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महिलाओं के सखा बनें पुरुष

प्रिय भक्तो, पिछले कुछ सालों से जन्माष्टमी के दिन मैं बड़ा व्याकुल महसूस करता हूं। मुझे पता चला कि पृथ्वी लोक पर सबसे ज्यादा पॉपुलर भगवानों में मैं शीर्ष पर हूं, लेकिन सच पूछो तो अपनी पॉपुलैरिटी को लेकर मैं खुद ही कन्फ्यूज्ड हूं। इतना पॉपुलर होने का मतलब है कि लोग मेरे विचारों से प्रभावित होंगे। उन्हें लगता होगा कि मैं उनका आदर्श हूं, लेकिन समझ नहीं आ रहा कि अगर मैं घर-घर पूजा जाता हूं, सबसे पॉपुलर हूं और आदर्श भी, तो फिर मेरे विचारों की, मेरे आदर्शों की धज्जियां वहां कैसे उड़ रही हैं! मुझसे जुड़ा कोई भी धर्मग्रंथ, कोई भी पुराण देख लीजिए, महिलाओं को मैंने सबसे ज्यादा मान दिया है। जिस समय पुरुषों का राज था, वे समाज को लीड करते थे, तब भी मैंने गोपियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल किया। उन्हें पुरुषों के बराबर दर्जा दिया। जहां कृष्ण हैं, वहां गोपियां हैं। बिना गोपियों के कृष्ण की कथा कभी पूरी नहीं होती। यह महिला सशक्तिकरण का मेरा तरीका था। मैंने उन्हें घर की चारदीवारी से बाहर निकाला, वे मेरे साथ नि:संकोच आ सकती थीं, रास में शामिल हो सकती थीं। कृष्ण के नाम पर उनके घरवालों ने उन्हें