Saturday, July 21, 2007

दाग अच्छे हैं

राष्ट्रपति का चुनाव का खतम हुआ, समझ लीजिए कि हमरे नेताओं के माथा पर से एक ठो बड़का भार उतर गया। जब से कलाम जी राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे, तब से पता नहीं कहां से एतना खतरनाक शब्द सब हवा में तैरने लगा था कि हमरे नेता सब की हालत खराब रहने लगी थी। अब आप ही बताइए न शुचिता, ईमानदारी, पवित्रता, विद्वता ... औरो न जाने केतना कुछ ... एतना भारी भरकम शब्द सब कलाम से जुड़ल था कि राष्ट्रपति भवन में समाइए नहीं पाता था। परिणाम ई हो गया कि देश का बाकी नेता सब इंफीरियरिटी काम्प्लेक्स से ग्रस्त हो गया था औरो मानसिक तौर पर बीमार रहने लगा था।

अब आप समझ गए होंगे कि तीसरे मोर्चे के रिकवेस्ट पर जब कलाम जी दूसरे कार्यकाल के लिए तैयार हो गए थे, तो वामपंथी सब उनको गरियाने काहे लगे थे! कलाम को गरियाना वामपंथियों व पवार की बीमार मानसिकता की उपज थी औरो ई बीमार मानसिकता कलाम ने ही इन नेताओं को इंफीरियरिटी काम्प्लेक्स के रूप में दी थी। सीधी बात है, न कलाम जी एतना सुपर आदमी होते, न नेताओं को मिरची लगती।

हां, तो हम ई कह रहे थे कि कलाम के जाने से बहुतों का दिमाग हल्का हो गया है। अब का है कि काजल के कोठरी में वही एक ठो बगुला भगत के जैसन उजले बैठे हुए थे औरो काले हो गए दूसरे लोगों का मुंह चिढ़ा रहे थे! 'न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी' वाले अंदाज में उनके जाने के बाद अब देश के राजनीति में एको ठो उजला नेता बचबे नहीं करेगा कि उसका उदाहरण दिया जाएगा। अब जो रहेगा, सब एक रंग का होगा-- कालिख में धंसा होगा! राजनीति में कंट्रास्ट, वैसे भी चलबे कहां करता है? यानी डिटर्जेंट का ऊ विज्ञापन अपने देश के लिए हमको एकदम सटीक लगता है, जिसका नारा है कि 'दाग अच्छे हैं'।

दाग अच्छे हैं इसलिए, काहे कि यह पता नहीं चलने देता कि के राजा है, के रंक। काजल की कोठरिया में सब बस काला भूत होता है। अगर कलाम दागी होते, तो दो सूटकेश लेकर राष्ट्रपति भवन से विदा नहीं होते औरो यही तो अखरने वाली बात है! जिस देश में चपरासी का भाई मुखमंतरी बनता हो औरो करोड़पति होकर मुखमंतरी निवास से विदा होता हो... एमसीडी की टीचर मुखमंतरी बनती हो औरो अरबपति होकर मुखमंतरी निवास से विदा होती हो, वैसन देश में कलाम जैसन लोगों होना ठीक नहीं। काहे कि ई कंट्रास्ट पैदा करता है औरो इन जैसे लोगों की वजह से ही लालूओं व मायाओं की बदनामी होती है! आप ही बताइए न, आज तक लालू को किसी ने माया बनने के लिए कहा होगा? नहीं न, लेकिन उनको कलाम बनने की नसीहत अक्सर मिलती रहती है!

तो हर घटना, दुर्घटना की एक ठो 'मोरल आफ द स्टोरी' होती है। जाहिर है, इस राष्ट्रपति चुनाव की भी है--

भारतीय राजनीति का हमाम बदल गया है। पहले इस हमाम में आने के बाद लोग नंगे होते थे, अब उम्मीद की जाती है कि नंगे लोग ही यहां आएं। जो लोग कपड़ा पहनकर इस हमाम में घुसने की कोशिश करता है, सब मिलकर उसका छिलका उतार देता है-- तुम्हरी कमीज हमरी कमीज से उजली कैसे?

लेकिन हमरे खयाल से दाग अच्छे हैं, काहे कि वे किसी में इंफीरियरिटी काम्प्लेक्स पैदा नहीं करते। तो का ई मान लिया जाए कि कलाम के जाने से हमरे नेता बीमार मानसिकता से उबर जाएंगे?

Tuesday, July 10, 2007

कम कपड़ा, बेसी कल्याण

पिछले दिनों कपड़ा उतारने की दो- तीन घटनाओं ने मंगरू को बेचैन कर दिया है। नहीं, उसकी बेचैनी इस बात को लेकर कतई नहीं है कि सभ्य समाज को कपड़ा नहीं उतरना चाहिए। इस दौर में तो पूरा कपड़ा में ऊ सभ्य समाज की कल्पने नहीं कर सकता! ऊ तो ई जानने के लिए बेचैन है कि आखिर कपड़ा उतारने की नौबते काहे आती है औरो आती है, तो उसका कौनो फैदा होता है कि नहीं?

कपड़ा उतारने की पहली घटना के बारे में उसको पता चला कि यह काम उस गरम ... ऊ का कहते हैं... हॉट मॉडल की है, जो चलती टरेन पर छैंया छैंया गाकर रेल के नियम-कानून को ठेंगा दिखा चुकी है। ई जानकर मंगरू बहुते खुश हुआ। आखिर ऊ टरेन के छत पर नाच-गाकर भारतीय गरीबों को रेल की मुफ्त सवारी का रास्ता जो बता चुकी है। मंगरू खुदे बहुते बार ऐसन सवारी कर चुका है।

खैर, तो नाम मात्र के कपड़ा में फोटुआ खिंचवाकर उस माडल ने घोषणा की कि ऐसा महान काम उसने यह जागरूकता फैलाने के लिए किया है कि मकाऊ तोते के जान पर आफत आ पड़ी है, इसलिए उसको बचाया जाए।

ई जानकर मंगरू एक बार फिर खुश हुआ। उसको पूरा भरोसा है कि मुफ्त टरेन यात्रा का रास्ता दिखाने वाली माडल उसको फिर से रास्ता दिखाएगी औरो उसके कल्याण के लिए भी वही करेगी, जैसन उसने तोते के लिए किया है। आखिर उसकी हालत उस तोते से बेसी खराब जो है।

ऊ पहुंचा उस माडल के पास। कहने लगा, 'काश! हमरे कल्याण के लिए भी इस दुनिया में कोयो कपड़ा उतारकर परदरशन करता। कोयो कहता कि हमने ऐसा इसलिए किया, काहे कि मंगरू भूखा मर रहा है, उसको बचाइए। अगर आप ऐसा कर दीजिए, तो हमरी सूखी आंत भी लोगों को दिख जाएगी। जानवरों के लिए तो आप हसीनाएं एतना कुछ करती हैं, तनिक मनुष्य के लिए भी कुछ कीजिए न।'

माडल ने उसे गौर से देखा औरो अपनी बेबसी बताई, 'बात तो तुम सही कहते हो, लेकिन जानवरों के लिए कपड़ा हम इसलिए उतारती हूं, काहे कि उनसे हमरा फैशन चलता है। खरगोश के खून से मस्कारा, हाथी दांत के गहने, हिरण से शहतूश के शाल ... यानी हमरी चमक -दमक जानवरों के बल पर है। अब हमरे कारण जिसका पराण जाता है, उसके लिए कुछ तो हमको करना ही चाहिए न। तुमको तो नेताओं से मिलना चाहिए, वही तुम्हरे लिए कपड़ा उतार सकते हैं, काहे कि उनकी चमक-दमक तुम्हरे जैसन आम लोगों के कारण ही है।'

निराश मंगरू कपड़ा उतारने की दूसरी घटना के बारे में जानने गया। पता चला, राजकोट में ससुरालियों के खिलाफ कुछ कपड़े 'पहनकर' परदरशन करने वाली 'वीरांगना' को इसका वास्तव में फैदा हुआ है। अब बत्तीस ठो एनजीओ उसकी मदद कर रहा है, पैसा से लेकर नौकरी तक उसको आफर हो रहे हैं।

वीरांगना ने मंगरू को एक एनजीओ से मिलवाया। उसके बाद से मंगरू की कोटर से बाहर निकली आंखें सौ वाट के बल्ब की तरह चमक रही हैं। वह अब खुद माडल बनेगा, एनजीओ के पास जाएगा औरो अपने कल्याण के लिए खुद अपने कपड़े उतारेगा। आखिर भूखमरी से ग्रस्त भारतीय आदमी का मंगरू परफेक्ट माडल जो है। नेताओं से तो उसको उम्मीद ऐसे भी नहीं है, भला नंगा आदमी किसी के लिए कपड़ा कहां से उतारेगा!