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अक्तूबर, 2007 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पति-पत्नी की मोटी लड़ाई

हम मिसिर जी के यहां पहुंचे, तो ऊ अपनी मेहरारू के साथ एक ठो इंटरनैशनल मुद्दे पर थेथड़ोलॉजी में बिजी थे। मुद्दा वही 'महिला बनाम पुरुष' टाइप सदियों पुरानी बहस और थेथड़ोलॉजी इसलिए काहे कि ऐसन बहस का न सिर होता है, न पूंछ। खैर, तो जल्दिये ऊ लोग इस बात का पोस्टमार्टम करने लगे कि आखिर दिल्ली में पतियों की तुलना में पत्नियां ज्यादा मोटी काहे होती हैं? मिसिर जी का कहना था कि चूंकि महिलाएं टेनशन देने में विश्वास करती हैं, लेने में नहीं, इसलिए वे ज्यादा तंदुरुस्त होती हैं औरो बेचारा पति नामक जीव चूंकि पत्नी का सबसे करीबी 'दुश्मन' होता है, इसलिए पत्नियां सबसे बेसी टेनशन इसी जीव को देती हैं। यही वजह है कि टेंशन ले-ले कर बेचारे पति सब दिन 'सिंकिया पहलवान' ही बनल रहते हैं औरो टेंशन देकर मिलने वाले आनंद से प्रफुल्लित पत्नियां 'भूगोल सुंदरी' बन जाती हैं। मिसिर जी की बात सुनकर उनकी मेहरारू तैश में आ गईं। बोलने लगीं, 'ई तो आपका फालतू का तर्क है। सच बात तो ई है कि घर-गिरहस्थी में फंसाकर पुरुषों ने महिलाओं को बरबाद कर दिया है। महिलाएं इसलिए मोटी नहीं होती हैं कि ऊ पतियों

रावण का इंटरभ्यू

दिल्ली में आजकल रावणों की संख्या अचानक से बढ़ गई है। जी हां, चोर-उचक्के , गिरहकट, लंपट औरो बलात्कारी जैसन कलियुगी जिंदा रावण तो पहिले से यहां बहुत थे, आजकल त्रेतायुगीन रावण के पुतले की भी भरमार है। तो हुआ ई कि हमरी संपादक जी ने कहा कि दशहरा के मौके पर रावण का इंटरभ्यू लेकर आओ। खैर, हमको बेसी खोजना नहीं पड़ा, बगल वाले पार्क में ही ऊ मूंछ पर हाथ फेरते दिख गए। हमने इंटरभ्यू की बात कही, तो ऊ नेता जी जैसन खुश हो गए औरो दे डाला एक धांसू इंटरभ्यू। लीजिए, आप भी पढि़ए : 'दिल्ली में आपकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है...।' 'बात ई है कि लोगों में फरस्टेशन बढ़ गया है। दिल्ली में चोर-उचक्कों औरो हत्यारों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन लोग उनका कुछो बिगाड़ नहीं पा रहे हैं। ऐसे में हमरा पुतला फूंककर ऊ अपना फरस्टेशन निकालते हैं। इससे उनको सुकून मिलता है। अब जैसे-जैसे उनका फरस्टेशन बढ़ रहा है, हमरे पुतलों की संख्या भी ऊ बढ़ाते जा रहे हैं। फिर हुआ इहो है कि जेतना चोर-उचक्का सब था, सब नेता बन गया है। हमरा पुतला फूंककर ऊ सब जनता को समझाना चाहते हैं कि ऊ पापी तो हैं, लेकिन रावण जितना नहीं। खैर,

बाबा बनने का गुर

उस दिन रमेश जी आए। बहुते हड़बड़ी में थे। बोलने लगे, 'किसी से हमको दस करोड़ टका कर्जा दिला दीजिए, दो साल में हम उसको बीस करोड़ लौटा दूंगा...।' हमने कहा, 'अरे, असली बतवा तो बताइए? एतना टका शेयर बाजार में लगाइएगा का? हमरी मानिए, अभी ऐसन रिस्क मत लीजिए, शेयर बजार जल्दिये डूबने वाला है। वित्त मंतरी तक कह रहे हैं कि अभी इन्भेस्टमेंट में खतरा है।' ऊ बोले, 'आप बेकारे नरभसिया रहे हैं। भैय्या, शेयर बाजार में पैसा लगाना के चाहता है? हम तो बाबा बनना चाहता हूं, पैसवा उसी के लिए चाहिए।' हमने कहा, 'का बात कर रहे हैं! साधु-संत बनना कौनो दुकानदारी थोड़े है कि उसे शुरू करने के लिए पूंजी चाहिए। लोग तो माया-मोह से पिंड छुड़ाने के लिए साधु-संत बनते हैं औरो आप हैं कि साधु बनने के लिए पूंजी...!' रमेश जी उखड़ गए, उनको लगा जैसे हम उनकी बात बूझने की कोशिशे नहीं कर रहा हूं। ऊ चूड़ा-सत्तू लेकर बैठ गए कि जब तक हम समझूंगा नहीं, ऊ उठेंगे नहीं। बोले, 'देखिए, मुफ्त में आजकल बाबा बनना बहुते मुश्किल है। बढ़िया बाबा बनने के लिए दस करोड़ तो चाहिए ही। दो-तीन करोड़ हमको इसलिए चाहिए, ताकि

बस ईमानदारों को न दिखे घूस

भरष्टाचार करना जेतना आसान है, उसको छिपाना ओतने मुश्किल। कमबखत कहीं न कहीं से दिखिए जाता है। घूस कमाते वक्त भले ही आप दुनिया को पता नहीं चलने दीजिए, लेकिन जेब में पहुंचते ही ई दुनिया को दिखने लगता है। अब का कीजिएगा, पैसे का गरमी होबे एतना तेज करता है कि बलबलाकर जेब से बाहर आ जाता है औरो पूरी दुनिया जान जाती है कि बंदा घूस कमाकर धन्ना सेठ बन गया है। वैसे, किसने अपना जेब केतना गरम किया, इसका पता तभिये चलता है, जब कौनो व्यवस्था ताश के पत्ता जैसन भरभरा के गिर जाए। मसलन, जब एम्स के डाक्टरों को डेंगू हो जाए, सरकारी डाक्टर अपना इलाज पराइवेट नर्सिन्ग होम में कराए, परोफेसर का बेटा मैट्रिक फेल हो जाए, नई सड़क में गड्ढा हो जाए... तभिये पता चलता है कि घूस किस-किस ने खाया। दिक्कत ई है कि घूस खाने वाला व्यवस्था पर ऐसन रंग-टीप करता है कि भरष्टाचार का पोल जल्दी खुलबे नहीं करता। औरो जब तक पोल खुलता है, बंदा या तो आलीशान बाथरूम बना चुका होता है या फिर सारा पैसा खाकर बाथरूम गंदा कर चुका होता है। बाथरूम से याद आया, तनिये दिन पहले जो यूपी के पूर्व मुख्य सचिव गिरफ्तार हुए हैं, उनके बाथरूम में सोने का नलका ल

कहां है गांधीगीरी?

' लगे रहो मुन्ना भाई' को रिलीज हुए साल भर से ज्यादा हो गया। यानी गांधीगीरी ने इस दुनिया में एक साल पूरा कर लिया। जब यह फिल्म रिलीज हुई थी, तो माना जा रहा था कि गांधी एक बार फिर से प्रासंगिक हो उठेंगे, लेकिन क्या ऐसा हकीकत में हुआ? अगर हम इस एक साल का आकलन करने बैठें, तो निष्कर्ष है, शायद नहीं। सच तो यह है कि यह फिल्म गांधी के सिद्धांतों के लिए लिटमस टेस्ट साबित हुई। यानी, जो यह जानना चाहते थे कि गांधीजी के सिद्धांत आज कितने प्रासंगिक हैं, उन्हें इसका आधा-अधूरा उत्तर तो मिल ही गया है। दरअसल, सवाल यह है भी नहीं कि गांधीजी आज के समय में कितने प्रासंगिक हैं। असल सवाल यह है कि क्या आज की दुनिया में गांधी के सिद्धांतों पर चला जा सकता है? अगर इस एक साल का अनुभव देखें, तो इसका उत्तर है, नहीं। 'लगे रहो मुन्ना भाई' की रिलीज के बाद सबसे पहले यूपी के एक व्यक्ति ने 'गांधीगीरी' को अपनाया। उसने सबके सामने अपने कपड़े उतारकर उस सरकारी मुलाजिम को थमा दिए, जो उससे घूस मांग रहा था। मीडिया विस्फोट के इस युग में बात मिनटों में दुनिया भर में फैल गई। सबको लगा कि गांधी युग वाकई वापस आ र

किरकेटिया कप की अज़ब कहानी

देश की किरकेटिया टीम ने 20-20 वाला विश्वकप का जीता, पूरे देश उसके पीछे पगलाए पड़ा है। राज्य सरकारें खिलाड़ियों को ईनाम ऐसे बांट रही है, जैसे खिलाड़ियों ने विश्व का सब देश जीत के उनकी चरणों में रख दिया हो। खैर, जाने दीजिए, ई सब तो आप लोग भी जानते होंगे। यहां तो हम आपको कुछ ऐसन बात बताना चाहता हूं, जो आप जानबे नहीं करते होंगे। जैसे कि आप ई नहीं जानते होंगे कि 20-20 विश्व कप खेलने जाने से पहिले अपने किरकेटिया खिलाडि़यों ने अपने परिवारों को कुछ महीने के लिए शहर छोड़कर जाने के लिए कह दिया था, ताकि अगर ऊ बांग्लादेश की टीम से हारकर विश्व कप से बाहर हो जाए, तो देश में गुस्साई भीड़ उनके मां-बाप का टांग न तोड़ सके। पिछले विश्व कप में हार के बाद रांची के लोगों ने धोनी के घर का दीवारे ढहा दिया था, डर के मारे इस बार उसके भाई ने साधु जैसन दाढ़ी बढ़ा लिया, ताकि कोयो पहचान नहीं पाए। जब भारत विश्व कप जीत गया, बेचारे ने तभिये जाकर बेचारे ने दाढ़ी बनाई। आप इहो नहीं जानते होंगे कि दिल्ली के उस थाने का कमरा अभियो खालिए है, जिसको सहवाग ने साउथ अफरीका जाने से पहिले अपने लिए बुक कराया था। का कहे, थाना बुक! अर