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अप्रैल, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

काश! हम सठियाये होते

पहले हम बुढ़ापे से डरते थे, लेकिन अब बूढे़ होने को बेकरार हूं। दिल करता है, कल के बजाए आज बूढ़ा हो जाऊं, तो एक अदद ढंग की हसीना हमको भी मिल जाए। नहीं, हम बेवकूफ नहीं हूं। बूढ़ा हम इसलिए होना चाहता हूं, काहे कि बुढ़ापा अब बुढ़ापा रह नहीं गया है। जीवन के चौथेपन में अब एतना मौज आने लगी है कि वानप्रस्थ की बात अब किसी के दिमागे में नहीं घुसती। विश्वास न हो, तो दुनिया देख लीजिए। लोग जेतना बूढे़ होते जा रहे हैं, जवानी उनमें ओतने हिलोरें मारती जा रही है। ' साठा पर पाठा' बहुत पहिले से हम सुनते आया हूं, लेकिन ई कहावत कभियो ओतना सच होते दिखा नहीं, जेतना अब दिख रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति सर्कोजी से लेकर रूस के राष्ट्रपति पुतिन औरो पके बालों वाले सलमान रुश्दी तक, साठवां वसंत देखने जा रहे तमाम लोगों को ऐसन ऐसन हसीना मिल रही है कि जवान लोग के जीभ में पानी आ रहा है। अब हमरी समझ में ई नहीं आ रहा कि कमियां जवान लोगों में हैं या फिर दुनिया भर की लड़कियों की च्वाइस बदल गई है? लोग कहते हैं कि बात दोनों हुई हैं। जवान लोग पैसा बनाने के चक्कर में ऐसन बिजी हैं कि उनके दिल में रोमांस का सब ठो कुएं सू

किरकेटिया कनफूजन

शाहरुख खान औरो अक्षय कुमार आजकल फिलिम से बेसी किरकेट में घुसकर चरचा बटोर रहे हैं। शाहरुख के हाथ में गेंद औरो अक्षय के हाथ में बल्ला... लोग कनफूजिया रहे हैं- कल तक तो पर्दे पर महाशय नचनिया बने घूम रहे थे, किरकेटर कब बन गए? अभी तक किसी टीम में खेलते तो नहीं देखा...। लोग हैरान हैं, तो किरकेटो कम हैरान नहीं है। ऊ ई तो जानता है कि आजकल दुनिया में कोयो अपना काम कर खुश नहीं रहता, इसलिए दूसरों की फटी में टांग अड़ाता रहता है। लेकिन दिक्कत ई है कि लोग अब उसकी फटी में भी टांग अड़ाने लगे हैं। उसको अपना स्टेटस कम होता नजर आने लगा है। कहां तो लोग उसे भारत का धरम कहते थे औरो किरकेटरों को भगवान, तो कहां स्थिति ई है कि अपना जादू कायम रखने के लिए उसे अब बालिवुडिया 'देवी-देवताओं' की मदद लेनी पड़ रही है। उसके अपने किरकेटिया भगवान तो गाय-भैंस बनकर कब के नीलामी में सरेआम बिक गए! किरकेट का आगे का होगा, ई सोचकर हमरे मिसिर जी भी परेशान हैं। उनको पता है कि चीजांे का ऐसन घालमेल बहुते खराब होता है। घालमेल की वजह से ही ऊ अक्सर मनमोहन सिंह को भूलकर सोनिया गांधी को परधान मंतरी कह देते हैं, तो शरद पवार को किर

स्वर्ग जाना के चाहता है?

छठे वेतन आयोग की सिफारिश आने से बाबू सब कुछ बेसिए खुश हो गए हैं। बड़का-बड़का झोला सिलाकर अब उनको इंतजार है, तो बस सरकार के वेतन आयोग की सिफारिश मान लेने का। हालांकि हमरे समझ में ई नहीं आ रहा कि जब जिंदगी का फटफटिया घूस वाले पेटरोल से मजा में चलिए रहा है, तो एतना सैलरी का ऊ करेंगे का? एक ठो बाबू मिल गए, 'हमने अपनी इस 'चिंता' से उनको अवगत कराया।' ऊ बिगड़ गए, 'आपके पेट में कुछ बेसिए दरद हो रहा है। पैसा सरकार का है औरो जेब हमारी है, जब हम दोनों को कौनो आपत्ति नहीं है, तो आप काहे चिंता में दुबले हो रहे हैं?' हमने कहा, 'जेब आपकी है औरो पैसा सरकार का है, ई बात सही है, लेकिन एक ठो बात बताइए, सरकार पैसा का अपने पिताजी के यहां से लाएगी? जब हमरे ही टैक्स से सरकार की गाड़ी चलनी है, तो आपके जेब में जाने वाला पैसबो तो हमरे होगा न।' ऊ बोले, 'ऊ तो हमरे जेब में जाने वाला पैसा हर हाल में आपका ही होता है-चाहे सरकार से हमें सैलरी मिले या आपसे घूस कमाएं। वैसे, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हमरी सैलरी बढ़ गई तो चमड़ी आप ही की बचेगी-घूस लेते समय आप पर दो-चार रुपये का रहम