Wednesday, June 21, 2006

भविष्य का बेड़ा गर्क

आजकल सब कुछ भविष्य के भरोसे ही हो रहा है। जिससे मिलिए, वही आपको भविष्य के लिए चिंतित दिखेगा। कोयो भविष्य की चिंता बेचकर कमा रहा है, तो कोयो भविष्य की चिंता खरीदकर गंवा रहा है। लेकिन इस सब के बीच गड़बड़ ई है कि भविष्य के फेर में सब अपना बेड़ा गर्क करवा रहा है।

अब दिल्लिये को लीजिए। यहां के लोग सब भविष्य से बहुते डरते हैं। भविष्य की चिंता उनकी जेब काट रही है। यहां जमीन है नहीं, लेकिन बिल्डर सब कागज पर घर बनाकर खूब बेच रहा है औरो लोग सब खरीदियो रहा है! यहां आपको ऐसन-ऐसन कालोनी मिलेगी, जहां पीने के लिए पानी औरो रोशनी के लिए बिजली नहीं है, लेकिन घर का दाम सुनिएगा, तो गश आ जाएगा! घर देखने जाइए, तो बिल्डर आपको पहले ठंडा पिलाएगा, फिर बताएगा कि कैसे दो साल में इसका दाम दुगुना होने वाला है। दूर का ढोल सबको सुहाना लगता है, सो बिल्डर का बताया भविष्य का सपना आपको एतना मीठा लगेगा कि जेब खाली करके या बैंक से लोन लेके या फिर दोस्तों से गाली खाके भी आप उस भविष्य को खरीद ही लीजिएगा। लेकिन आपको झटका लगेगा तब, जब वहां आपको मुफ्त में रहने वाला किराएदार भी नहीं मिलेगा!

भविष्य की इस चिंता ने कैसन बेड़ा गर्क किया है, इसका उदाहरण डीडीए के इंजीनियर हैं। बेचारों ने लोगों को भविष्य बेचकर खूब पैसा कमाया। जेतना डीडीए की कालोनी उ बसा नहीं पाए, उससे बेसी पराइवेट कालोनी बसने दी। बेटा-बेटा का भविष्य एकदम झक्कास हो औरो खुद आलीशान घर में रहे, इस फेर में बेचारों ने डीडीए का भट्ठा बैठा दिया, लेकिन बेचारे ई भूल गए कि वर्तमान ने पर भविष्य का पिलर खड़ा होता है। अब डीडीए के पास काम है ये नहीं है। जब काम नहीं होगा, तो इंजीनियर को रखकर सरकार का चटनी बनाएगी? सो जल्दिये नौकरी छूटने के भय से बेचारा सब की अब हालत खराब हो गई है। अब पता नहीं इसको भविष्य का आबाद होना कहा जाए या बर्बाद होना?

दिक्कत इहो है कि लोग भविष्य के लिए नाक के सीध में सोचते हैं, उसके दाएं-बाएं नहीं। बजट के बाद कार महंगी हो जाएगी, इसकी चिंता में फरवरी में ही लोग कार खरीद लेते हैं, लेकिन पार्किंग के लिए पड़ोसी के बीच सालों भर झगड़ा होगा, इसकी चिंता कोयो नहीं करता। कुछ साल बाद बाल-बच्चे होंगे, परिवार बड़ा हो जाएगा, इसलिए लोग बड़ी गाड़ी खरीदते हैं, लेकिन उ पेटरोल बेसी पीएगी औरो पार्किंग के लिए बेसी जगह छेकेगी, इसकी चिंता कोयो नहीं करता।

वैसे, आप कह सकते हैं कि भविष्य बेड़ा गर्क भी इसलिए करवाता है काहे कि भविष्य की चिंता क्षणभंगुर होती है। अब देखिए न, जब तक किसी के पास गाड़ी खरीदने लायक पैसा नहीं होता, सड़क पर गाडि़यों की संख्या को उ भविष्य के परयावरण और परिवहन व्यवस्था के लिए नुकसानदेह मानता है। लेकिन गाड़ी खरीदने लायक पैसा होते ही उसे अपने भविष्य की चिंता सताने लगती है औरो नई गाड़ी की चमक में जाम की चिंता खतम हो जाती है। अब आप ही बताइए, जब तक ई मानसिकता रहेगी, बेड़ा गर्क तो होगा ही, चाहे उ आपका हो या किसी और का!

'सेल' में सरकार

लीजिए, दिल्ली सरकार अब पियोर व्यापारी हो गई है। का है कि जैसे दुकानदार सब होली-दीवाली पर सेल लगाता है न, वैसने दिल्ली सरकारो अब सेल लगाने लगी है। पहले चीजों का दाम ८० परसेंट बढ़ाकर स्टीकर चिपका दीजिए औरो फिर बड़का बैनर पर अप टू ७० परसेंट सेल लिखकर टांग दीजिए। जनता खुश! केतना सस्ता चीज मिल रहा। अब गिरहकट ने कैसे जेब काट लिया ई पता किसको चलता है!

तो भइया दिल्ली सरकार ने भी तेल के खेल में व्यापारी वाला बुद्धि लगाया। उसको पता था कि पेटरोल-डीजल का दाम बढ़ते ही लोग हाय-हाय करेंगे, सो ऐसा करो कि दाम एतना बढ़ा दो कि जब लोग हाय-हाय करने लगेंगे, तो थोड़ा दाम घटाकर वाहवाही लूट सको। अब सरकार का धंधा देखिए कि पेटरोल का चार टका दाम बढ़ा के ६७ पैसा का सेल लगा दिया, तो डीजल का दो टका दाम बढ़ा के २२ पैसा का सेल लगा दिया। और अब उ सीना तान रही है कि देखो, हम जनता का केतना चिंता करते हैं।

वैसे, इस सरकारी रवैया के लिए जनतो कम दोषी नहीं है। अब का है कि तनिये ठो छूट देख के आप समान लूटने के लिए टूट पडि़एगा, तो आपको कोयो बेकूफ बना सकता है। हमको तो इस तेल में दोसरे खेल नजर आता है। हमरे खयाल से सरकार ने अब पेटरोल कंपनी को छोड़कर पेटरोल पंप मालिक सब से दोस्ती कर ली है। तभी तो दाम घटा के ऐसा रखा है कि पेटरोल पंप मालिक को फायदा हो। अब का है कि आप जाइएगा एक लीटर पेटरोल भराने, जिसका दाम आपको देना पड़ेगा ४६ टका ८४ पैसा। आप इसके लिए काउंटर पर ४७ टका दीजिएगा, तो आप ही बताइए कि आपको १६ पैसा लौटा के कौन देगा? अगर दिन भर में हजार लीटर पेटरोल बिकता है, तो तनि पेटरोल पंप मालिक के फायदा का हिसाब लगा के देखिए। एैसने हाल डीजल का है, जिसका दाम ३२ टका २५ पैसा रखा गया है। अब आप जब जाइएगा पेटरोल भराने, तो पंप मालिक आपको ७५ पैसा लौटाने के लिए २५ पैसा तो अपने घर में बनाएगा नहीं। मतलब आपको कम से कम २५ पैसा औरो बेसी से बेसी ७५ पैसा के घाटे की तो पूरी गैरंटी है। अब आप लगा लीजिए, पूरा हिसाब औरो दाद दीजिए सरकारी व्यापार बुद्धि को!

वैसे, सही बताऊं, तो हमको सरकार दिनोंदिन एकदम खांटी व्यापारी बनती नजर आ रही है। पिछले दिनों हमने पढ़ा कि सात दिन के अंदर हाउस टैक्स जमा कीजिए औरो १५ परसेंट का आकर्षक छूट पाइए। अब इसको भले सरकारी अफसर टैक्स जमा करने के लिए प्रोत्साहन का तरीका मानता हो, लेकिन हमको तो ई पियोर सेल लगता है। अरे भाई, एक तो कानून ही नहीं बनाइए औरो अगर बनाते हैं, तो उसका पालन करवाइए। उसमें काहे का छूट। जब तेल कमपनी सब को आप घाटा में नहीं भेजना चाहते, जनता को तेल के नाम पर सब्सिडी नहीं देना चाहते, तो टैक्स में सब्सिडी काहे का। हमरे खयाल से तो जनता से सब टैक्स वसूलिए औरो पैसा को तेल-पूल के घाटा से बाहर आने में लगाइए। लेकिन जनता को प्लीज जनता को ठगिए मत। का है कि हाउस टैक्स का उनको पांच टका छोड़कर आप उससे ३५ टका किलो परवल खरीदवाते हैं तो लानत है आप पर।