Wednesday, December 12, 2007

बेगानी शादी में...

दुपहरिया तक गली में पूरा रोड घेरकर टेंट-शामियाना टंग गया था। आखिर माजरा का है, खिड़की से हमने नीचे देखा। ऐन नाक के नीचे घर के गेट पर टेंट-शामियाना देख हमरी बांछें खिल गईं-- आज तो दावत उड़ाने का मौका मिलबे करेगा। आंखों ने देखा, उन्हें बड़ी तृप्ति मिली, लेकिन जीभ को मजा नहीं आया- - का पता दिल्ली है, पड़ोसी भोज में बुलैबे न करे। दिमाग ने खबर पेट को भी पहुंचाई। वहां जठराग्नि ऐसी जली कि कई हजार चूहे एक साथ बगावत पर उतर आए!

अभी मुंह में पानी भरना शुरुए हुआ था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। एक थका-हारा इंसान गेट पर खड़ा था, परिचय से पता चला पड़ोसी महाराज हैं। निमंत्रण देने आए होंगे, ई सोचकर हमने कुछ बेसिए आवेश में उनको बिठाया। ऊ मुद्दे पर आए, 'हमरे यहां शादी है, पानी चाहिए। हमरा घर दूर है, आपके नल से कनेक्शन ले लूं।'

मन ने कहा, 'निमंत्रण तो दिए नहीं, मुंह उठाए पानी मांगने आ गए। पार्टी नहीं, तो पानी कैसन? मुफ्त में दिन भर मोटर चलाकर अपना पानी औरो बिजली बिल हम काहे बढ़ाएं?' फिर खयाल आया कि पानी लेंगे, तो निमंत्रण देबै करेंगे, लेकिन मन ने कहा, 'ऐसन इरादा होता तो कार्ड के संग आते।'

खैर, अपनी जेब पर कैंची चलती देख हमने पड़ोसी महोदय को टाला, 'मोटर खराब है। हम अपने दो दिन से पानी के लिए परेशान हूं।' पड़ोसी महोदय ने महसूस किया कि मैकेनिक बुलाने की व्यग्रता में उनकी जेब बढ़िया कटेगी। सो बेचारे खिसक लिए, लेकिन हमरे लिए स्थिति खराब कर गए। नीचे से जब हिंदुस्तानी मसालों की महक नाक में घुसनी शुरू हुई, तो पेट के चूहे तालिबानी हो गए। मेहरारू ने दिखाया, केतना बढिया गुलाब जामुन बना है, एकदम गरमागरम... पुलाव, हैदराबादी बिरयानी, बटर चिकन, गोलगप्पे का स्टॉल...।

सचमुच, खिड़की से टेंट के अंदर देखकर हमको कुछ-कुछ होने लगा था। हालत जब बेसी बिगड़ गई, तो हमने पिलान बनाया- चलो, होटल ही चलते हैं। तन-मन को शांति मिल जाएगी।

तैयार होकर नीचे उतरे, तो गेट पूरी तरह बंद। एक गेट शामियाने में अटकी थी, तो दूसरे पर कैटरिंग वालों ने बर्तन डाल रखे थे। स्पाइडरमैन बन हम तो पार हो जाते, लेकिन श्रीमती जी तो आजकल पिलेन रोड पर भी डगमग चलती हैं...।

अब का करें? पड़ोसी को कोसते वापस बालकनी में आ गए। मन पड़ोसी की इंसानियत को कोस रहा था-कमबखत ने जब निमंत्रणे नहीं दिया, तो हमरे सामने का रोड काहे जाम किया। रोड तो छोडि़ए, घर का गेट तक बंद! शादी उसके यहां है, हम काहे कष्ट सहें।

दिमाग बेसी गरम देख मेहरारू ने पानी डाला, 'बेटी तो समाज की होती है, तनिक कष्ट सहने में का जाता है? सबर कीजिए।'

हमने सबर कर लिया। हमने जली जीभ से उनकी डीजे की चीख तक सुनी औरो सह ली। शोर ने टीवी तक नहीं देखने दिया, तभियो दुखी नहीं हुए। जब तारे की छांव में लड़की विदा हुई, तब तक डीजे चीखता रहा औरो बिना नींद के भी हम सबर करते रहे। लेकिन तब हम बेसबर हो गए, जब चार बजे भोर में दिल्ली में भूकंप आ गया। ऊ तो कहिए कि हमरी खटिया बस डोलकर रह गई! भूकंप बेसी तगड़ा होता, तो हमरी जिंदगी की खाट खड़ी हो जाती। काहे कि पड़ोसी महोदय की किरपा से दोनों गेट तभियो जाम था। तभिये से सोच रहा हूं पड़ोसी धरम का मतलब का होता है?

Friday, December 07, 2007

बार बाला से किसकी मौज

दिल्ली के पियक्कड़ सब आजकल बहुते खुश हैं। अब बार में सुंदरी के हाथ से सुरा जो मिलेगी, मतलब नशा का डबल डोज न हो गया! हमको तो लगता है कि अब दिल्ली का कायाकल्प हो जाएगा।

सब कहता है कि इससे ला एंड आर्डर की स्थिति बिगड़ेगी, लेकिन हमको लगता है सुधर जाएगी। एक बार 'बार बाला' सब को काम पर पहुंचने दीजिए, फेर देखिएगा रोड पर कैसे मवालियों का अकाल हो जाता है। सब बांका रात भर मयखाने में रहेगा औरो दिन भर हैंगओवर में। आप छेड़ने की बात करते हैं! रोड पर लड़कियां तरस जाएंगी, कोई उनको देखने वाला नहीं मिलेगा। और बार में...? बाला सब उनको एतना टंच पिला देंगी कि उनसे गिलास नहीं संभलेगा, आप बंदूक-पेस्तौल चलाने की बात करते हैं। औरो ऐसने चलता रहा, तो एक दिन दिल्ली के सब बदमाश डैमेज लिवर औरो किडनी के साथ एम्स में भरती होकर इलाज के अभाव में मर जाएगा। पूछ लीजिए अपने रवि बाबू से, इसका इलाज केतना महंगा होता है। न हींग लगा न फिटकरी औरो रंग देखिए क्राइम कंट्रोल केतना चोखा हो गया... आप सरकार को बेकूफ समझते हैं। हां, कुछ भलो लोग मरेगा, लेकिन का कीजिएगा, कुछ पाने के लिए कुछ तो गंवाना ही पड़ता है।


आप बूझ नहीं रहे हैं कि एक तीर से केतना शिकार हो गया। अब सरकार का रेवेन्यू तो बढ़वे करेगा, ऐसन तथाकथित बुद्धिजीवियो सब निबट जाएगा, जिसको बिना पिये बौद्धिक बहस में मजे नहीं आता है या ई कह लीजिए कि जो पीने के बाद ही बुद्धिजीवी बन पाता है। होश में रहेगा, तब न सरकार की आलोचना करेगा। 'बार बाला' पिला के एतना टाइट कर देगी कि सरकार को गटर में फेंकते-फेंकते उ खुदे गटर के बगल में लुढ़क जाएगा।


सरकार की मौज तो औरो सब है, जैसे- लोग जब मयखाना में पैसा बहाएगा, तो अवैध निरमाण के लिए पैसे नहीं बचेगा, लोग कारो नहीं खरीद पाएगा। फिर सरकार को कोर्ट में अवैध निरमाण के वास्ते फजीहत नहीं झेलनी पड़ेगी। ऐसे में कोयो बच्चा को प्राइवेट स्कूल में नहीं भेज पाएगा? मतलब सब सरकारिये स्कूल में पढ़ेगा। सरकार कहेगी- देख लो प्रशासन, अवैध निर्माण खतम... शिक्षा का स्तर सुधार दिया, परदूषण औरो टरैफिक कंट्रोल हो गया। फायदा औरो सब है। हमर ऐगो दोस्त जब मुंबई के बियर बार में जाता था, तो बार डांसर को हजार रुपया टिप देते भी ऐसे शर्माता था, जैसे देना तो उसको दस हजार था, लेकिन चेकबुक घरे भूल आया। यही बात यहां भी होगी। विशवास कीजिए, जल्दिये दिल्लीवाला सब पांच रुपया को लेकर ऑटो वाला से हुज्जत करना छोड़ देगा। लोग का दिल बड़ा हो जाएगा।


वैसे, मौज तो बिना पट्टा के घूमे वाला उ जंतुओं सब का हो जाएगा। जब लोग सब पीके यहां-वहां लुढ़कल रहेगा, तो जंतु सब को 'टांग उठाने' के लिए हर चार कदम पर एगो खुला मुंह तो जरूरे मिल जाएगा। झूठे पूरे पार्क का चक्कर लगाना पड़ता है।


मौज 'बार बाला' औरो बार मालिको सब का है। पांच 'पटियाला' के बाद, गिलास में खाली सोडे गिरेगा, लेकिन दाम पूरा शराब के आएगा। मौज समाज का भी है। सामाजिक समरसता आ जाएगी। शराब के एतना नशा के सामने बाकी सब नशा लोग भूल जाएगा। मतलब अब निरीह लोग सब को सत्ता के नशा या पद औरो पैसा के नशा से घबराने की जरूरत नहीं होगी। ऐसन समाज की कल्पना तो प्लूटो और अरस्तूओं ने नहीं किया होगा!