संदेश

मार्च, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गम और भी हैं जमाने में किरकेट के सिवा

भारत किरकेटिया विश्व कप से पहले ही राउंड में बाहर हुआ नहीं कि लगा जैसन देश में करोड़ों एबोरशन एक साथ हो गया हो। हर कोयो स्यापा मना रहा है, जैसे यह विश्व कप न होकर विश्व युद्ध हो औरो बांग्लादेश से हारकर देश अब बस गुलामी के जंजीर में जकड़ा जाने वाला हो। सच बताऊं, तो किरकेट के लिए लोगों को एतना परेशान देखकर हम कन्फ्यूजिया गया हूं कि ई भारत ही है या हम किसी दूसरे मुलुक में आ गया हूं! हमरे कन्फ्यूजन की वजह ई है कि एके दिन में हमको अपना देश पलटता हुआ लग रहा है। आज किरकेटरों को पानी पी-पीकर गरियाने वाला ई मुलुक, वही मुलुक है, जिसकी जनता सैकड़ों निकम्मे-नाकारे नेताओं को दशकों से झेलती आ रही है, लेकिन उफ तक नहीं कहती! दो रोटी को तरशने वाला आदमी इसी देश में नेता बनते ही करोड़पति-अरबपति बन जाता है, लेकिन जनता उसको भरष्ट नहीं मानती औरो चुनावों में भारी बहुमत से जिताती रहती है। लालूओं, मुलायमों, बादलों, चौटालों, मायावतियों, जयललिताओं ... के इस देश में नेताओं की काली कमाई पर सिर्फ उनके विरोधियों को ऐतराज रहता है, समर्थकों को नहीं! यह वही देश है, जिसकी जनता धरना-परदरशन करना भूल गई है। पांच रुपया किलो

जस्ट कूल ड्यूड, कुछ पॉजिटिव तो ढूंढ

भारत विश्व कप में पिट गया और तमाम लोग परेशान हो गए। रात भर जगने का सिला आखिर टीम इंडिया ने क्या दिया-- टीम का बंडल बंध गया। खैर, आप परेशान मत होइए और नकारात्मक सोच से बचने के लिए कुछ पॉजिटिव सोचिए। आखिर हर चीज का एक सकारात्मक पक्ष तो होता ही है ना। मान लीजिए कि जो होना था, वह हो गया। आइए, हम यहां आपको इस सदमे से उबरने में मददगार कुछ पॉजिटिव बातें बताते हैं। धूप में भी पकते हैं बाल जी हां, अगर आप युवा हैं, तो मान लीजिए कि इस हार ने आपको यही मैसेज दिया है। और क्रिकेट के 'अंध भक्त' होने के कारण आपको इस बात में पूरा विश्वास भी करना चाहिए कि बाल अनुभव बढ़ने के साथ ही नहीं पकते! ऐसे में अगर अब आपको कोई यह कहकर घुड़की दे कि 'मैंने अपने बाल धूप में नहीं पकाए हैं और मेरे अनुभव के सामने तुम कहीं नहीं ठहरते', तो अब आपको उसके प्रभामंडल से घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि बांग्लादेश और आयरलैंड का उदाहरण उसके सामने रखने की जरूरत है। सच मानिए, भारत की हार ने आपको एक बड़ा उदाहरण दिया है, यह साबित करने का कि अनुभव ही सब कुछ नहीं होता, आज के बच्चे 'सीखने' से पहले ही काफी कुछ सीख चु

आप तो झूठ्ठे सेंटिया गए...

हो गया न, जिसका हमको डर था। हम पहिलिये न कहते थे वूल्मर जी आपसे कि बेकार का मगजमारी करने यहां मत आइए, लेकिन आप थे कि मानने को तैयारे नहीं थे। पता नहीं आपको ई कैसे लगता था कि पाकिस्तान में प्रतिभा की कमी नहीं है, बस तराशने वाला चाहिए, ऊ विश्वविजेता बन जाएगा। अरे भाई साहब, ई भारत- पाकिस्तान है, इनको भगवानो नहीं सुधार सकता, फिर आप तो साधारण इनसान थे। विश्वास नहीं था, तो अपने बिरादर चैपल भैय्या से पूछ लेते कि प्रोफेशनलिज्म दिखाना इस इलाके में केतना खतरनाक होता है। दू साल हो गए, बेचारे चैपल बाबू एको ठो युवा प्रतिभा नहीं तलाश सके। औरो भारत अभियो उसी सचिन, द्रविड़, गांगुली व कुंबले के भरोसे विश्व कप जीतने की फिराक में है, जिनको उन्होंने बूढ़ा घोषित कर दिया था। आपको का लगता है कि भारत में प्रतिभा की कमी है? जी नहीं, प्रतिभा की यहां कौनो कमी नहीं है, दिक्कत बस ई है कि यहां उसको पनपने नहीं दिया जाता। प्रतिभा यहां कुछ लोगों की बपौती होती है औरो उनके बिना भी किसी का काम चल जाए, यह उनको गंवारा नहीं। अब देखिए न उस नेताजी को, राजनीति के मैदान में उसका अभी दूध का दांतों नहीं टूटा है, लेकिन दावा ई है क

मंतरी जी के 'गरीब'

हमरे लिए ई सवाल हमेशा से भेजा घुमाने वाला रहा है कि आखिर गरीब कौन है? बच्चा में जब ई सवाल हम मास्टर जी से पूछते थे, तो रवि मुखिया, सुकन तांती सब का नाम गिनाकर ऊ परिभाषा सोचने का काम हम पर छोड़ देते थे। पराइमरी एजुकेशन में इससे बेसी नहीं बताया गया। हाई इस्कूल में हमको बताया गया कि जिसको दू जून रोटी खाने को मिल जाए, समझो ऊ गरीब नहीं है। मतलब तभियो हमको गरीब की परिभाषा नहीं बताई गई। कॉलेज में शिक्षा व्यवस्था उदार हुई, तो हमको बताया गया कि यूएन एक निश्चित डॉलर से कम की रोजाना आमदनी वालों को गरीब मानता है। अब डॉलर की बात तो हमरी समझ में कभियो नहीं आई, लेकिन सरकार ने भारतीय टका में गरीब 'न' होने की जो 'औकात' बताई थी, ऊ हमरे आसपास के सौ लोगों में से दस की भी नहीं थी। खैर, अब भला हो उस नेताजी का, जिन्होंने गरीब रथ चलाकर हमको गरीबी की परिभाषा समझाने में मदद की है! गरीब रथ मंतरी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है औरो सरकारी प्रोजेक्ट है, तो जाहिर है ई रेल भी गरीब की सरकारी परिभाषा पर ही बनी होगी। तो आइए, हम गरीब रथ को देखकर भारत के गरीबों को समझने की कोशिश करते हैं। बॉगी में घुसते ही जो गर

बॉलिवुड़िया होली का लाइव प्रसारण

बॉलिवुड की होली खास होती है, आखिर वह सपनों की दुनिया जो ठहरी। तो लीजिए, आज हम आपको वहीं लिए चलते हैं, जहां होली का हुड़दंग शबाब पर है। यह लाइव टेलिकास्ट सिर्फ आपके लिए है, बिल्कुल एक्सक्लूसिव। चूंकि इसमें कुछ एडल्ट कंटेट भी हैं, इसलिए इसे सेंसर बोर्ड ने 'ए' सर्टिफिकेट जारी किया है। जाहिर है, जिन लड़कों की मूंछें नहीं उगी हैं या जिन लड़कियों ने अब तक गुड़ियों के साथ सोना बंद नहीं किया है, उनके लिए यह लेख निषिद्ध है: आज समय हमारे पास भी कम है, इसलिए बिना कोई बाउंड्री बांधे हम आपको सीधे मुंबई लिए चलते हैं। यह झुग्गियों के बीच में गगन चूमती जो इमारतें आपको दिखाई दे रही हैं, इन्हें देखकर आप यह तो समझ ही गए होंगे कि यह अपने देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई ही है। दरअसल, तमाम राजधानियों में झुग्गियों की बहुतायत उस धर्म-पताका की तरह होती है, जो हमेशा यह भान कराती रहती है कि यहां लोगों के पास समानता का अधिकार है। आखिर किस देश में गरीब अमीरों के बराबर में अपनी झुग्गियां बना पाते हैं? खैर, इस बार बॉलिवुड से जुड़ी चार होली हो रही है- अमिताभ की होली, शाहरुख की होली, बॉलिवुड के वंचितों से बाजा

बजट संग होली: एतना डेडली कंबिनेशन!

बजट के चार दिन बाद होली! यानी उल्लास के महापरब से तुरंत पहले 440 वाट का झटका... ई तो सरासर नाइंसाफी है भाई! हमरे समझ में ई नहीं आ रहा कि बैठकर होली खेलने की पलानिंग करूं या बजट से नून-तेल केतना महंगा-सस्ता हो गया, इसका विश्लेषण। सही बताऊं, तो वित्त मंत्री से सहूलियतों का जेतना अरमान संजोया था, सब बजट भाषण के एक घंटा में चकनाचूर हो गया। अब अगर होली मनाने की चिंता करता हूं, तो बजट पर चिंतन छोड़ना होगा औरो बजट की चिंता करूं, तो होली की तो वाट लगनी तय है! हमरे खयाल से बजट औरो होली एतना करीब नहीं हो, इसके बारे में धरम के ठेकेदारों औरो देश के नीति नियंताओं को गंभीरता से सोचना चाहिए। अब का है कि होली जैसन परब का अगर बजट के चक्कर में गुड़-गोबर हो जाए, तो ठीक नहीं। बजट में तो अब कौनो रस रहा नहीं, होली को काहे नीरस कर रहे हो भाई? साल में एक बार तो होली आती है, उसका भी मजा नहीं लेने दोगे, तो एतना टेंशन में तो आदमी मरिये जाएगा। वैसे, नीति-नियंता बजट की तारीख शायद ही बदल पाए, काहे कि इससे देश का बहुते कुछ जुड़ा होता है, लेकिन हमरे खयाल से धरम के ठेकेदार इस मामले में बहुत कुछ कर सकते हैं। आखिर डेट आ