Thursday, May 31, 2007

राष्ट्रपति की कुर्सी, मंगरू की उम्मीदवारी

देश को एक अदद राष्ट्रपति चाहिए। पूरा देश आजकल उसी की खोज में व्यस्त है, लेकिन एको ठो योग्य उम्मीदवार पर सहमति नहीं बन पा रही। अब जबकि कांग्रेस, बीजेपी से लेकर बसपा तक इस नेशनल टैलेंट हंट शो में जोर आजमाइश कर रहा है, हमको लगता है कि हमरा मंगरू इस पोस्ट के लिए सबसे पकिया उम्मीदवार है। का है कि राष्ट्रपति बनने के लिए अब तक तमाम पार्टियों ने जिस-जिस टैलेंट की बात की है, अपना मंगरू उन सब पर सोलहो आना खरा उतरता है।

मंगरू की सबसे बड़की खासियत ई है कि ऊ सब दिन से दबा कुचला रहा है, इसलिए ऊ बोलता बहुत कम है। ऐसन में राष्ट्रपति बनने के बाद ऊ सरकार या संसद के किसी भी ऊटपटांग हरकत के बारे में कभियो कुछो नहीं बोलेगा, इसकी गरंटी है। सोनिया को 'लाभ का पद' के दायरे से बाहर करने की तो बाते छोड़िए, अगर सरकार देश को बेचने का अध्यादेशो लेके आ जाए, तभियो ऊ कुछो नहीं कहेगा। ऐसने अगर सरकार चाहे, तो ऊ एक नहीं हजारों अफजल गुरु को फांसी की तख्ती से उतार देगा औरो सरकार का वोट बैंक मजबूत करने में पूरा मदद कर करेगा।

उसकी दूसरी खासियत ई है कि ऊ निपट गंवार है, मतलब ई कि ऊ कभियो सरकारी फैसलों पर उंगली नहीं उठाएगा। केंद्र सरकार जब चाहे, तब राज्यों के गैरकांग्रेसी सरकार को धमका सकती है, टपका सकती है, विपक्षियों को संसद से बाहर फिंकवा सकती है औरो यहां तक कि इमरजेंसियो लगवा सकती है... यानी मंगरू के राष्ट्रपति रहते सरकार की फुल ऐश!

उसकी तीसरी खासियत ई है कि भगवान ने उसके पुण्यों को देखते हुए ऐसन जाति में पैदा किया है कि मायावती से लेकर सोनिया गांधी तक उसका विरोध नहीं कर सकती। इस मामले में ऊ सुशील कुमार शिंदे से वजनी उम्मीदवार है। ऊ तो हंडरेड परसेंट से भी अगर बेसी संभव हो, तो आरक्षण का हकदार है। ऐसन में उसके नाम पर किसी को कोयो आपत्ति नहीं होगी।

उसकी चौथी विशेषता ई है कि ऊ राष्ट्रपति चुनाव में लगल सब उम्मीदवार पर किसी न किसी तरह से भारी पड़ता है। ऊ न तो करण सिंह जैसन लोकसभा चुनाव हार चुका है औरो नहिए प्रणव मुखर्जी जैसन जिंदगी में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता है। ऊ अर्जुन जैसन समाज को बांटकर सुख पाने वाला मंतरियो नहीं रहा है औरो नहिए ऊ कभियो सुशील कुमार शिंदे जैसन निकम्मा मुख्य मंतरी साबित हुआ है। ऊ शेखावत जैसन संघियो नहीं है कि दूसरे दल के ढोंगी नेता सब उसके नाम पर बिदक जाए औरो वोट न दे।

उसकी पांचवीं औरो सबसे बड़की खासियत ई है कि अगर आप उसको झुकने कहिएगा, तो ऊ लेट जाएगा। सही पूछिए, तो मंगरू की यह खासियत इस पोस्ट के लिए उसको सबसे बेसी योग्य उम्मीदवार बनाता है, काहे कि 'बी' पार्टी के चीफ 'माननीय' से लेकर 'सी' पार्टी की चीफ 'मैडम' तक को इस पोस्ट पर ऐसने व्यक्ति चाहिए, जो देश की चिंता ताक पर रखकर हमेशा उनकी जी हुजूरी करता रहे।

अब इस 5 गुण के अलावा हमरे खयाल से और कोयो ऐसन गुण नहीं है, जो हमरे देश के नेताओं को राष्ट्रपति के किसी उम्मीदवार में चाहिए। औरो जब अपना मंगरू इन तमाम गुणों का धनी है ही, तो भला रायसीना हिल का राष्ट्रपति भवन उससे काहे मरहूम हो!

Thursday, May 24, 2007

बदनाम का हुए, नाम हो गया!

वोल्फोवित्ज जी को आप जानते हैं कि नहीं? हां, हां... वही विश्व बैंक के अध्यक्ष महोदय, जिनकी कुर्सी महज इसलिए छीन ली गई, काहे कि वे प्रेम-पुजारी बन गए हैं। पता नहीं आप इस बारे में का सोचते हैं, लेकिन हमरे खयाल से तो ई बहुत बड़ा अन्याय है उस बेचारे के साथ। बताइए, जिस दुनिया में प्रेम को पूजा माना जाता हो औरो इश्क-मोहब्बत के लिए 'शहीद' हो गए महात्मा वैलंटाइन को देवता जैसन पूजा जाता हो, वहां भला किसी आदमी को अपनी प्रेमिका को प्रमोट करने का कहीं ऐसन खामियाजा भुगतना पड़े?

वैसे, वोल्फोवित्ज महोदय की भी गलती है-- उनको चोंच लड़ाने का सार्वजनिक प्रदर्शन करने की का जरूरत थी? अरे भाई, इस बुढ़ापे में घी पीना ही था, तो चुपचाप कंबल ओढ़कर पीते। न किसी को आपकी गुटरगूं का पता चलता औरो न आप परेशान होते। अब बेसी काबिल बनिएगा, तो ऐसने परिणाम भुगतना होगा! सर जी, विदवान औरो बड़का एडमिनिस्ट्रेटरे होने से सब कुछ नहीं हो जाता, बहुत कुछ औरो सीखना पड़ता है। केतना बढ़िया होता, अगर आप हमरे यहां के नेतवन सब से कुछ सीख लिए होते, जो दूसरे की मेहरारू को भी अपनी बताकर सरकारी पैसा पर दुनिया भर में सैर कराते रहते हैं। एतने नहीं, यहां तो 'सारी दुनिया एक तरफ, मेहरारू का भाई एक तरफ' की तर्ज पर नेता सब अपने 'साधु' साले को भी राजा बनवा देते हैं।

फिर हमरे नेता लोग से आप एक ठो पाठ औरो सीख सकते थे--सरकारी खजाने को शेर की तरह सार्वजनिक रूप से सीधे नहीं चबाइए, चूहे की तरह धीरे-धीरे कुतरते जाइए! ऐसन में कब आपने खजाना खाली कर दिया, किसी को पते नहीं चलेगा औरो पता चलबो करेगा, तो मामला एतना पुराना हो जाएगा कि सबूत जुटाने में ही पुलिस को नानी याद आ जाएगी! अपनी महबूबा की सैलरी में बजाय एक बार इतना ज्यादा इन्क्रीमेंट करने के, आप अगर उसकी सैलरी धीरे-धीरे बढ़ाते, तो कोयो आपको पकड़ नहीं सकता था।

का कहे आपके पास एतना समय नहीं था? हां, ई बात तो आप सहिए कह रहे हैं, चूहा बनने का आपके पास टाइमे कहां था? आपकी हड़बड़ी हम समझ सकता हूं। अब जो व्यक्ति 63 साल का हो, ऊ अगर प्रेमिका को खुश करने में दो-तीन साल औरो लगा देगा, तो फल कहिया चखेगा? हम आपकी इस बात को मानता हूं कि जीवन की सांध्य वेला में कोयो आशिक लोक-लाज की परवाह करके अपना टाइम खोटी नहीं कर सकता, लेकिन आप ई भी तो देखिए कि बूढ़ा होकर भी आप बड़का तीसमार खां बन रहे थे!

वैसे, गोली मारिए ऐसन विश्व बैंक की अध्यक्षता को, इसमें रखले का है? अमेरिका के फेर में गरीब देश की आप ऐसे भी नि:स्वार्थ मदद नहीं कर पा रहे थे, लेकिन प्यार में बदनाम होकर अब आप बहुतों दिल के 'गरीब' की मदद कर पाएंगे। आपको पैसे की कमी है नहीं, महबूबा की सैलरी भी आपने बढ़ा ही दी, अब तो बस आशिकों के लिए एक ठो एनजीओ खोल लीजिए! चकाचक दुकान चलेगी। पटना के परोफेसर मटुकनाथ चौधरी को ही देख लीजिए--अपनी शिष्या के प्यार में बदनाम का हुए, पूरी दुनिया में नाम हो गया! लोकलाज गया छप्पर पर, अब तो ऊ चैनल-चैनल डोलते फिरते हैं औरो 'हार्ट स्पेशिलिस्ट' हो गए हैं! पैसा तो बनिए रहा है, नामो हो रहा है।

तो हमरी मानिए, भारत आ जाइए। यहां दिल की बीमारी अभी 'अर्ली स्टेज' में है औरो खबरिया चैनलों की जवानी उछाल पर। एको ठो चैनल में अगर एक्सपर्ट की नौकरी मिल गई, तो सिद्धू के जैसन आपकी भी लाइफ सेटल हो जाएगी, दिलों पर 'मरहम' लगाने का पुण्य अलग से मिलेगा!

Thursday, May 17, 2007

एक अदद पाकेटमार नेता चाहिए!

अपने देश में हर तरह के अपराध को अंजाम देने वाला नेता सब है, बस पाकेटमारों औरो सेंधमारों में से ही ऐसन प्रतिभा नहीं निकल पाया है, जो लोकसभा या विधानसभा की 'गरिमा' बढ़ा सके। ऐसन में अपने देश में समाजवाद खतरे में पड़ गया है। इसका अंदाजा हमको उस दिन हुआ, जब अखिल भारतीय जेबकतरा-सेंधमार महासंघ के राष्ट्रीय महासचिव से हमरी अचानक मुलाकात हो गई। ऊ बेचारा अपने देश के नेतवन सब से बहुते निराश है। कारण ई कि नेता सब सब तरह के कुकर्म कर रहा है, लेकिन पाकेटमारी औरो सेंधमारी की फील्ड में खुलकर अभियो सामने नहीं आ रहा।

पता नहीं आप उसकी निराशा को केतना जायज मानेंगे, लेकिन हमको उससे गहरी सहानुभूति है। उन लोगों के साथ सहिए में अन्याय हुआ है। अब का है कि नेतवन सब ने हत्या, अपहरण, घूसखोरी, घपले-घोटाले जैसन तमाम अपराध को गलैमराइज कर दिया है, तो गांजा-अफीम से लेकर आदमी तक की तस्करी को इज्जत बख्स दी है... का चाकूबाजी औरो का कबूतरबाजी, सब में नेता सब नाम कमा रहे हैं औरो दाम भी, लेकिन अब तक कोयो नेता पाकेटमारी या सेंधमारी करते नहीं पकड़ाया। अब इससे बड़का अन्याय का होगा?

उस राष्ट्रीय महासचिव जी का इहो मानना कि जिस देश में नेहरू से लेकर अमर सिंह तक समाजवाद के नाम पर नेतागिरी कर चुके हों, उस देश के तो कण-कण में समाजवाद होना चाहिए। लेकिन अपना देश है कि घूस औरो घोटाला में तो नेता सब समाजवाद अपनाते हैं, मिल-बांटकर खाते हैं, चपरासी तक को हिस्सा देते हैं, लेकिन पाकेटमारी-सेंधमारी जैसन दलित-दमित अपराध में समाजवाद नहीं चलाते। चोर-डकैत, हत्यारा, बलात्कारी, घुसखोर, अपहरणकर्ता... सब के सब नेता बनकर लोकसभा-विधानसभा पहुंच गए, लेकिन आज तक कौनो सेंधमार या पाकेटमार एमएलए-एमपी नहीं बन पाया। संसद औरो विधानसभा में अपना कौनो नुमाइंदा नहीं होने के कारण ही इन दोनों धंधे की हालत एतना खराब है।

जहां तमाम तरह के अपराध आज गलैमराइज हो गए हैं, वहीं 'अपराधी समाज' का ई 'दलित वर्ग' आज तक छुप-छुपकर चोरी करने औरो पकड़ाने के बाद सरेआम पब्लिक औरो पुलिस से लात-जूता खाने को अभिशप्त है! हमको तो अखिल भारतीय पाकेटमार-सेंधमार संघ के उस नेता के इस बात पर पूरा यकीन है कि आज उसकी बिरादरी का अगर एको ठो नेता लोकसभा या विधानसभा में पहुंच गया होता, तो इस बिरादरी की सामाजिक व राजनीतिक 'हैसियत' इतनी गई-गुजरी नहीं होती! दुनिया के सबसे पुराने धंधों में से होने के बावजूद सेंधमारों-पाकेटमारों को अभियो कोयो नहीं पूछता, जबकि कबूतरबाजी जैसन माडर्न युगीन धंधे में बड़े-बड़े 'राष्ट्रवादी' नेता शामिल हो जाते हैं और धंधे की इज्जत बढ़ा देते हैं।

वैसे, एतना सबके बावजूद हमको लगता है कि उस महासचिव महोदय का ई आरोप पूरी तरह सही नहीं है कि नेतवन सब उनके धंधे के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर रहे हैं। हमरे खयाल से तो नेता सब जन्मजात पाकेटमार होते हैं औरो सेंधमार भी। गौर से देखिए तो जनता को मिलने वाले सरकारी पैसों का घपला-घोटाला इनडाइरेक्ट रूप से पाकेटमारी ही तो है। औरो ऊ भी ऐसन पाकेटमारी कि जनता के जेब में पैसा पहुंचने से पहिले गायब हो जाता है... जैसन नेता नहीं, मिस्टर इंडिया हो गया। औरो सेंधमारी... भैय्या, इस मामले में तो नेता सब से शातिर कोयो हो ही नहीं सकता। चारा घोटाला से लेकर सांसद निधि घोटाला औरो तेल घोटाला से लेकर ताबूत घोटाला तक, नेता सब ने कब सारा पैसा खाकर पचा डाला, किसी को पतो नहीं चला!

... तो सेंधमार-पाकेटमार भाइयों, आप निराशा छोड़िए औरो खुश होइए कि एतना बड़का-बड़का नेता आपकी बिरादरी में शामिल है। हां, आप इसके लिए आंदोलन जरूर कीजिए कि जो हो, खुलेआम हो, कंबल ओढ़कर घी न पिया जाए! वैसे, आप लड़ाई इसके लिए भी लड़ सकते हैं कि लोकसभा-विधानसभा चुनावों में सभी पार्टी कुछ परतिशत सीट सेंधमार-पाकेटमार भाइयों के लिए भी आरक्षित करें। आखिर लोकतंत्र में हर वर्ग का परतिनिधित्व तो होना ही चाहिए!

Friday, May 11, 2007

उसके 'टांग उठाने' के इंतजार में...

मिसराइन जी आजकल बहुते परेशान हैं। उनकी परेशानी का कारणो कम अजीब नहीं है। दिक्कत ई है कि उसका जर्मन नसल वाला डॉगी चारों टांग जमीन पर रखकर सूसू करता है। आप कहेंगे, भाई इसमें परेशानी वाली का बात है... उसकी मरजी... ऊ कुछो करे। अब कुत्ता हुआ, तो कोयो जरूरी है कि टांग उठा के ही...?

आप ऐसन कह सकते हैं, लेकिन मिसराइन जी की अपनी तकलीफ है, जो उन्हें डॉगी के टांग उठाने का बेसब्री से इंतजार करवा रही है। अब का है कि उनके पति महोदय, यानी मिसिर जी का कहना है कि जिस दिन डॉगी 'टांग उठाने' लगेगा, तो बूझना कि बच्चा जवान हो गया औरो तब ऊ यहां-वहां गंदा कर तुम्हे परेशान नहीं करेगा। वैसे, मिसराइन को डॉगी से एतनही परॉबलम नहीं है, परॉबलम औरो सब है, लेकिन मिसिर जी के कारण ऊ कुछो बोलतीं नहीं।

एक दिन टेबुल पर मिसराइन को एक ठो दवाई वाला चिट्ठा दिख गया, उस पर मरीज का नाम लिखा था लियो मिसर। अब मिसराइन की समझ में ई नहीं आ रहा कि जिस मिसिर जी ने जिंदगी भर कभियो अपने सरनेम पर गर्व नहीं किया, ऊ एतना शान से कुत्ता महोदय के नाम में अपना सरनेम कैसे लगवा रहे हैं!

वैसे, मिसराइन को मिसिर जी की ओर से सख्त हिदायत है कि ऊ इस कुत्ते की शान में कौनो गुस्ताखी न करें। लियो मिसर कोयो गली का खजहा कुत्ता नहीं है, ई समझाने के लिए मिसराइन के सामने लियो महाराज के पितृ पक्ष औरो मातृ पक्ष का बाकायदा वंश वृक्ष पेश किया गया, जिसके अनुसार ऊ एक बेहद ऊंचे कुल के बालक हैं। उनकी नानी ने एक बड़े परतियोगिता में अपनी 'बुद्धि के बल' पर मेडल जीता था, तो यूरोप के किसी देश में जिंदगी के आखिर दिन गुजार रहे उनके दादा अपने समय में शहर के सबसे हैंडसम डॉगी का खिताब जीत चुके हैं। औरो ई कुल का प्रताप ही है कि लियो महाराज को खरीदने में मिसिर जी को हजारों रुपये ढीले करने पड़ गए।

वैसे, मिसिर जी से हजार रुपये खरच करवा लेना लियो महाराज के लिए बाएं हाथ का काम है। लियो एक बार बीमार पड़े नहीं कि मिसिर जी डाक्टर लेकर हाजिर। हजार-दो हजार की सूई तो उनको कभियो लग जाता है औरो बेचारी मिसराइन ई सब देखकर कलपती रहती हैं। एक ई लियो महाराज का सौभाग्य है कि मिसिर जी एतना केयर करते हैं औरो एक मिसराइन का दुर्भाग्य कि मिसिर जी बीमार पड़ने पर तीन दिन बाद उनको इलाज के लिए ले जाते हैं औरो उहो अंगरेजी नहीं, होम्योपैथी डाक्टर के पास। काहे कि ऊ सस्ता होता है।

हालांकि दुनिया के लिए लियो महाराज भले ही डॉग हों, लेकिन मिसिर जी उनको डीओजी साहब मानते हैं। ऊ लियो साहब को ऐसन कोचिंग दिलवा रहे हैं, जिससे ऊ पुलिस में भर्ती हो सके।

जिस दिन लियो साहब ऊ पुलिसिया एग्जाम पास कर जाएंगे, मिसिर जी का मानना है कि उस दिन उनका जीवन धन्य हो जाएगा। काहे कि तब लियो साहब इंटेलिजेंट कुत्ते की जमात में तो शामिल हो ही जाएंगे, मिसिर जी को भी पांच-दस हजार महीना कमाकर देंगे। दिलचस्प बात तो ई है कि अब जब एतना सब्जबाग मिसिर जी मिसराइन को दिखा चुके, तभिए तो उनको लियो मिसर के 'विसर्जन' से कौनो परॉबलम नहीं है। अब उनको इंतजार है तो बस इस बात का कि यह 'कुल दीपक' जल्दी से जल्दी 'टांग उठाना' शुरू कर दे, तो ऊ गंगा नहा आएं!

Tuesday, May 08, 2007

शहाबुद्दीन को सजा: कानून नहीं, सत्ता की जीत

राजद सांसद शहाबुद्दीन को स्पेशल कोर्ट ने अपहरण और हत्या के एक मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है। अधिकतर लोगों का मानना है कि चलिए, देर से ही सही, एक बिल्ली के गले में अंतत: घंटी तो बांध दी गई, लेकिन सवाल है कि शहाबुद्दीन जैसे बिलौटे इतने बेखौफ क्यों घूमते रहते हैं?

इसका जवाब यह है कि जब तक आपकी राजनीतिक हैसियत आपको कानून के लंबे हाथों से बचाने का काम करती रहेगी, आपका इस देश में कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। शहाबुद्दीन को नौ साल पुराने मामले में यह सजा सुनाई गई है और ऐसा भी तभी मुमकिन हुआ है, जब बिहार में उनकी विरोधी पार्टियों की सरकार है। जाहिर है, जब तक बिहार में राजद की सरकार रही, शहाबुद्दीन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका, क्योंकि मामले की छानबीन करने वाली पुलिस सत्ता के सामने नतमस्तक थी और सत्ता शहाबुद्दीन के सामने। चूंकि शहाबुद्दीन को भी यह बात अच्छी तरह पता थी कि एक तो वह बाहुबली हैं और ऊपर से अल्पसंख्यक, इसलिए उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ऐसे में उन्होंने स्थिति का जमकर फायदा उठाया और वर्षों तक सिवान में समानांतर सत्ता चलाई।

वैसे, शहाबुद्दीन के इस पतन का कारण बिहार में विरोधी पार्टियों की सरकार का होना ही नहीं रहा, बल्कि इसकी एक बड़ी वजह यह भी रही कि उन्हें यह सजा जिस आदमी के अपहरण और हत्या के सिलसिले में मिली है, वह माले का कार्यकर्ता था और माले की बिरादरी इस समय केंद्र में सत्ता का मजबूत खंभा है। राजद से भी मजबूत खंभा। यकीन मानिए अगर वामपंथियों का दबाव नहीं होता, तो लालू किसी भी कीमत पर अपने 'वोट के इस बोरे' को गुनाहगार साबित नहीं होने देते। जैसा कि सब को पता है, लालू शहाबुद्दीन को बिहार की राजनीति में मुसलमानों के रहनुमा के तौर पर इस्तेमाल करते आए हैं। तो शहाबुद्दीन प्रकरण में कानून के हाथ बहुत लंबे हैं और उससे कोई नहीं बच सकता, कहने के बजाय यह कहिए कि सत्ता के खेल बड़े निराले हैं!

हालांकि वे सभी पार्टियां, जो शहाबुद्दीन को मिले इस सजा को न्याय की जीत के रूप में देख रहे हैं, उन्हें यह भी मानना चाहिए कि लाख बुरे होने के बावजूद शहाबुद्दीन न्यायपालिका का सम्मान उन सबसे ज्यादा करते हैं। इस मामले में शहाबुद्दीन का नाम गिनीज बुक में शामिल होना चाहिए कि सांसद रहते हुए भी अपने जिले की पुलिस से लगातार आठ घंटे एनकाउंटर करने वाले शहाबुद्दीन ने कभी न्यायालय के विरोध में कुछ नहीं कहा, जबकि आज का हर लल्लू-चंपू नेता कोर्ट को गरियाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है।

तो शहाबुद्दीन को मिली सजा को न्याय की जीत कहने के बजाय सत्ता की शक्ति की जीत कहिए और खुश होने के बजाय इस बात के लिए चिंतित होइए कि देश में कानून का राज अभी भी नहीं है। आखिर न्याय भी उसी को मिल रही है, जिसको सत्ता न्याय दिलवाना चाहती है!

Thursday, May 03, 2007

किरकेट के नाम पर दे दे बाबा

ई किरकेटिया खिलाडि़यो सब न अजीब हैं। विश्व कप से पहिले किरकेट छोड़कर ऊ विज्ञापनों में बिजी रहते थे औरो विश्व कप से बाहर हुए, तो बीसीसीआई से कुश्ती लड़ने में बिजी हो गए हैं। मतलब सब कुछ करेंगे, बस किरकेट नहीं खेलेंगे!

लेकिन उनका ई किरकेट न खेलना अब उन्हीं के लिए समस्या बन गई है। खिलाडि़यों को लाइन पर लाने के लिए किरकेट बोर्ड ने उन्हें तीन से बेसी शैंपू-सर्फ बेचने से रोक दिया है। इससे अब ऊ रो रहे हैं। दिक्कत ई है कि विज्ञापन नहीं करेंगे, तो पैसा कहां से आएगा औरो जब पैसे नहीं आएगा, तो उनके सपनों के उन महलों का क्या होगा, जिनकी नींव विज्ञापनों के भरोसे ही पड़ी है! अब महेंद सिंह धोनी को लीजिए। बेचारे ने इन्हीं विज्ञापनों के बूते लंबे-चौड़े स्विमिंग पूल वाले फाइव स्टार घर का सपना देखा था। निरमाण कार्य शुरुओ हो गया था, लेकिन अब पूरा होना मुश्किल है!

मिडिल क्लास फैमिली के धोनी किरकेटर नहीं होते, तो बुढ़ापे में मुश्किल से एक ठो घर खरीद पाते, लेकिन किरकेट में ऐसन चमके सपने भी करोड़ों का देखने लगे। लेकिन इस मुए विश्व कप ने सब चकनाचूर कर दिया। अब कैसे उनका फाइवस्टार घर बनेगा औरो कैसे स्विमिंग पूल, जिसमें ऊ तैरने का सपना देखा करते थे। चलिए अभी तक की कमाई से अगर ऊ स्विमिंग पूल बनाइयो लेंगे, तो उसमें डालने के लिए रांची जैसन शहर में साढे छह लाख गैलन महंगा पानी कहां से लाएंगे?

वैसे, विज्ञापन की कमाई पर धोनिए नहीं औरो बहुतों के सपने जुड़े हुए हैं। युवराज के पास पैसा नहीं होगा, तो हसीना किम शर्मा उनके पीछे क्यों भागेगी? पैसा नहीं होगा, तो सहवाग के रेस्टोरेंट की चेन कैसे खुलेगी? पैसा नहीं होगा, तो धार्मिक स्थल की शरण में पड़े पठान का अपना घर कैसे बनेगा? पैसा नहीं होगा, तो सचिन की फरारी का का होगा?

किरकेट को धरम और किरकेटरों को भगवान मानने वाले हमरे एक मित्र का कहना है कि इनके सपनों को पूरा करने के लिए हमको-आपको आगे आना चाहिए। आखिर जब उन भगवानों ने सपनों की नींव रख दी है, तो निकम्मा होने के बावजूद इनकी मदद करना हम 'भक्तों' का फर्ज बनता है।

तो आइए, राष्ट्रीय आपदा कोष की तरह एक ठो किरकेटर आपदा कोष बनाते हैं औरो उसमें दान देते हैं, ताकि किरकेटरों के उन सपनों को पूरा किया जा सके, जिसकी नींव रखी जा चुकी है। क्या हुआ जो इन्होंने हमारे-आपके सपने तोड़ दिए, हम तो उदार दिल के हैं! वैसे भी, यह किरकेट के हित में ही होगा, काहे कि अगर इन किरकेटरों का सपना चकनाचूर हो गया, तो अगली पीढियां किरकेट खेलने से उसी तरह दूर भागेगी, जैसे आज लोग हॉकी औरो एथलेटिक्स से दूर भागते हैं। आखिरकार, किरकेटरों की फाइव स्टार लाइफ के ग्लैमर ने ही तो बच्चों के हाथों से गिल्ली-डंडा छीनकर बल्ला-गेंद पकड़ाया है!