सबकी औकात दो टके की हो गई। सरे बाजार सब नीलाम हो गए। कोयो शाहरुख का करमचारी बन गया, तो कोयो प्रीति जिंटा का गुलाम, कोयो विजय माल्या के बोतल में बंद हो गया, तो कोयो रिलायंस के राजस्व का हिस्सा बन गया। जो जेतना बड़ा तीसमार खां था, ओ ओतना महंगा बिका, तो सचिन के साथ 'गेम' हो गया। इस बेचारे 'भगवान' की औकात धोनी तो छोडि़ए, साइमंड्स से भी कम हो गई। इस नीलामी में सबसे बेसी दुख हमको बेचारे हरभजन सिंह को लेकर हुआ। बेचारे ने जिस मंकी को 'मंकी' कहा औरो जिसके कारण मीडिया को देश का सम्मान दांव पर 'लगने' लगा था, उस साइमंड्स की कीमत भज्जी से बेसी लगाई गई। कहां भज्जी मात्र 3.40 करोड़ में बिके, तो कहां आस्ट्रेलियाई किरकेटर साइमंड्स 5.40 करोड़ में! अब हमको ई नहीं पता कि किरकेटिया कमाई में देश का सम्मान कहां चला गया? वैसे, हमरे समझ में इहो नहीं आ रहा कि साइमंड्स का सोचकर खेलने आ रहे हैं? अगर तेंडुलकर औरो हरभजन जैसन लोग उनको गंवार लगते हैं, तो यहां तो उनको गंवारों की टोली मिलेगी। हालांकि हमको अभियो शक है कि स

जो दुनिया लूटे, महबूबा उसे लूटे

ई गजब का रिवाज है। जो व्यक्ति दुनिया को लूटता है या फिर जिसको दुनिया नहीं लूट पाती, ऊ 'बेचारे' महबूबा के हाथों बुरी तरह लुटते हैं औरो अजीब देखिए कि लुट-लुटकर भी खुश रहते हैं। यानी महबूबा दुनिया की सबसे बड़ी लुटेरिन होती हैं या फिर आप इहो कह सकते हैं कि ऊ 'भाइयों' की 'भाई' होती हैं। इसलिए भैय्या, हम तो यही कहेंगे कि बढ़िया तो ई होगा कि आप दुनिये मत लूटिए औरो लूटना ही है, तो महबूबा मत 'पालिए'। पाप ही करना है, तो अपने लिए कीजिए न, हाड़-मांस के एक लोथड़े के लिए पाप काहे करना! लुटेरों को महबूबा कैसे लूटती है, इसका बहुते उदाहरण है। 'डी' कंपनी से दुनिया थर्राती है। मुंबई से लेकर दुबई तक लोग दाऊद इबराहिम के नाम से कांपते हैं औरो हफ्ता चुका-चुकाकर दिन काटते हैं। उसी 'बेचारे' दाऊद का जेतना माल उसकी महबूबा मंदाकिनी ने उड़ाया, ओतना किसी ने नहीं! दाऊदे का चेलबा है अबू सलेम। गुरु गुड़ है, तो चेला भी प्यार-मोहब्बत के फेर में फंसकर कम चीनी नहीं बना। मोनिका बेदी के प्यार के कोल्हू में बेचारे की इतनी पेराई हुई कि कट्टा के बल पर कमाया करोड़ों रुपैया कब उसक

दारू के फेर में किडनी

आजकल हर जगह किडनी का शोर है। कोयो किडनी बेचने वालों को गरिया रहा है, तो कोयो किडनी खरीदने वालों को। कोयो किडनी दान की वकालत कर रहा है, तो कोयो कानून आसान करने की बात, लेकिन दिक्कत ई है कि असली समस्या पर किसी का ध्याने नहीं जा रहा। दरअसल, किडनी सुनकर भले ही आपको अपना जिगर या जिगर का टुकड़ा याद आता हो, लेकिन हमरी स्थिति ई है कि किडनी का नाम सुनते ही हमको दारू की याद आती है औरो किडनी खराब होने की बात सुनकर दारूबाज की। दिलचस्प बात इहो कि दारू या दारूबाज याद आते ही हमको गांधीजी याद आ जाते हैं औरो जब गांधीजी याद आते हैं, तो याद आ जाती है अपने देश की सरकार। हमरे खयाल से किडनी चोरी कांडों के लिए सबसे बेसी जिम्मेदार सरकार ही है। काहे कि अपना रेभेन्यू बढ़ाने के लिए सरकार जमकर दारू बेचती है औरो उसके बेचे गए दारू को पी-पीकर ही लोग अपना किडनी खराब कर लेते हैं। जैसे जैसे सरकार की तिजोरी भरती जाती है, किडनी खराब लोगों की संख्या भी देश में बढ़ती जाती है। अब सरकार या तो दारू बेच ले या फिर किडनी चोरों से समाज को बचा ले! अभिये गांधी जयंती पर दिल्ली सरकार ने एक ठो विज्ञापन निकाला कि गांधी जी दारू के खिलाफ