स्वर्ग जाना के चाहता है?

छठे वेतन आयोग की सिफारिश आने से बाबू सब कुछ बेसिए खुश हो गए हैं। बड़का-बड़का झोला सिलाकर अब उनको इंतजार है, तो बस सरकार के वेतन आयोग की सिफारिश मान लेने का। हालांकि हमरे समझ में ई नहीं आ रहा कि जब जिंदगी का फटफटिया घूस वाले पेटरोल से मजा में चलिए रहा है, तो एतना सैलरी का ऊ करेंगे का?

एक ठो बाबू मिल गए, 'हमने अपनी इस 'चिंता' से उनको अवगत कराया।'

ऊ बिगड़ गए, 'आपके पेट में कुछ बेसिए दरद हो रहा है। पैसा सरकार का है औरो जेब हमारी है, जब हम दोनों को कौनो आपत्ति नहीं है, तो आप काहे चिंता में दुबले हो रहे हैं?'

हमने कहा, 'जेब आपकी है औरो पैसा सरकार का है, ई बात सही है, लेकिन एक ठो बात बताइए, सरकार पैसा का अपने पिताजी के यहां से लाएगी? जब हमरे ही टैक्स से सरकार की गाड़ी चलनी है, तो आपके जेब में जाने वाला पैसबो तो हमरे होगा न।'

ऊ बोले, 'ऊ तो हमरे जेब में जाने वाला पैसा हर हाल में आपका ही होता है-चाहे सरकार से हमें सैलरी मिले या आपसे घूस कमाएं। वैसे, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि हमरी सैलरी बढ़ गई तो चमड़ी आप ही की बचेगी-घूस लेते समय आप पर दो-चार रुपये का रहम कर जाऊंगा। सैलरी नहीं बढ़ी, तो घूस औरो कमिशन दोनों का रेट बढ़ा दूंगा - आखिर आप जनता के ही भरोसे तो अपना बचवा विलायती स्कूल में पढ़ रहा, मेहरारू रोज पारलर जाती है, टॉमी मीट खाता है।'

बात-बेबात ऑफिस में मिठाई मंगा घर आकर खाने वाले ऊ बेचारे चीनी के परभाव में इतना कहते कहते हांफने लगे थे। थोड़ा पानी पिया, तो बेचारे का बलड परेशर जगह पर आया। अब बारी सरकार की थी, 'जिस घीया को गांव में हमरी भैंस नहीं खाती है, दिल्ली में ऊ 40 टका किलो बिक रही है, साल भर पहले ऊ चार रुपये किलो बिक रही थी। वेतन आयोग तो सरकारी प्रायश्चित है- मुनाफाखोरों पर ऊ अंकुश नहीं लगा सकती, इसलिए हमरी सैलरी बढ़ा रही है। इस सरकारी मौसम में, सरकार को पता है कि महंगाई से हम मरेंगे, तो सरकारो को मार देंगे। वेतन आयोग तो सरकारी बाजीगरी है - बाजार को मनमानी करने दो, जनता को वेतन वृद्धि का झुनझुना पकड़ा दो!

हमने कहा, 'एतना कमा कर कहां जाइएगा? बेईमानी-शैतानी की कमाई से तो नरक मिलती है। ईमानदारी का खाइए, लोक के साथ-साथ परलोक भी सुधरेगा?'

ऊ बोले, 'स्वर्ग जाना के चाहता है? आपकी सलाह में दम तो है, लेकिन दिक्कत ई है कि अकेले स्वर्ग में जाकर हम करूंगा का? आजकल लोग एतना पाप कर रहे हैं कि मरने के बाद किसी न किसी मामले में भगवान उनको नरक में डालकर ही दम लेंगे। अब जब तमाम यार औरो परिजन नरक में ही जाने वाले हों, तो अकेला स्वर्ग में किसी का मन कैसे लगेगा? इसलिए हम तो वैसे भी नरक में ही जाना चाहूंगा।'

अब जब ऐसन 'महारथियों' की आत्मा सर्वव्यापी हो, तभी समझ में आता है कि अंगरेज़ की हस्ती मिटा देने वाले देश में बाबूओं की हस्ती कभियो काहे नहीं मिटती है!

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