Thursday, March 29, 2007

गम और भी हैं जमाने में किरकेट के सिवा

भारत किरकेटिया विश्व कप से पहले ही राउंड में बाहर हुआ नहीं कि लगा जैसन देश में करोड़ों एबोरशन एक साथ हो गया हो। हर कोयो स्यापा मना रहा है, जैसे यह विश्व कप न होकर विश्व युद्ध हो औरो बांग्लादेश से हारकर देश अब बस गुलामी के जंजीर में जकड़ा जाने वाला हो। सच बताऊं, तो किरकेट के लिए लोगों को एतना परेशान देखकर हम कन्फ्यूजिया गया हूं कि ई भारत ही है या हम किसी दूसरे मुलुक में आ गया हूं!

हमरे कन्फ्यूजन की वजह ई है कि एके दिन में हमको अपना देश पलटता हुआ लग रहा है। आज किरकेटरों को पानी पी-पीकर गरियाने वाला ई मुलुक, वही मुलुक है, जिसकी जनता सैकड़ों निकम्मे-नाकारे नेताओं को दशकों से झेलती आ रही है, लेकिन उफ तक नहीं कहती! दो रोटी को तरशने वाला आदमी इसी देश में नेता बनते ही करोड़पति-अरबपति बन जाता है, लेकिन जनता उसको भरष्ट नहीं मानती औरो चुनावों में भारी बहुमत से जिताती रहती है। लालूओं, मुलायमों, बादलों, चौटालों, मायावतियों, जयललिताओं ... के इस देश में नेताओं की काली कमाई पर सिर्फ उनके विरोधियों को ऐतराज रहता है, समर्थकों को नहीं!

यह वही देश है, जिसकी जनता धरना-परदरशन करना भूल गई है। पांच रुपया किलो का प्याज पचास रुपया किलो बिकता है, लेकिन लोग विरोध के लिए घर से बाहर नहीं निकलते। निठारी, सिंगुर, नंदीग्राम औरो मंजूनाथ जैसन कांड इसी देश में होते हैं, लेकिन पीड़ितों को छोड़कर कोयो और इसके विरोध के लिए अपनी नींद खराब नहीं करता। यह वही देश है, जहां कम्युनिस्ट तक सत्ता में टिके रहने के लिए पूंजीवादी बन जाते हैं औरो कामरेड पूंजीपति का गुर्गा बनकर भूखी जनता पर गोली चलाते हैं!

अब आप ही बताइए, जब एतना कुछ इसी देश में हो रहा है, तो बेचारे किरकेटरों को काहे निशाना बनाया जाए? जब हम खुद की नाक कटने का गम नहीं मनाते, तो हम ई काहे मान लें कि विश्व कप से बाहर हो जाने से देश की नाक कट गई! जब हम तमाम भरष्ट नेताओं को बार-बार जिताकर लोकसभा औरो विधानसभा में भेजते रहते हैं, तो हमें सहवाग औरो धोनी के टीम में रहने पर काहे आपत्ति होनी चाहिए? जब हम चावल-दाल के सट्टेबाजी पर कौनो आपत्ति नहीं जताते, तो किरकेट के सट्टेबाजी पर हमको काहे आपत्ति होनी चाहिए? जब हमरे देश के तारणहारों को हर समस्या का समाधान विदेश में ही मिलता है, तो बेचारे चैपल को हार के लिए काहे गरियाया जाए? जब हम किरकेट के उन तमाम 'मठाधीशों' से, जिन्होंने जिंदगी में कभी बैट-बॉल नहीं पकड़ा, ई नहीं पूछते कि ऊ बीसीसीआई में क्या कर रहे हैं, तो द्रविड़ औरो तेंदुलकर से हम ई क्यों पूछें कि ऊ टीम में क्या कर रहे हैं?

अब जब देश में एतना कुछ गलत हो रहा है औरो उनसे हमारा-आपका कोयो इमोशन नहीं जुड़ा, तो भला किरकेट से इमोशन जोड़कर क्या कीजिएगा? अगर किरकेट के खेल में नाक कटने से हम-आप इतने परेशान हैं, तो जरा उन चीजों के बारे में भी हमें सोचना चाहिए, जिनसे हमारी नाक रोज कटती है! गरीबी में अव्वल होने से हमरी नाक कटती है, भरष्टाचार में अव्वल होने से हमरी नाक कटती है, किसानों के आत्महत्या से हमरी नाक कटती है औरो न जाने किस-किस से हमरी नाक कटती है, लेकिन हम उनमें से कितने को अपनी 'नाक' का सवाल मानकर धरना -परदरशन करते हैं? और जब हम ये सब नहीं करते, तो भला नसीब के खेल किरकेट को लेकर विरोध परदरशन काहे किया जाए?

Saturday, March 24, 2007

जस्ट कूल ड्यूड, कुछ पॉजिटिव तो ढूंढ

भारत विश्व कप में पिट गया और तमाम लोग परेशान हो गए। रात भर जगने का सिला आखिर टीम इंडिया ने क्या दिया-- टीम का बंडल बंध गया। खैर, आप परेशान मत होइए और नकारात्मक सोच से बचने के लिए कुछ पॉजिटिव सोचिए। आखिर हर चीज का एक सकारात्मक पक्ष तो होता ही है ना। मान लीजिए कि जो होना था, वह हो गया। आइए, हम यहां आपको इस सदमे से उबरने में मददगार कुछ पॉजिटिव बातें बताते हैं।

धूप में भी पकते हैं बाल

जी हां, अगर आप युवा हैं, तो मान लीजिए कि इस हार ने आपको यही मैसेज दिया है। और क्रिकेट के 'अंध भक्त' होने के कारण आपको इस बात में पूरा विश्वास भी करना चाहिए कि बाल अनुभव बढ़ने के साथ ही नहीं पकते! ऐसे में अगर अब आपको कोई यह कहकर घुड़की दे कि 'मैंने अपने बाल धूप में नहीं पकाए हैं और मेरे अनुभव के सामने तुम कहीं नहीं ठहरते', तो अब आपको उसके प्रभामंडल से घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि बांग्लादेश और आयरलैंड का उदाहरण उसके सामने रखने की जरूरत है। सच मानिए, भारत की हार ने आपको एक बड़ा उदाहरण दिया है, यह साबित करने का कि अनुभव ही सब कुछ नहीं होता, आज के बच्चे 'सीखने' से पहले ही काफी कुछ सीख चुके होते हैं।

श्रम के करोड़ों घंटे बच गए

अगर आप देश भक्त हैं और क्रिकेट के प्रति अपने जज्बात को थोड़ी देर के लिए परे रख सकते हैं, तो आप भी इस बात से सहमत होंगे ही कि पहले ही राउंड में भारतीय टीम ने विश्व कप से आउट होकर देश के हित में काम किया है। जरा सोचिए, सवा अरब लोगों के इस देश में अगर कोई व्यक्ति औसतन एक घंटा भी विश्व कप का मैच देखता है, तो वह काम के कितने घंटे बर्बाद करता है!

और अब जबकि भारत विश्व कप से बाहर हो गया है हमारे-आपके जैसे करोड़ों लोग क्रिकेट को भूल अपने काम को ढंग से अंजाम दे पाएंगे, यानी क्रिकेट के निठल्ले चिंतन से बचने का मतलब है देश के लिए श्रम के करोड़ों घंटे बचा लेना! है न खुशी की बात! आखिर इससे आप ही के देश की प्रगति होगी न।

बोर्ड के परीक्षार्थियों के हित में है यह हार

इस विश्व कप से सबसे ज्यादा परेशानी बोर्ड के परीक्षार्थियों को हो रही थी। मुगल बादशाहों के नाम रटते-रटते अक्सर उनका ध्यान सचिन के स्ट्रेट ड्राइव पर चला जाता था और फिर सताने लगता था परीक्षा में कम अंक आने का डर। अब क्या कीजिएगा मन की उड़ान को तो कोई नहीं रोक सकता ना! फिर बच्चों के पैरंट्स की हालत भी कम खराब नहीं थी। बच्चे को एग्जाम की तैयारी में कोई बाधा नहीं पहुंचे, इसलिए वे टीवी ऑन तक नहीं करते थे, लेकिन मन ही मन मैच नहीं देख पाने के कारण कुढ़ते रहते थे।

तो टीम इंडिया के खराब प्रदर्शन से अब बच्चे मुगल खानदान के बादशाहों के नाम सही से याद कर पाएंगे व एग्जाम में बढ़िया मार्क्स ला पाएंगे और उनके पैरंट्स की खुशी के बारे में तो पूछिए ही मत। अगर पड़ोस में कोई बोर्ड का परीक्षार्थी हो, तो जरा हार के बाद की स्थिति पता करके देखिए। यकीन मानिए, आपको यह जानकर सुकून मिलेगा कि बच्चे और उनके पैरंट्स दोनों खुश हैं।

रात की नींद छिनने से बच गई

भारतीय टीम हारकर विश्व कप से बाहर हो गई, तो अब हमारे लिए विश्व कप में बचा ही क्या? अब हमें रात के तीन बजे तक जगने की जरूरत नहीं, चैन से खाइए और खर्राटे भरिए। पुराने रूटीन पर लौटकर आपको भी खुशी ही होगी। अगर आप यह मानते हैं, तो फिर खुश होइए न!

... यानी रोग से आप बच गए और डांट से भी

लगातार रात भर जगने का मतलब होता है, तबीयत खराब होना और फिर दफ्तर पहुंचकर ऊंघते रहने की वजह से बॉस से डांट खाना। चलिए, भारत के अब तक के तीन मैचों के लिए आपने अपनी तबीयत जितनी खराब कर ली और बॉस से जितनी डांट खा ली, काफी है। अब न तो भारतीय टीम मैच खेलने के लिए मैदान में होगी और न ही आपको रात में जगकर पेट व आंख की गड़बडि़यों का सामना करने पड़ेगा। रात में जगेंगे नहीं, तो दिन में ऑफिस में ऊंघकर बॉस से डांट खाने की मजबूरी भी नहीं होगी।

Friday, March 23, 2007

आप तो झूठ्ठे सेंटिया गए...

हो गया न, जिसका हमको डर था। हम पहिलिये न कहते थे वूल्मर जी आपसे कि बेकार का मगजमारी करने यहां मत आइए, लेकिन आप थे कि मानने को तैयारे नहीं थे। पता नहीं आपको ई कैसे लगता था कि पाकिस्तान में प्रतिभा की कमी नहीं है, बस तराशने वाला चाहिए, ऊ विश्वविजेता बन जाएगा। अरे भाई साहब, ई भारत- पाकिस्तान है, इनको भगवानो नहीं सुधार सकता, फिर आप तो साधारण इनसान थे। विश्वास नहीं था, तो अपने बिरादर चैपल भैय्या से पूछ लेते कि प्रोफेशनलिज्म दिखाना इस इलाके में केतना खतरनाक होता है।

दू साल हो गए, बेचारे चैपल बाबू एको ठो युवा प्रतिभा नहीं तलाश सके। औरो भारत अभियो उसी सचिन, द्रविड़, गांगुली व कुंबले के भरोसे विश्व कप जीतने की फिराक में है, जिनको उन्होंने बूढ़ा घोषित कर दिया था। आपको का लगता है कि भारत में प्रतिभा की कमी है? जी नहीं, प्रतिभा की यहां कौनो कमी नहीं है, दिक्कत बस ई है कि यहां उसको पनपने नहीं दिया जाता। प्रतिभा यहां कुछ लोगों की बपौती होती है औरो उनके बिना भी किसी का काम चल जाए, यह उनको गंवारा नहीं। अब देखिए न उस नेताजी को, राजनीति के मैदान में उसका अभी दूध का दांतों नहीं टूटा है, लेकिन दावा ई है कि भारत की धर्मनिरपेक्षता बस उसी के खानदान की बपौती है। यानी आप इहो कह सकते हैं कि बस उसी के खानदान को देश चलाने की तमीज है! यही हाल आपके इंजमाम औरो युनुस जैसन चेलवा का भी है। अब ऐसन मानसिकता वाले देशों में अगर आप प्रोफेशनलिज्म दिखाइएगा, तो सीधे ऊपरे न पहुंच जाइएगा।

ठीक है कि टीम को बढि़या परदरशन करना चाहिए, लेकिन हारने के बाद आपको एतना सेंटियाने किसने कहा था? ई भारतीय उपमहाद्वीप है, यहां सरवाइव करना है, तो काम से मतलब कम रखिए औरो पोलिटिक्स बेसी कीजिए। आपके जैसन लोग, जो यहां बेसी प्रोफेशनलिज्म दिखाते हैं, सबको ऊपर का ही रास्ता चुनना पड़ता है, फिर चाहे ऊ हमरा दफ्तर हो या परधानमंतरी कार्यालय। यहां काम खराब कर शरमाने औरो सिर छुपाने की जरूरत नहीं पड़ती, बस गोटी बढि़या से फिट कीजिए, फिर देखिए आपको कोसने वाला शरमाकर खुदे छुप जाएगा।

अब देखिए न, हमारे देश में हुए एक सर्वे का कहना है कि यहां 79 प्रतिशत लोग नेताओं से नफरत करते हैं! आप ही कहिए, अगर सर्वे पढ़कर यहां का नेता सब शरमाने लगे, तो देश में राजनीतिए न बंद हो जाएगी। इसीलिए तो यहां कोई शरमाता नहीं औरो काम खराबकर सुसाइड करने के बारे में तो कोयो सोच भी नहीं सकता, उल्टे दूसरे पर दोष थोपना यहां बहादुरी का काम माना जाता है।

बढि़या तो ई होता कि पाकिस्तान में किसी आका बनने की चाह रखने वाले को आप अपना काका बना लेते औरो इंजमाम को बलि का बकरा बनाकर अपनी चमड़ी बचा लेते! हमको लगता है कि आप यही मात खा गए, राजनीति करना कभी सीखबे नहीं किए। अब का कीजिएगा, राजनीति छोड़कर प्रोफेशनलिज्म दिखाइएगा, तो यही होगा। तो हमरी मानिए, अगला जनम आप इसी भारतीय उपमहाद्वीप में लीजिए, देखिएगा एतना तुच्छ कारणों से आपको दुनिया छोड़ने की नौबते नहीं आएगी!

Thursday, March 15, 2007

मंतरी जी के 'गरीब'

हमरे लिए ई सवाल हमेशा से भेजा घुमाने वाला रहा है कि आखिर गरीब कौन है? बच्चा में जब ई सवाल हम मास्टर जी से पूछते थे, तो रवि मुखिया, सुकन तांती सब का नाम गिनाकर ऊ परिभाषा सोचने का काम हम पर छोड़ देते थे। पराइमरी एजुकेशन में इससे बेसी नहीं बताया गया। हाई इस्कूल में हमको बताया गया कि जिसको दू जून रोटी खाने को मिल जाए, समझो ऊ गरीब नहीं है। मतलब तभियो हमको गरीब की परिभाषा नहीं बताई गई। कॉलेज में शिक्षा व्यवस्था उदार हुई, तो हमको बताया गया कि यूएन एक निश्चित डॉलर से कम की रोजाना आमदनी वालों को गरीब मानता है। अब डॉलर की बात तो हमरी समझ में कभियो नहीं आई, लेकिन सरकार ने भारतीय टका में गरीब 'न' होने की जो 'औकात' बताई थी, ऊ हमरे आसपास के सौ लोगों में से दस की भी नहीं थी।

खैर, अब भला हो उस नेताजी का, जिन्होंने गरीब रथ चलाकर हमको गरीबी की परिभाषा समझाने में मदद की है! गरीब रथ मंतरी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है औरो सरकारी प्रोजेक्ट है, तो जाहिर है ई रेल भी गरीब की सरकारी परिभाषा पर ही बनी होगी। तो आइए, हम गरीब रथ को देखकर भारत के गरीबों को समझने की कोशिश करते हैं।

बॉगी में घुसते ही जो गरीब की पहली परिभाषा आपकी समझ में आएगी, ऊ ई कि गरीब कभियो मोटा नहीं हो सकता या फिर इहो कह सकते हैं कि मोटा आदमी कभियो गरीब नहीं हो सकता। अब इसकी बॉगी का गेट एतना छोटा है कि 'खाते-पीते घर' का कोयो पराणी उसमें घुसिए नहीं सकता। तो आप इहो मान सकते हैं कि गरीब रथ के बॉगी के गेट में जो घुस जाए, ऊ गरीब हुआ औरो जो नहीं घुस पाए ऊ अमीर।

इस टरेन की सीट भी कुछ बेसिए छोटी है, तो आप इहो मान सकते हैं कि मंतरी जी के सपने का गरीब यही कोई 36 इंची की कमर वाला शख्स ही होगा! अगर किसी की कमर 36 इंची पार हो, यानी कमर नहीं कमरा हो, तो ई समझिए कि ऊ अमीर है औरो मंतरी जी या फिर कहिए कि सरकार के रजिस्टर में गरीब की कैटगरी में नहीं आता।

इस टरेन को देखकर इहो लगता है कि गरीब गरमी तो सह सकता है, लेकिन ठंडी नहीं। शायद यही वजह है कि मंतरी जी ने इस टरेन को एसी तो बना दिया, लेकिन एसी की मशीन थोड़ी खराब लगाई, ताकि बॉगी बेसी ठंडा नहीं हो औरो गरीब कंबल के अभाव में दांत किटकिटाकर मर न जाए। अब गरमी से पसीना बहेगा तो गरीब तौलिया से पोछ लेगा, दम घुटने लगेगा, तो गेट पर जाकर ताजी हवा खा लेगा, लेकिन ठंड से बचने का तो उसके पास कोयो उपाय नहीं होता ना! तो इसका मतलब ई हुआ कि जो गरमी सह ले, लेकिन ठंडी न सहे, ऊ आदमी गरीब हुआ। नहीं, ऐसा नहीं है कि इस टरेन में कंबल नहीं मिलता, मिलता तो है, लेकिन इसका पराइवेट ठेकेदार एक बॉगी के लिए तीस-चालीस कंबल से बेसी रखबे नहीं करता है। तो मतलब ई हुआ कि गरीब ऊ है, जो बेसी सुविधाभोगी नहीं हो।

और हां, गरीब रथ देखकर गरीबों की जो एक परिभाषा औरो हमरी समझ में आई, ऊ ई कि सफर में जिसके पास खाने की औकात नहीं हो, ऊ गरीब होता है। अब का है कि इस टरेन में पेंट्री कार है ही नहीं। तो मतलब ई कि जो बाजार से खरीदकर नहीं खा पाए और सत्तू-चिउड़ा बांधकर सफर करने को मजबूर हो, ऊ पराणी गरीब हुआ।

और गरीबों की अंतिम परिभाषा ई कि जिसके सफर को रोककर अमीरों का सफर जारी रखा जाए, ऊ मजबूर पराणी भी गरीब होता है। काहे कि राजधानी एक्सप्रेस को रास्ता देने के लिए गरीब रथ को किसी जंगल में भी घंटे भर रोका जा सकता है! तो उम्मीद है, हमरी तरह आप भी अब गरीबी की तह तक पहुंच गए होंगे। आप इहो जान गए होंगे कि कैसे 22 हजार करोड़ रुपया के लाभ में कोयो मंत्रालय पहुंच सकता है और वाहवाही में मंतरी जी दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में पढ़ाने के लिए जा सकते हैं।

Saturday, March 03, 2007

बॉलिवुड़िया होली का लाइव प्रसारण

बॉलिवुड की होली खास होती है, आखिर वह सपनों की दुनिया जो ठहरी। तो लीजिए, आज हम आपको वहीं लिए चलते हैं, जहां होली का हुड़दंग शबाब पर है। यह लाइव टेलिकास्ट सिर्फ आपके लिए है, बिल्कुल एक्सक्लूसिव। चूंकि इसमें कुछ एडल्ट कंटेट भी हैं, इसलिए इसे सेंसर बोर्ड ने 'ए' सर्टिफिकेट जारी किया है। जाहिर है, जिन लड़कों की मूंछें नहीं उगी हैं या जिन लड़कियों ने अब तक गुड़ियों के साथ सोना बंद नहीं किया है, उनके लिए यह लेख निषिद्ध है:

आज समय हमारे पास भी कम है, इसलिए बिना कोई बाउंड्री बांधे हम आपको सीधे मुंबई लिए चलते हैं। यह झुग्गियों के बीच में गगन चूमती जो इमारतें आपको दिखाई दे रही हैं, इन्हें देखकर आप यह तो समझ ही गए होंगे कि यह अपने देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई ही है। दरअसल, तमाम राजधानियों में झुग्गियों की बहुतायत उस धर्म-पताका की तरह होती है, जो हमेशा यह भान कराती रहती है कि यहां लोगों के पास समानता का अधिकार है। आखिर किस देश में गरीब अमीरों के बराबर में अपनी झुग्गियां बना पाते हैं?

खैर, इस बार बॉलिवुड से जुड़ी चार होली हो रही है- अमिताभ की होली, शाहरुख की होली, बॉलिवुड के वंचितों से बाजार के गठबंधन की होली और आम लोगों की होली। हम आपको आम लोगों की होली के बारे में नहीं बताएंगे, क्योंकि वहां के आम लोग भी हम दिल्लीवालों की तरह ही आम हैं। ये देखिए, यह है अमिताभ का घर 'जलसा'। हालांकि यूपी में मुलायम भाई साहब पर जो आफत आन पड़ी है, उसे देखते हुए अमिताभ ने इस बार होली नहीं मनाने की घोषणा की थी, लेकिन आप तो जानते ही हैं कि लोग मानते कहां हैं! ... तो यहां मेहमानों के आने-जाने का सिलसिला जारी है। ये भांग घोंटने वाले खास इलाहाबाद के सपाई हैं, जिन्हें अमर सिंह जी भाई साहब ने अपने बैंड एम्बैसडर की सेवा के लिए भेजा है।

यह जो लंबा-चौड़ा हैंडसम व्यक्ति दिख रहा है न बिग बी को गले लगाते, यह विधु विनोद चोपड़ा है। इनकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर लुट गई, सो अपने एकलव्य को उन्होंने जो रॉल्स रॉयस दिया था, उसे वह वापस लेने आए हैं। अब होश में तो अमिताभ गाड़ी लौटाते नहीं, इसलिए इन्होंने भांग के नशे का फायदा उठाने की सोची है। वो देखिए, उन्होंने अमिताभ की जेब से रॉल्स रॉयस की चाबी भी निकाल ली है। चलिए, इनकी होली तो हो ली, क्योंकि 'एकलव्य' से हुआ सारा घाटा ये इस गाड़ी को बेचकर निकाल लेंगे।

अरे, जा कहां रहे हैं? यहां तो देखिए, मात्र चड्डी में यहां कौन खड़ा है? ओह, यह तो अपने सल्लू मियां हैं। खैर, शर्ट तो ये पहनते नहीं, लेकिन इनकी पैंट कहां गई? अच्छा, इन्होंने अपनी पैंट अभी-अभी एक भिखारी को दान कर दी है। बड़े दानी हैं भई! आप क्या कह रहे हैं, इन्हें शाहरुख की होली में होना चाहिए था, यहां कैसे आ गए? हां, आपने सही कहा, लेकिन यहां वह ऐश्वर्या की खोज में आए हैं। पहले झगड़ा था, इसलिए मिलना नामुमकिन था, लेकिन अब तो वह भाभी हो गई हैं, इसलिए गुलाल तो लगा ही सकते हैं। लेकिन यह क्या! अभिषेक तो ऐश को अंदर भेज रहे हैं! आखिर क्यों? चलिए अभिषेक से ही पूछ लेते हैं - 'आपने ऐश को होली क्यों नहीं खेलने दी?' अभिषेक ने क्या कहा, आपने सुना? अभिषेक का कहना है - 'छुट्टे सांड से दूर ही रहना चाहिए। शराब पीकर लोगों को रौंद देने वाले व्यक्ति के सामने कमसिन कली को रखना ठीक नहीं। कहीं इसने अपनी गाड़ी ...? फिर तो मैं शादी से पहले ही विधुर हो जाऊंगा! सुरक्षा पहले, भाईचारा बाद में!'

तो चलिए हम भी निराश सल्लू मियां को शाहरुख के 'मन्नत' में ले चलते हैं, वहीं जाकर वह उन बच्चनों को जला पाएंगे, जिन्होंने उनकी ऐश छिन ली। ये लीजिए, ये शाहरुख के साथ उनकी दोनों पत्नियां टॉयलेट सीट ... ओह! सॉरी, हॉट सीट पर मौजूद हैं। दोनों पत्नियां...? हां भाई, करण जौहर ने अभी कुछ दिन पहले ही तो खुद को शाहरुख की दूसरी बीवी कहा था। वैसे, महिला वह भले ही नहीं हैं, लेकिन अदाओं से तो महिला जैसे दिखते ही हैं। वो कहते हैं न खुदा जब देता है, तो छप्पर फाड़ कर देता है, वही हुआ है शाहरुख के साथ। 'दोनों सुख' उठा रहे हैं किंग खान!

और ये शाहरुख के बगल में बैठे मां-बेटा कौन हैं? नहीं... नहीं, ये मां-बेटा नहीं, बल्कि पति- पत्नी हैं... जी हां, उम्रदराज फरहा खान और उनका अभी-अभी बालिग हुआ पति शिरीष कुंडर। यह तो बाल मजदूरी है भाई! और हां, यह तो रानी मुखर्जी हैं। इनका दिल न टूटा होता, तो यह अभी बच्चनों के साये में होली मना रही होतीं। खैर, यह बगल में बैठे चोपड़ा साहब उनके नए हमसफर हैं। आज तो होली इन्हीं के नाम है।

ये देखिए शिवाजी पार्क में यह जो होली आपको दिख रही है, यह बॉलिवुड के वंचितों के संग बाजार के गठबंधन की होली है। इस होली के बहाने बाजार अपना प्रचार करता है। इस होली शो को दाद-खाज दूर करने वाली एक क्रीम और स्किन को गोरा करने वाली एक क्रीम ने स्पॉन्सर किया है। इन कंपनियों का दावा है कि इन्हीं के क्रीम की वजह से राखी सावंत और मल्लिका सहरावत का अंग-अंग गोरा है। हां-हां, आपने सही पहचाना वो मल्लिका सहरावत ही डांस कर रही हैं, लेकिन अगर आप उनको न्यूड समझ रहे हैं, तो गलती कर रहे हैं। क्या है कि यह बॉडी कलर का सूट है, जो लोगों को असली स्किन की मृगमरीचिका दिखाता है, इसलिए आप ज्यादा उछलिए मत। और ये उचक-उचक कर आप क्या देख रहे हैं?

प्लीज, इसे सरेआम नंगई दिखाना मत कहिए और वो देखिए राखी सावंत को। अभी जो चार होठों को आपने आपस में चिपके हुए देखा है, उनमें से दो तो राखी सावंत के हैं, लेकिन बाकी दो को पहचानना अभी मुश्किल हो रहा है, क्योंकि चेहरे पर रंग पुता हुआ है। खैर, एक बात तो तय है, ये होठ सिंगर मिका के नहीं हैं, क्योंकि अभी वह पंजाब में हैं। तो फिर ये किसके हैं...? चलिए, आप तब तक पहचानने की कोशिश कीजिए, हम जरा भांग वाली जलेबियां खाकर आते हैं।

आप सबको होली की शुभकामनाएं

Thursday, March 01, 2007

बजट संग होली: एतना डेडली कंबिनेशन!

बजट के चार दिन बाद होली! यानी उल्लास के महापरब से तुरंत पहले 440 वाट का झटका... ई तो सरासर नाइंसाफी है भाई! हमरे समझ में ई नहीं आ रहा कि बैठकर होली खेलने की पलानिंग करूं या बजट से नून-तेल केतना महंगा-सस्ता हो गया, इसका विश्लेषण। सही बताऊं, तो वित्त मंत्री से सहूलियतों का जेतना अरमान संजोया था, सब बजट भाषण के एक घंटा में चकनाचूर हो गया। अब अगर होली मनाने की चिंता करता हूं, तो बजट पर चिंतन छोड़ना होगा औरो बजट की चिंता करूं, तो होली की तो वाट लगनी तय है!

हमरे खयाल से बजट औरो होली एतना करीब नहीं हो, इसके बारे में धरम के ठेकेदारों औरो देश के नीति नियंताओं को गंभीरता से सोचना चाहिए। अब का है कि होली जैसन परब का अगर बजट के चक्कर में गुड़-गोबर हो जाए, तो ठीक नहीं। बजट में तो अब कौनो रस रहा नहीं, होली को काहे नीरस कर रहे हो भाई? साल में एक बार तो होली आती है, उसका भी मजा नहीं लेने दोगे, तो एतना टेंशन में तो आदमी मरिये जाएगा।

वैसे, नीति-नियंता बजट की तारीख शायद ही बदल पाए, काहे कि इससे देश का बहुते कुछ जुड़ा होता है, लेकिन हमरे खयाल से धरम के ठेकेदार इस मामले में बहुत कुछ कर सकते हैं। आखिर डेट आगे-पीछे करना उनके बाएं हाथ का खेल जो है! अगर होली बजट के तुरंत बाद हो, तो कुछ ऐसन कह दिया जाए कि अभी होली मनाना सुरक्षित नहीं है, काहे कि दो ग्रह एक-दूसरे के घर में घुसकर उत्पात मचा रहे हैं, होली अब एक महीने बाद होगी। इससे होगा ई कि महीने भर में लोग बजट का गम भूल जाएंगे औरो होली बढ़िया से मना पाएंगे। और कोयो बढ़िया बहाना नहीं मिले, तो शनि का नाम ले लीजिएगा! उसके नाम से लोगों की हालत ऐसने खराब रहती है... आप शनि का नाम लेंगे, तो एक महीना क्या, लोग साल भर होली नहीं मनाएंगे।

तो देश के भाग्यविधाताओं औरो धरम के ठेकेदारों, पिलीज हमरी इस अपलीकेशन को सीरियसली लीजिए। अब का है कि भांग में बहुते ताकत होती है, सो होली मनाता रहूंगा, तो बजट का एगारह हजार वाट का झटका भी झेलता रहूंगा। लेकिन अगर आप हमरी बात नहीं मानेंगे औरो होली व बजट में एतना कम दिन का अंतर रखेंगे, तो होगा ई कि थोड़ा-सा भांग खाकर जमकर रंग-गुलाल खेलने की बजाय हम ढेर सारा भांग खाकर नशे में सो जाऊंगा! फिर भांड़ में जाएगा आपका बजट औरो उनकी होली, अपनी परब तो नींद के साथ हो ली।

खैर, बावजूद बजट के इन झटकों के हमरे गुरु जी का कहना है कि लोगों को इस बार जमकर होली खेलनी चाहिए, काहे कि उसके जेनुइन रीजन हैं... अब का है कि दो राज्यों की निकम्मी सरकार को जनता जनार्दन ने औकात बता दी, इसलिए होली खेलिए... मणिपुर के भाइयों ने भारतीय लोकतंत्र में आस्था रखी, इसलिए होली खेलिए... भारतीय टीम क्रिकेट विश्व कप में आपकी हार्ट बीट बढ़ाने वाली है, इसलिए होली खेलिए... औरो सबसे बड़ी बात ई कि होली भाईचारा औरो उल्लास का परब है, इसलिए होली खेलिए। बजट का का है, आप तो रोज ऐसन झटका झेलते हैं, समझिएगा एक ठो औरो भूकंप आकर गुजर गया! बहरहाल, आप सब को होली मुबारक हो।