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फ़रवरी, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिंदी ब्लॉग जगत को सलाम

इंडीब्लॉगीज अवॉर्ड के परिणाम की घोषणा हो चुकी है। ब्लॉगर्स सिरमौर समीर लाल जी को बधाई भेजी, तो आप सभी को धन्यवाद कहने को दिल चाहा। परिणाम की दृष्टि से यह जितना अच्छा वोटिंग के मामले में रहा, मेरे खयाल से इससे बेहतर यह हिंदी ब्लॉगर्स परिवार को समृद्ध करने के मामले में रहेगा। अपने प्रति समर्थन जताने के लिए मैं अपने सभी शुभेच्छुओं का धन्यवाद करना चाहता हूं। मुझे उन लोगों के लिखे एक-एक शब्द याद हैं, जिन्होंने ब्लॉगर बनने के बाद से अब तक मेरे ब्लॉग पर अपने कमेंट भेजे। विश्वास कीजिए, मैं जो भी लिखता हूं, उसमें आप सब के प्रोत्साहन का योगदान ज्यादा रहता है, मेरे दिमाग का योगदान कम। हां, एक चीज मैं और स्पष्ट करना चाहता हूं और वह यह कि मैं तकनीकी मामले की ज्यादा जानकारी नहीं रखता, इसलिए पोस्ट लिखने के अलावा, मैं कुछ नहीं कर पाता। यहां तक कि किसी ब्लॉग पर कमेंट करने में मेरे छक्के छूट जाते हैं। (पोस्ट के मामले में मैं पूरी तरह सुर का ऋणी हूं, बिहारी बाबू के तमाम वाणों की मालकिन वही हैं। मैं तो अदना-सा अवैतनिक कर्मचारी हूं) इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि हर उस पोस्ट, जो हकीकत को सीधे या घुमा-फिराकर भ

बजट, यानी बदसूरत नगर वधू

आजकल जहां देखिए, वहां बजट की नौटंकी चल रही है, लेकिन हमको इसमें कोयो मजा नहीं आता। अब बजट हमको ऐसन पियक्कड़ आदमी लगने लगा है, जो साल में एक दिन सरकार नामक दारु पीकर टुल्ल हो जाता है औरो चौराहे पर खड़े होकर ई साबित करने में एड़ी-चोटी लगा देता है कि वही देश का भगवान है, भाग्य विधाता है। अब का है कि दारु पी लेने के बाद होश तो रहता नहीं, सो ऊ भूल जाता है कि देश में बाजार नामक दारुओ मौजूद है, जिसका नशा उससे बहुते बेसी है। तभिये तो देश एक दिन बजट की सुनता है औरो बाकी 364 दिन बाजार की ताल पर नाचता रहता है। वैसे, आप चाहें तो बजट को नगर वधू भी कह सकते हैं। मतलब ऐसन सुंदरी, जिसको आप बस देख सकते हैं, भोग नहीं सकते। अक्सर इस नगर वधू की शकल ठीक नहीं होती, सो वित्त मंत्री बत्तीस ठो क्रीम-पाउडर लगाकर इसको चमकाते हैं औरो फिर संसद में पेश कर देते हैं। लेकिन दिक्कत ई है कि जल्दिये इसका मेकअप धुल जाता है औरो सरकार की पोल-पट्टी खुल जाती है। सबसे बड़ी बात तो ई कि इस सुंदरी की महफिल में अब गरीबों की कोई चरचा नहीं होती, अगर होती भी है, तो गरीब स्टेज से एतना दूर होते हैं कि उन्हें कोई तृप्ति नहीं मिलती। उन्हो

चुनिए सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉग

हिंदी ब्लॉगर परिवार के तमाम सदस्यों को शुक्रिया कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इतने बड़े-बड़े धुरंधरों के बीच आपने मेरे ब्लॉग को भी किसी काबिल समझा, इसके लिए हम तहे दिल से आपके शुक्रगुजार हैं। मैं जीतू भैय्या और शशि जी और उन सभी वरिष्ठ चिट्ठाकारों का भी आभारी हूं, जिनकी उपस्थिति ने मुझे ब्लॉग जगत में कदम रखने की प्रेरणा दी। फिर सबसे बड़ा धन्यवाद सुर नामक उस प्राणी का, जिसने मुझे लिखने का प्लेटफॉर्म दिया। और अंत में एक निवेदन आप सभी विद्वतजनों से कि अब जब आप लोगों ने यहां पहुंचा ही दिया है, तो अपने कंप्यूटर महाराज के चूहे को थोड़ा और क्लिक करें और खिताब का रास्ता आसान कर दें। वोटिंग के लिए धन्यवाद एडवांस में।

प्यार के साइड एफेक्ट भी तो देखिए!

वैलंटाइन डे शुभ-शुभ बीत गया। मां-बापों ने राहत की सांस ली कि सड़क पर उनका तमाशा निकलने से बच गया, तो पुलिस और प्रशासन ने इसलिए राहत महसूस की कि बजरंगी बदमाशी नहीं कर पाए। हालांकि अपने बजरंगी भाई सब वैलंटाइन डे पर प्यार-मोहब्बत के प्रदर्शन का विरोध तो करते हैं, लेकिन हमारे खयाल से उनको ऐसा नहीं करना चाहिए। ऊ भूल रहे हैं कि ऊ एक ऐसन ताकत का विरोध कर रहे हैं, जिसका ऊ जबर्दस्त फायदा उठा सकते हैं। का है कि प्यार भले ही पनपता स्कूल-कालेजों, मोहल्लों और आफिसों में है, लेकिन पलता औरो परवान तो चढ़ता आबादी से दूर खेत-खिलहानों, बाग-बगीचों, महलों- मकबरों के खंडहरों में ही है न। तो बात ई है कि पेड़-पौधे बढ़े औरो महलों व मकबरों के खंडहर कायम रहे, इसकी दुआ ऊ हमेशा करते रहते हैं। आप का समझते हैं कि मक्का-बाजरे के खेत तमाम मौसमी गड़बडि़यों के बावजूद दो-तीन महीने में अपने-आप लहलहा उठते हैं औरो सरकार की उपेक्षा के बावजूद चौंदहवी -पंद्रहवीं सदी के महल-मकबरे अब तक अपने दम पर महफूज हैं? अरे भैय्या, सब परेमियों के दुआओं का असर है! बजरंगी झाडि़यों और खंडहरों से लैला-मजनुओं को पकड़ने का अभियान तो चलाते हैं, ले

हीर-रांझा की कहानी में ट्विस्ट

ग्लोबलाइजेशन के इस युग में 'प्रेम रोग' ने 'महामारी' का रूप ले लिया है। तमाम लोग कहते हैं कि प्रेम के ये कीटाणु वेस्टर्न कल्चर ने फैलाये हैं, लेकिन शायद यह पूरी तरह सच नहीं है। इसके बजाय अगर ये कहा जाए कि प्रेम का आज का स्वरूप वेस्टर्न कल्चर की देन है, तो ज्यादा सही होगा, क्योंकि प्रेम तो भारतीय संस्कृति में सदियों से रचा-बसा रहा है। हां, यह बात और है कि ऐसा उच्छृंखल वह कभी नहीं रहा, जैसा कि आज है : अक्सर प्रेम के सौदागरों को हीर-रांझा या रोमियो-जूलियट की उपाधि दी जाती है। लेकिन अब के प्यार के परिंदों के लिए शायद यह उपयुक्त नहीं। हीर- रांझा होना आज के समय में बहुत मुश्किल है। अब न तो रांझा का वह दिल है, जो सिर्फ हीर के लिए धड़कता है और न ही वह हीर है, जिनकी आंखें रांझा के दीदार के लिए तरसती थीं। कहते हैं न कि सस्ती चीज की कीमत नहीं होती, तो ऐसा ही कुछ प्यार के साथ हुआ है। प्यार अब इतना सस्ता हो गया कि उसकी कीमत ही नहीं बची। शायद यही वजह है कि दिल लगाना आज जितना आसान है, उतना ही आसान है उसका टूटना भी। हीर-रांझा को छोडि़ए, अब तो लोग देवदास तक नहीं होते। दिल के तार आए दिन ए

गिनीज बुक में नाम

उस दिन एक ठो परसिद्ध पतरिका पर जब हमरी नजर पड़ी, तो हम चौंक गए। का है कि बिहार के मुख्य मंतरी को उसमें देश का नम्बर वन मुख्य मंतरी बताया गया है। हमको तो विश्वासे नहीं हुआ। अभिये तो लालू जी ने कहा था कि बिहार कभियो सुधर नहीं सकता, फिर अचानक ई कैसे हो गया...। पहले तो लगा कि फागुन का महीना शुरू हो चुका है, इसलिए होली विशेषांक के फेर में पतरकार सब बौरा गए होंगे। लेकिन चुटकुला जैसन लगने वाली ई बात थी बहुत सीरियस। हमरे खयाल से ई तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज होने वाली बात है। का है कि उसमें ऐसने चीजों को जगह मिलती है न, जो अब तक हुआ न हो। तो बिहार में भी ऐसन अभी तक नहीं हुआ था। वहां की एक पूरी पीढ़ी बच्चे से जवान औरो जवान से बूढ़ा होने के कगार पर पहुंच गई, लेकिन वहां के मुख्यमंतरी का नाम कभियो सुधरल मुख्यमंतरी के लिस्ट में टाप पर नहीं रहा। हां, नीचे से टाप में उनका नाम जरूर शुमार होता रहा है। ऐसन में हमको लगता है कि नितीश बाबू को गिनीज बुक में अपने नाम की दावेदारी कर ही देनी चाहिए। हालांकि हमको इसमें कुछ परोबलम भी नजर आ रहा है। जैसे ई कि दुनिया तब हंसेगी कि देखो विश्व के सबसे बड़े

इक चेहरे पे कितने चेहरे...

हम आजकल परेशानी में हूं। हम ई नहीं समझ पा रहा हूं कि वास्तव में हम जा कहां रहा हूं। हमरे चेहरे पर एतना चेहरा लग गया है कि हम इहो भूल गया हूं कि हमरा असली चेहरा कैसन है! वैसे, हम अकेला ऐसन नहीं हूं, दुनिया के तमाम लोगों की स्थिति ऐसने है। हमको रोज ऐसन दस ठो जमूरा मिलता है, जिनका करतब देखके हमरे लिए ई डिसैड करना मुश्किल हो जाता है कि ऊ आदमिये है या कुछो और। अपने रेल वाले नेताजी को ही लीजिए। उस दिन पूजा पर बैठे शताब्दी टरेन की इस्पीड से झूम रहे थे। पहले तो लगा कि रेल को दौड़ाते हैं, इसलिए उसके इस्पीड से झूमने की इनको आदत लग गई होगी, लेकिन तनिए देर में पता चला कि हुजूर तंत्र-मंत्र में लीन हैं। खुद बिहार से 'भूत' हो गए, तो अब ओझा बनकर दूसरों का भूत भगा रहे हैं। हमने कहा, 'एक आपका चेहरा उहो था, जब आपने बिहार में भूत-परेत भगाने वाले पाखंडियों को जेल में डालने के लिए कानून बनाया था औरो एक चेहरा ई है कि आप खुदे पाखंडी बने बैठे हैं! आपका असली चेहरा कौन-सा है?' जनाब उबल पड़े। बोले, 'ई चेहरा-बेहरा का होता है? जब हम सत्ता में होता हूं, तो कानून बनाता हूं औरो जब सत्ताविहीन होता ह