Monday, September 17, 2007

राम सेतु की पंचायत में अम्मा

कुल की नैया डूबती देख आखिरकार अम्मा को मैदान में डैमेज कंटरोल के लिए कूदना ही पड़ा। ऐसे तो ऊ हर समय अपने बिगड़ैल बच्चा सब का कान उमेठते रहती हैं, लेकिन बचवा सब है कि सुधरने का नाम ही नहीं लेते। अम्मा एक झगड़ा निबटाती नहीं कि बचवा सब दूसरे झगड़ा में उनको घसीट लेता है। अभिए तो उन्होंने परमाणु मुद्दे पर किसी तरह सेथ-मेथ कर तलाक को टाला था कि बचवा सब राम का अस्तित्व ही मिट्टी में मिलाने पर तुल गए औरो उनको मैदान में कूदना पड़ा।

अम्मा का मानना है कि वामपंथियों को छेड़ना अलग बात है औरो बजरंगियों को छेड़ना अलग, लेकिन बचवा सब है कि समझने को तैयारे नहीं है। खैर, अम्मा पंचों के सामने पेश हुई हैं औरो डैमेज कंटरोल कर रही हैं, आखिर 'पापी' वोट का सवाल है -

पंच: आपका कुल राम को नहीं मानता?
अम्मा: नहीं हुजूर, ऐसा नहीं है। अब का है माई-बाप कि बचवा सब नादान हैं, अभी राजनीति सीखिए रहे हैं, इसलिए गलती हो गई। अब आप ही देखिए न, अगर इनको देश चलाना आता, तो सरकार हमरे इशारे पर काहे नाचती? परधानमंतरी डमी काहे होता?

पंच: तो आप उनको राजनीति सिखाती काहे नहीं हैं?
अम्मा: हुजूर, ऐसा है कि अगर वे राजनीति सीख लेंगे, तो हमरी तो मिट्टी पलीद हो जाएगी। फिर ऊ राजनीति सीख कर करेंगे का? अपने भरोसे चुनाव जीत नहीं सकते। अगर गांधी टाइटिल का नेता नहीं हो, तो हमरी पारटी को कोयो वोटो नहीं देता!

पंच: तो इसके लिए गुनाहगार के है?
अम्मा: हुजूर, दिक्कत ई है कि हमरे परिवार में पढ़ने-लिखने की परंपरा नहीं है, सब बस खानदानी नेता होते हैं, इसलिए 'बौद्धिक संगठनों' को चलाने का हम ठेकेदारी दे देते हैं। आरकियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया भी ठेका पर ही है। हमरे परिवार के राज में सब दिन इसकी ठेकेदारी उन लोगों के पास रही है, जिनसे हमरा अभी-अभी हनीमून खतम हुआ है, लेकिन तलाक बाकी है। परमाणु मुद्दे पर खिसियाए इन्हीं मार्क्स व लेनिन के भक्तों ने हमको फंसा दिया हुजूर।

पंच: तो आप ई कहना चाहती हैं कि आरकियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया बेकार संस्था है?
अम्मा: भगवान झूठ न बुलवाए हुजूर, लेकिन आप ही बताइए, आज तक जिस संस्था ने ढंग का देश का एक इतिहास नहीं ढूंढा, ऊ भला राम के अस्तित्व के बारे में कहां से कुछ बोलेगा?

पंच: तो ऊ ढूंढता काहे नहीं? आप तो रिमोट से देश चलाती हैं, आप ही कुछो कीजिए?
अम्मा: हुजूर, ऐसा है कि अपने देश का सरकारी विभाग तो सामने का चीज नहीं देख पाता, भला त्रेता युग के बारे में कहां से पता करेगा? उसके लिए जमीन खोदना होगा, सागर छानना होगा, लंका जाना होगा... अब अगर एतना ही मेहनत करना हो, तो लोग सरकारी नौकरी काहे करेगा? फिर हम नई चीजों को ढूंढते ही कहां हैं? देखिए न, रिलायंस रोज एक ठो तेल औरो गैस का कुआं खोज लेता है देश में, लेकिन सरकारी कंपनियां साठ साल में दसो ठो नहीं ढूंढ पाईं!

पंच: खैर, सजा के भुगतेगा?
अम्मा: हुजूर, भाजपाइयों के बात पर मत जाइए, उन्हीं लोगों ने राम जी वाले पुल पर पेट्रोल डाला था, हम तो बस बारूद ले के बगल से गुजर रहे थे कि आग लग गई! दंड तो उन्हीं को मिलना चाहिए।

खैर, पंचायत खतम हो गई. फैसले के लिए अभी गुजरात इलेक्शन तक इन्तजार करना होगा.

Saturday, September 08, 2007

चैनल वाले बाबा

मिसिर जी ने टीवी देखकर अपनी मेहरारू को बुलाया। चैनलों पर सरौते वाले बाबा का आशरम दिखाया जा रहा था। चप्पलों का ढेर, घायलों की लाइन, लोगों का हुजूम... मिसिर जी ने मेहरारू को 'कल तक' चैनल दिखाया। वहां का अल्टरा-मॉड एंकर चीख-चीख कर इस कांड के लिए मध्य परदेश सरकार को कोस रहा था। ऊ वहां के एसपी से पूछ रहा था कि बाबा पर आईपीसी का कौन-कौन धारा लग सकता है कि ऊ जेल में सड़ जाए।

एंकर की बात सुन मिसिर जी का मन भन्ना गया, 'सबसे पहले तो तुम्ही पर आईपीसी की सब धारा लगा दी जानी चाहिए कि चैनल बंद हो जाए। पांच दिन पहले तुम्ही तो अपने चैनल पर सरौते वाले बाबा का गुणगान कर रहे थे, अब घडियाल जैसे रो क्यों रहे हो?' मिसिर जी का तो मन कर रहा था कि टीवी से खींच कर झुठ्ठे एंकर को पटक दे, लेकिन हकीकत में ऐसा ऊ ऐसा कर नहीं सकते थे, सो मन मसोस कर रह गए।

एंकर से फारिग हो मिसिर जी ने मेहरारू की खबर ली, 'देख लीजिए नजारा... पूरी दुनिया के हस्पताल के डाकडर मर गए, जो आप इलाज के लिए इस बाबा से अपनी आंख में सरौता डलवाना चाहती थीं। हम तो पहले ही कह रहे थे न कि ई चैनल वाले लोगों को बरगलाते हैं... बाबाओं से इनकी सेटिंग है...।'

ई कहते-कहते मिसिर जी ने रिमोट दबाकर चैनल आगे बढ़ाया। अब टीवी पर 'जी-वन टीवी' चैनल चल रहा था। एक मोटा-सा थुलथुल रिपोर्टर नदी किनारे बने श्मशान में एक बाबा के चरण छू रहा था। मेहरारू ने मिसिर जी को टोका, 'देखिए, देखिए... कैसे इत्ते बड़े चैनल का पतरकार बाबा के चरण धोकर पी रहा है औरो आप कहते हैं कि बाबा ढोंगी है।' मिसिर जी देगी मिरिच जैसन लाल हो गए, 'उसको चैनल का मालिक बाबाओं के चरण धोकर पीने के लिए ही तनखा देता है, तो ऊ पीएगा ही।' मिसिर जी अभी भी रुके नहीं थे, 'मिसराइन जैसन लोगों को मूरख बनाने के लिए पता नहीं चैनल वालों को का का करना पड़ता है... बेचारे चैनल वाले!'

अभी मिसिर जी की बात समाप्त भी नहीं हुई थी कि उनका बड़का बेटा आ गया, 'पापा पापा... हम संजय दत्त वाली माता जी का मंदिर देखने कब जाएंगे? मम्मी कह रही थीं कि उसके बाद हम लोग अमिताभ बच्चन वाले भगवान जी के मंदिर भी देखने जाएंगे।'

बेटे का गप्प सुनकर मिसिर जी ने अपना माथा पकड़ लिया। अब वह सुपुत्र के कोड वर्ड को डीकोड कर रहे थे, 'संजय दत्त वाली माता जी का मंदिर... मतलब वैष्णो देवी का मंदिर औरो अमिताभ बच्चन वाले भगवान के मंदिर... मतलब सिद्धि विनायक मंदिर, बालाजी मंदिर, अक्षरधाम मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर...।'

मिसिर जी का सिर दुखने लगा था। उन्हें भगवान पर तरस आने लगा, 'अमिताभ बच्चन वाले भगवान का मंदिर... संजय दत्त वाली माता जी का मंदिर... बताइए ई है चैनल की माया। इन चैनल वालों की किरपा से भगवानो की औकात कम हो गई। वैष्णो देवी की अपनी ख्याति कम थी कि संजय दत्त उनका बरांड एम्बेसेडर बन गया औरो मेरा छोटुआ उनको संजय दत्त की माता जी बता रहा है...।'

मिसिर जीं का मन कर रहा था कि उ टीवी को फोड़ दे लेकिन उ रुक गए. आख़िर जिस चीज ने भगवान की औकात कम कर दी ओरो बाबाओं की बढ़ा दी उससे भला कोयो कैसे पंगा ले सकता है!