आजकल बाजार में दीवाली की चमक-धमक है। लेकिन हमरे समझ में ई नहीं आता कि ई रौनक आखिर है किसके भरोसे। कभियो लगता है कि ई चकाचौंध ओरिजिनल है, तो कभियो लगता है कि भरष्टाचार की बैसाखी के बिना बाजार चमकिए नहीं सकता। फिर जब से परधानमंतरी जी ने ई कहा है कि बिना दलाल के काम चलिए नहीं सकता, तब से हम औरो कनफूज हो गया हूं।
उस दिन चौरसिया जी मिल गए। पिछली बार मिले थे, तो बहुते दुखी थे, लेकिन इस बार उनका चेहर लालू जी जैसन लाल था। कहने लगे, 'स्थिति तो बहुते खराब हो गई थी, लेकिन अब ठीक है। बताइए, सरकार की सबसे दुधारू विभाग के सामने अपनी चाय-पान की दुकान है, लेकिन बोहनी तक नहीं हो रहा था। सीलिंग के चक्कर में सब बरबाद हो गया। पबलिक का काम होता था, तो किरानी बाबू सब पबलिक से अपना 'सत्कार' हमरी दुकान पर ही करवाते थे। उनको लेन-देन के लिए सुरक्षित जगह मिल जाती थी औरो हमरी दुकान चल जाती थी। लेकिन जब कोर्ट के डर से गलत को कौन पूछे, सहियो काम नहीं हो रहा था, तो हमरी दुकान चलती कैसे? खैर, अब मामला ठीक है, साहब से लेकर चपरासी तक टंच हैं।'
दरअसल, चौरसिया जी की चिंता ऐसने नहीं दूर हुई है। उनके पास ऊपर से बूंद-बूंद चू कर जो पैसा पहुंचा है, उसके लिए ऊ मंतरी जी की धरमपत्नी के आभारी हैं। उन्हीं की किरपा से तो चौरसिया जी के पास पैसा आया है। हुआ ऐसन कि ऐन दीवाली के मौके पर हाथ सूखा देख मंतरी जी की धरमपत्नी ने उनको बहुते हड़काया। आखिर जब ऊ पैसा लाएंगे नहीं, तो घर में दीवाली मनेगी कैसे? वेतन-भत्ता से तो बस भात-दाल चल सकता है।
घर की लक्ष्मी के हड़काए मंतरी जी ने अपने सचिव को हड़काया-- अगर 'जजमानों' से पैसा लाओगे नहीं, तो अपनी इज्जत का तो फलूदे न बन जाएगा। दीवाली जैसन परब पर एतना पैसा नहीं है कि किसी को एक डिब्बा मिठाइयो दे सकें।
मंतरी जी से हड़के सचिव ने अपने निचले अफसरों को हड़काया। उन अफसरों ने अपने निचले मातहतों को हड़काया, उन मातहतों ने अपने करमचारियों को हड़काया औरो इस तरह पैसा लाने की बात कलमघिस्सू बाबूओं तक पहुंची। सावन में स्वाति की बूंद का इंतजार कर रहे सीपि रूपी उन बाबूओं ने अपने दलालों को हड़काया-- खड़े-खड़े चौरसिया से पान खाते रहते हो, 'यजमानों' को पकड़कर लाओ तो हमहूं पान खाएं। बढि़या से दीवाली मनाना है, मुन्ना को पटाखे देने हैं, बीवी के लिए जेवर लाने हैं औरो अपने लिए कपडे़ खरीदने हैं, सो पैसे के लिए रिस्क तो लेना ही पड़ेगा।
फिर का था? दलालों ने 'यजमानों' को समझाना शुरू किया कि सीलिंग के लिए मंतरी जी कानून ला रहे हैं, किसी का मकान-दुकान टूटेगा नहीं, बस पकिया कागज बनवा लो। उनका समझाना काम आया औरो 'यजमान' आने लगे। इससे चौरसिया जी की दुकान पर भीड़ जुटने लगी औरो तिजोरी भरने लगी। जब बटुआ में पैसा हो, तो किसी का भी चेहरा लालू जी जैसन लाल हो सकता है।
लोग कहते हैं कि लक्ष्मी चंचला है, लेकिन हमको लगता है कि लक्ष्मी नदी है-- जब तक बहती रहती है, सब सुखी रहता है, चौरसिया जी से लेकर मंतरी जी तक, यानी बाजार से सरकार तक। तो आप भी इस नदी में हाथ धोइए औरो दीवाली पर घी के दीये जलाइए। हमरी शुभकामनाओं के संग-संग अब तो परधानमंतरियो जी का आशीर्वाद आपके साथ है!
Wednesday, October 18, 2006
Thursday, October 12, 2006
मच्छर ने किसको बनाया हिजड़ा
देश में आजकल दू तरह के जीवों का आतंक कायम है- एक तो आतंकवादी, दूसरा मच्छर। दोनों के आतंक से देश की हालत खराब है। हमको तो लगता है कि दोनों एक-दूसरे के पर्याय हो गए हैं। आप चाहें तो मच्छर को आतंकवादी कह दीजिए औरो आतंकवादी को मच्छर, काहे कि दोनों को मनमानी की पूरी छूट है औरो दोनों कहीं भी पहुंच सकते हैं- पुरानी दिल्ली की गलियों से लेकर परधान मंतरी निवास औरो संसद तक। औरो फिर दोनों किसी पर भी अटेक कर सकता है। जिस तरह डेंगू अपने घासीराम को हुआ, तो परधानमंतरी के नातियों को भी, उसी तरह आतंकियों से जेतना हम डरते हैं, ओतने परधानमंतरी।
'एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है' ई नाना पाटेकर का परसिद्ध डायलाग है। ऐसने आप भी एक ठो डायलाग बना सकते हैं-- 'एक आतंकवादी नेताओं को हिजड़ा बना देता है।' संसद पर हमला करवाने वाले अफजल को फांसी पर लटकाने में नेता लोग जैसन नौटंकी कर रहे हैं, ऊ यही तो दिखाता है। वैसे भी मच्छर औरो आतंकियों के बीच एतना समानता है कि हर बम बिस्फोटों की तरह डेंगू के लिए भी भारत सरकार पाकिस्तान औरो आईएसआई को दोषी ठहराकर अपना पल्ला झाड़ सकती है।
उस दिन अपनी प्रजाति पर गर्व करने वाला एक ठो मच्छर हमको मिला। उसने अपने औरो आतंकवादियों में जो समानता हमको बताई, उ हम आपको बताता हूं- -
दिल्ली पुलिस आतंकवादियों से डरती है, तो हमसे भी उनकी कंपकंपी छूटती है। आतंकवादियों के डर से बुलेट प्रूव जैकेट पहनने वाला जवान सब आजकल हमसे बचने के लिए मच्छर भगाने वाला क्रीम लगा रहा है। सच पूछिए, तो हम तालिबान जैसन आतंकियों का सबसे बड़का दोस्त साबित हो सकता हूं। कभियो तालिबान ने अफगानिस्तान में ड्रेस कोड लागू था, आजकल दिल्ली में हमने ड्रेस कोड लागू कर दिया है। बस ई समझ लीजिए कि मनचलों का हमने दिन खराब कर दिया है। का है कि दिल्ली की सुंदरियों का फंडा है- - कपड़े ऐसा पहनो, जो तन को ढंकने के बजाय उसको उघारे बेसी। लेकिन हमारे डर से आजकल इस फंडे से बालाओं ने तौबा कर ली है औरो पैर से सिर तक ढंककर निकलती हैं। कम कपड़ा पहनने वालियों के पास भी मनचले जा नहीं सकते, काहे कि वहां से मच्छर भगाने वाली क्रीम की बदबू आती है। अब आप समझ गए होंगे कि महीना भर से दिल्ली में एको ठो छेड़छाड़ की घटना काहे नहीं हुई है। ई मामला कुछ-कुछ वैसने है, जैसे आवारा भंवरा फूल तक तो पहुंचे, लेकिन उससे आ रही बदबू से ऊ बेदम हो जाए।
आश्चर्य की बात तो ई है कि अपने अस्तित्व को लेकर भी हम दोनों की सोच एके तरह की है। हम सोचता हूं कि जब तक एमसीडी औरो मेडिकल डिपाटमेंट में भरष्ट लोगों का बोलबाला है, हमारा कोयो कुछो नहीं बिगाड़ सकता, तो उधर आतंकवादियो सब निश्चिंत है कि जब तक भरष्टाचार, धरम औरो वोट का बोलबाला है, उनका कोयो कुछो नहीं बिगाड़ सकता। अब देखिए न, संसद पर हुए हमले में छह ठो जवान शहीद हो गए थे, लेकिन उनको का मिला? नेता सब को बचाने के चक्कर में ऊ बेचारे 'भूत' बन गए औरो हमला करवाने वाला अफजल हो गया 'हीरो'! हम तो कहते हैं कि ऊ लोग बुड़बक थे, इसलिए मर गए। अरे भइया, अगर आप भारत के सिपाही हैं, तो आपको पहिले ई तो पता कर ही लेना चाहिए न कि जिन आतंकवादियों के सामने आप छाती तानने जा रहे हैं, ऊ कश्मीरी औरो अल्पसंख्यक तो नहीं हैं। अगर ऐसा हो, तो संसद पर एटैक होने पर भी चुपचाप कोने में छिप जाइए, मरने दीजिए नेताओं को। आपका का जाएगा?
बहरहाल, हमको तो ई लगता है कि सरकार बेकारे आतंकवाद से लड़ने पर संसाधन लुटा रही है। हमरे खयाल से सरकार को बजाय आतंकवाद से सीधे लड़ने के, पहिले हम पर प्रयोग करना चाहिए। अगर ऊ हम पर कंटरोल कर लेती है, तो यकीन मानिए आतंकवादियों पर भी ऊ कंटरोल कर लेगी। अगर ऊ हम पर कंटरोल नहीं कर पाती, तो आतंकवाद पर कंटरोल करने की बात तो मुंगेरीलाल के हसीन सपनों जैसा है। अरे भइया, जब हम बिना धरम, जाति औरो वोट के हैं, तभियो सरकार से कंटरोल नहीं हो रहे, तो भला आतंकवादी कहां से कंटरोल होंगे, उनको तो इन सबका सहारा है!
'एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है' ई नाना पाटेकर का परसिद्ध डायलाग है। ऐसने आप भी एक ठो डायलाग बना सकते हैं-- 'एक आतंकवादी नेताओं को हिजड़ा बना देता है।' संसद पर हमला करवाने वाले अफजल को फांसी पर लटकाने में नेता लोग जैसन नौटंकी कर रहे हैं, ऊ यही तो दिखाता है। वैसे भी मच्छर औरो आतंकियों के बीच एतना समानता है कि हर बम बिस्फोटों की तरह डेंगू के लिए भी भारत सरकार पाकिस्तान औरो आईएसआई को दोषी ठहराकर अपना पल्ला झाड़ सकती है।
उस दिन अपनी प्रजाति पर गर्व करने वाला एक ठो मच्छर हमको मिला। उसने अपने औरो आतंकवादियों में जो समानता हमको बताई, उ हम आपको बताता हूं- -
दिल्ली पुलिस आतंकवादियों से डरती है, तो हमसे भी उनकी कंपकंपी छूटती है। आतंकवादियों के डर से बुलेट प्रूव जैकेट पहनने वाला जवान सब आजकल हमसे बचने के लिए मच्छर भगाने वाला क्रीम लगा रहा है। सच पूछिए, तो हम तालिबान जैसन आतंकियों का सबसे बड़का दोस्त साबित हो सकता हूं। कभियो तालिबान ने अफगानिस्तान में ड्रेस कोड लागू था, आजकल दिल्ली में हमने ड्रेस कोड लागू कर दिया है। बस ई समझ लीजिए कि मनचलों का हमने दिन खराब कर दिया है। का है कि दिल्ली की सुंदरियों का फंडा है- - कपड़े ऐसा पहनो, जो तन को ढंकने के बजाय उसको उघारे बेसी। लेकिन हमारे डर से आजकल इस फंडे से बालाओं ने तौबा कर ली है औरो पैर से सिर तक ढंककर निकलती हैं। कम कपड़ा पहनने वालियों के पास भी मनचले जा नहीं सकते, काहे कि वहां से मच्छर भगाने वाली क्रीम की बदबू आती है। अब आप समझ गए होंगे कि महीना भर से दिल्ली में एको ठो छेड़छाड़ की घटना काहे नहीं हुई है। ई मामला कुछ-कुछ वैसने है, जैसे आवारा भंवरा फूल तक तो पहुंचे, लेकिन उससे आ रही बदबू से ऊ बेदम हो जाए।
आश्चर्य की बात तो ई है कि अपने अस्तित्व को लेकर भी हम दोनों की सोच एके तरह की है। हम सोचता हूं कि जब तक एमसीडी औरो मेडिकल डिपाटमेंट में भरष्ट लोगों का बोलबाला है, हमारा कोयो कुछो नहीं बिगाड़ सकता, तो उधर आतंकवादियो सब निश्चिंत है कि जब तक भरष्टाचार, धरम औरो वोट का बोलबाला है, उनका कोयो कुछो नहीं बिगाड़ सकता। अब देखिए न, संसद पर हुए हमले में छह ठो जवान शहीद हो गए थे, लेकिन उनको का मिला? नेता सब को बचाने के चक्कर में ऊ बेचारे 'भूत' बन गए औरो हमला करवाने वाला अफजल हो गया 'हीरो'! हम तो कहते हैं कि ऊ लोग बुड़बक थे, इसलिए मर गए। अरे भइया, अगर आप भारत के सिपाही हैं, तो आपको पहिले ई तो पता कर ही लेना चाहिए न कि जिन आतंकवादियों के सामने आप छाती तानने जा रहे हैं, ऊ कश्मीरी औरो अल्पसंख्यक तो नहीं हैं। अगर ऐसा हो, तो संसद पर एटैक होने पर भी चुपचाप कोने में छिप जाइए, मरने दीजिए नेताओं को। आपका का जाएगा?
बहरहाल, हमको तो ई लगता है कि सरकार बेकारे आतंकवाद से लड़ने पर संसाधन लुटा रही है। हमरे खयाल से सरकार को बजाय आतंकवाद से सीधे लड़ने के, पहिले हम पर प्रयोग करना चाहिए। अगर ऊ हम पर कंटरोल कर लेती है, तो यकीन मानिए आतंकवादियों पर भी ऊ कंटरोल कर लेगी। अगर ऊ हम पर कंटरोल नहीं कर पाती, तो आतंकवाद पर कंटरोल करने की बात तो मुंगेरीलाल के हसीन सपनों जैसा है। अरे भइया, जब हम बिना धरम, जाति औरो वोट के हैं, तभियो सरकार से कंटरोल नहीं हो रहे, तो भला आतंकवादी कहां से कंटरोल होंगे, उनको तो इन सबका सहारा है!
Thursday, October 05, 2006
कैटरीना की स्कर्ट
लीजिए, खड़ा हो गया एक ठो औरो बवाल! कैटरीना स्कर्ट पहनकर अजमेर शरीफ दरगाह का गई, कट्टरपंथियों ने बवाल मचा दिया। कम कपड़े पर बवाल औरो उहो ऐसन देश में, जहां गरीबों को तन ढंकने के लिए पूरा कपड़ा तक नसीब नहीं होता, हमरी समझ से परे है। माना कि कैटरीना गरीब नहीं है, लेकिन देश में ऐसन करोड़ों गरीब महिला आपको मिल जाएंगी, जिनको टांग क्या, छाती ढंकने के लिए भी कपड़े नसीब नहीं होते। तो का दरगाह जाने का हक उनको नहीं है?
बताइए, ई दुनिया केतना अजीब है! गरीब गरीब बनकर अपने लिए दुआ भी नहीं कर सकता। आपको किसी दरगाह या इबादतखाना में जाना है, तो पहले भीख मांगकर पूरा तन ढंकिए, तब जाकर अपनी गरीबी दूर करने के लिए आप दुआ कर सकते हैं! बहुत बढि़या! गरीब को गरीबी से चिपकाकर रखने का इससे बढि़या फर्मूला धरम के ठेकेदारों को औरो कोयो मिलियो नहीं सकता। वैसे, एक ठो बात बताऊं, ई गरीबो सब न एकदम से बदमाश होते हैं। जबर्दस्ती हमेशा गरीबी से दूर भागने की कोशिश करते रहते हैं। अब जिस अमीरी को भोगने के लिए आप पैदा ही नहीं हुए हैं, उस चीज को पाने की कोशिशे काहे करते हैं? आप तो बस फटे-चिटे बुरके में दरगाह औरो इबादतगाहों में आते रहिए औरो मुश्किल से कमाई अपनी अठन्नी-चवन्नी दान पेटी में गिराते रहिए, ताकि धरम के ठेकेदार रईसी कर सकें औरो आपके लिए इबादतगाहों को महफूज रख सकें। तभिये न आप वहां आकर मत्था टेकेंगे औरो अपनी गरीबी दूर होने की आशा करेंगे।
वैसे, ई रिसर्च वाली बात है कि खुले देह में महिलाओं के इबादतगाहों में जाने से परॉबलम किसको है, भगवान औरो पीर को या फिर धरम के ठेकेदारों को? एक ठो मौलवी साहेब मिले, कहने लगे, 'महिलाओं का पूरा तन ढंककर रखना, धर्मशास्त्रों की शिक्षा है।' लेकिन ऊ ई नहीं बता पाए कि तन ढंका कैसे जाए! तन ढंकने के लिए कपड़ा चाहिए औरो कपड़ा आता पैसे से है। जब पैसा होगा ही नहीं, तो तन कहां से ढंका जाएगा? जब आप महिलाओं को पढ़ने-लिखने नहीं देंगे, उनको बाहर की दुनिया देखने नहीं देंगे, नौकरी-चाकरी नहीं करने देंगे, तो पैसा आएगा कहां से? ऊपर से तुर्रा ई कि आप फैमिली पलानिंग भी नहीं कराने देते हैं। घर का अकेला मर्द दर्जन के हिसाब से बच्चा तो पैदा कर सकता है, लेकिन सबका तन नहीं ढंक सकता। औरो जब बच्चे उघाड़ देह घूमेंगे, तो मांएं अपने तन पर कपडे़ कहां से लाएंगी?
सो, जब आप महिलाओं को एतने सारे बंधनों में बांधकर रखते हैं, तो फिर पीर-फकीर या भगवान के पास कम कपड़ों में जाने से उनको काहे रोकते हैं? रोकना ही है, तो अपने मन को रोकिए। श्रद्धालुओं औरो भक्तों के पैसों से खुद स्वर्ग का सुख भोगने के बजाए, अगर आपने दरगाह के बाहर ऐसी महिलाओं के लिए बुर्के की मुफ्त व्यवस्था की होती, जिनके पास कपड़े नहीं हैं या कम हैं, तो कैटरीनो आपसे मांगा हुआ बुर्का पहनकर चादर चढ़ाने जाती। फिर न आप दुखी हुए होते औरो नहिए आपका धरमशास्त्र। वैसे, महिलाओं को एतने सारे बंधनों में बांधकर रखना आपकी मजबूरियो है। का है कि आप कभियो उदार हो नहीं सकते औरो बिना बंधनों के आप महिलाओं को कैटरीना बनने से रोक भी नहीं सकते।
बहरहाल, अपना सिर धुनने और चिढ़ने से बचने के लिए आपका रचा बंधनों का यह संसार आपके लिए कारगर तो है, लेकिन का आपको ई पता है कि ईरानी मूल की एक मुस्लिम महिला महज हवाखोरी के लिए अंतरिक्ष गई थी?
बताइए, ई दुनिया केतना अजीब है! गरीब गरीब बनकर अपने लिए दुआ भी नहीं कर सकता। आपको किसी दरगाह या इबादतखाना में जाना है, तो पहले भीख मांगकर पूरा तन ढंकिए, तब जाकर अपनी गरीबी दूर करने के लिए आप दुआ कर सकते हैं! बहुत बढि़या! गरीब को गरीबी से चिपकाकर रखने का इससे बढि़या फर्मूला धरम के ठेकेदारों को औरो कोयो मिलियो नहीं सकता। वैसे, एक ठो बात बताऊं, ई गरीबो सब न एकदम से बदमाश होते हैं। जबर्दस्ती हमेशा गरीबी से दूर भागने की कोशिश करते रहते हैं। अब जिस अमीरी को भोगने के लिए आप पैदा ही नहीं हुए हैं, उस चीज को पाने की कोशिशे काहे करते हैं? आप तो बस फटे-चिटे बुरके में दरगाह औरो इबादतगाहों में आते रहिए औरो मुश्किल से कमाई अपनी अठन्नी-चवन्नी दान पेटी में गिराते रहिए, ताकि धरम के ठेकेदार रईसी कर सकें औरो आपके लिए इबादतगाहों को महफूज रख सकें। तभिये न आप वहां आकर मत्था टेकेंगे औरो अपनी गरीबी दूर होने की आशा करेंगे।
वैसे, ई रिसर्च वाली बात है कि खुले देह में महिलाओं के इबादतगाहों में जाने से परॉबलम किसको है, भगवान औरो पीर को या फिर धरम के ठेकेदारों को? एक ठो मौलवी साहेब मिले, कहने लगे, 'महिलाओं का पूरा तन ढंककर रखना, धर्मशास्त्रों की शिक्षा है।' लेकिन ऊ ई नहीं बता पाए कि तन ढंका कैसे जाए! तन ढंकने के लिए कपड़ा चाहिए औरो कपड़ा आता पैसे से है। जब पैसा होगा ही नहीं, तो तन कहां से ढंका जाएगा? जब आप महिलाओं को पढ़ने-लिखने नहीं देंगे, उनको बाहर की दुनिया देखने नहीं देंगे, नौकरी-चाकरी नहीं करने देंगे, तो पैसा आएगा कहां से? ऊपर से तुर्रा ई कि आप फैमिली पलानिंग भी नहीं कराने देते हैं। घर का अकेला मर्द दर्जन के हिसाब से बच्चा तो पैदा कर सकता है, लेकिन सबका तन नहीं ढंक सकता। औरो जब बच्चे उघाड़ देह घूमेंगे, तो मांएं अपने तन पर कपडे़ कहां से लाएंगी?
सो, जब आप महिलाओं को एतने सारे बंधनों में बांधकर रखते हैं, तो फिर पीर-फकीर या भगवान के पास कम कपड़ों में जाने से उनको काहे रोकते हैं? रोकना ही है, तो अपने मन को रोकिए। श्रद्धालुओं औरो भक्तों के पैसों से खुद स्वर्ग का सुख भोगने के बजाए, अगर आपने दरगाह के बाहर ऐसी महिलाओं के लिए बुर्के की मुफ्त व्यवस्था की होती, जिनके पास कपड़े नहीं हैं या कम हैं, तो कैटरीनो आपसे मांगा हुआ बुर्का पहनकर चादर चढ़ाने जाती। फिर न आप दुखी हुए होते औरो नहिए आपका धरमशास्त्र। वैसे, महिलाओं को एतने सारे बंधनों में बांधकर रखना आपकी मजबूरियो है। का है कि आप कभियो उदार हो नहीं सकते औरो बिना बंधनों के आप महिलाओं को कैटरीना बनने से रोक भी नहीं सकते।
बहरहाल, अपना सिर धुनने और चिढ़ने से बचने के लिए आपका रचा बंधनों का यह संसार आपके लिए कारगर तो है, लेकिन का आपको ई पता है कि ईरानी मूल की एक मुस्लिम महिला महज हवाखोरी के लिए अंतरिक्ष गई थी?
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