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महिलाओं के सखा बनें पुरुष

प्रिय भक्तो, पिछले कुछ सालों से जन्माष्टमी के दिन मैं बड़ा व्याकुल महसूस करता हूं। मुझे पता चला कि पृथ्वी लोक पर सबसे ज्यादा पॉपुलर भगवानों में मैं शीर्ष पर हूं, लेकिन सच पूछो तो अपनी पॉपुलैरिटी को लेकर मैं खुद ही कन्फ्यूज्ड हूं। इतना पॉपुलर होने का मतलब है कि लोग मेरे विचारों से प्रभावित होंगे। उन्हें लगता होगा कि मैं उनका आदर्श हूं, लेकिन समझ नहीं आ रहा कि अगर मैं घर-घर पूजा जाता हूं, सबसे पॉपुलर हूं और आदर्श भी, तो फिर मेरे विचारों की, मेरे आदर्शों की धज्जियां वहां कैसे उड़ रही हैं! मुझसे जुड़ा कोई भी धर्मग्रंथ, कोई भी पुराण देख लीजिए, महिलाओं को मैंने सबसे ज्यादा मान दिया है। जिस समय पुरुषों का राज था, वे समाज को लीड करते थे, तब भी मैंने गोपियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल किया। उन्हें पुरुषों के बराबर दर्जा दिया। जहां कृष्ण हैं, वहां गोपियां हैं। बिना गोपियों के कृष्ण की कथा कभी पूरी नहीं होती। यह महिला सशक्तिकरण का मेरा तरीका था। मैंने उन्हें घर की चारदीवारी से बाहर निकाला, वे मेरे साथ नि:संकोच आ सकती थीं, रास में शामिल हो सकती थीं। कृष्ण के नाम पर उनके घरवालों ने उन्हें

मोदी से डरने की जरूरत नहीं है

जब भी यह पढ़ता हूं कि मुसलमान नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से डर रहे हैं, तो मुझे अजीब सा लगता है। सवाल है कि क्या देश के मुसलमानों को सचमुच मोदी से डरने की जरूरत है? क्या सच में मोदी के आने से मुस्लिमों पर कहर टूट पड़ेगा या मुस्लिम धर्म खतरे में आ जाएगा? मुझे नहीं लगता कि मोदी के हिंदुत्व से किसी खास धर्म के लोगों को डरने की जरूरत है। अगर सत्ता द्वारा किसी एक खास धर्म का समर्थन करने से बाकी धर्म खत्म हो जाते या बाकी धर्म के लोगों की हालत खराब हो जाती, तो भारत से हिंदुओं का कब का नामोनिशां मिट गया होता। कभी बौद्ध और जैन धर्म ने राज सत्ता के समर्थन के जरिए ही ऊंचाइयों को छुआ था, लेकिन वे हिंदू धर्म का अस्तित्व नहीं मिटा पाए। मुझे नहीं लगता कि मोदी प्रधानमंत्री बनकर मुस्लिमों को खत्म करने के लिए जजिया कर से भी बड़ा घृणित कदम उठा सकते हैं। अगर वे ऐसे कदम उठा भी लें, तो मुस्लिमों को वे खत्म नहीं कर सकते, क्योंकि जजिया देकर भी हिंदू इसी देश में शान से जिंदा रहे हैं। मुसलमानों के मन में लगातार यह बात बिठाई जा रही है कि बीजेपी आई, तो वे अपना खात्मा समझें। देसी-विदेशी कठमुल्