Friday, February 22, 2008

एक एक कर सब बिक गए!

लीजिए, सब बिक गए। का तेंडुलकर, का धोनी, का जयसूर्या, का पॉन्टिंग...सबकी औकात दो टके की हो गई। सरे बाजार सब नीलाम हो गए। कोयो शाहरुख का करमचारी बन गया, तो कोयो प्रीति जिंटा का गुलाम, कोयो विजय माल्या के बोतल में बंद हो गया, तो कोयो रिलायंस के राजस्व का हिस्सा बन गया। जो जेतना बड़ा तीसमार खां था, ओ ओतना महंगा बिका, तो सचिन के साथ 'गेम' हो गया। इस बेचारे 'भगवान' की औकात धोनी तो छोडि़ए, साइमंड्स से भी कम हो गई।

इस नीलामी में सबसे बेसी दुख हमको बेचारे हरभजन सिंह को लेकर हुआ। बेचारे ने जिस मंकी को 'मंकी' कहा औरो जिसके कारण मीडिया को देश का सम्मान दांव पर 'लगने' लगा था, उस साइमंड्स की कीमत भज्जी से बेसी लगाई गई। कहां भज्जी मात्र 3.40 करोड़ में बिके, तो कहां आस्ट्रेलियाई किरकेटर साइमंड्स 5.40 करोड़ में! अब हमको ई नहीं पता कि किरकेटिया कमाई में देश का सम्मान कहां चला गया?

वैसे, हमरे समझ में इहो नहीं आ रहा कि साइमंड्स का सोचकर खेलने आ रहे हैं? अगर तेंडुलकर औरो हरभजन जैसन लोग उनको गंवार लगते हैं, तो यहां तो उनको गंवारों की टोली मिलेगी। हालांकि हमको अभियो शक है कि साइमंड्स के खेल की सही कीमत लगाई गई है। सही पूछिए, तो साइमंड्स की इतनी महंगी शापिंग कर हैदराबाद ने साबित कर दिया है कि गालियां बहुते महंगी बिकती हैं... विवादों में पैसा होता है। हैदराबाद की मानें, तो अपनी कीमत बढ़ाने के लिए खिलाडि़यों को विवादों में फंसना चाहिए ... किसी को गरियाइए या किसी से गाली खाइए... दुनिया भर के लोग आपको जानेंगे औरो किरकेटिया हाट में आपकी कीमत बढ़ जाएगी। ई किरकेट नहीं, गालियों की जीत है मान्यवर!

जीत तो वैसे भी आईपीएल में हमको किरकेट की होती नहीं दिख रही। पैसा के इस खेल में अब किरकेट बचेगा कहां? किरकेट गया भाड़ में, रन औरो विकेट नहीं, सबको इससे पैसा बनाना है। जिन लोगों ने टीम औरो खिलाड़ियों को खरीदने के लिए अरबों की बोली लगाई है, ऊ इससे खरबों कमाने का सपना पालकर बैठे हुए हैं। खिलाड़ी खरीदने में बटुआ खाली कर उन लोगों ने बड़का-बड़का झोला सिलाया है पैसा समेटने के लिए। इसलिए असली खेल तो अब शुरू होगा।

पैसा कमाना है, तो टीमों के मालिकों को अब मेहनत करनी होगी। उन्हें किरकेट परेमियो को स्टेडियम तक आने के लिए लुभाना होगा। मतलब साफ है, सिरफ किरकेट से कुछो नहीं होगा, कुछ मसाला भी भरने होंगे, नौटंकी करनी होगी... उसमें इमोशन, डरामा डालना होगा। यानी किरकेटिया बंदरों का नाच दिखाने के लिए शाहरुख जैसन टीमों के मालिक अब मदारी बनेंगे। कोलकाता में मैच का परचार कुछ ऐसन किया जाएगा- स्टेडियम आने वाले सभी दर्शकों को शाहरुख की झप्पी मिलेगी, तो मोहाली में परचार किया जाएगा- स्टेडियम आने वाले दर्शकों को प्रीति जिंटा की पप्पी मिलेगी। उधर, विजय माल्या 'ऊ ला ला...' गाने के लिए अपने कैलंडर वाली बिकनी बालाओं को बुलाएंगे, उसे चीयर लीडर बनाएंगे, तो मुकेश अंबानी टिकट खरीदने वालों को रिलायंस पेटरोलियम का शेयर मुफ्त में देंगे।

शार्ट कट में कहें, तो आईपीएल में एतना कुछ होगा कि किरकेट का कुछ नहीं होगा! बाकी का तो भगवान मालिक है !!!

Monday, February 18, 2008

जो दुनिया लूटे, महबूबा उसे लूटे

ई गजब का रिवाज है। जो व्यक्ति दुनिया को लूटता है या फिर जिसको दुनिया नहीं लूट पाती, ऊ 'बेचारे' महबूबा के हाथों बुरी तरह लुटते हैं औरो अजीब देखिए कि लुट-लुटकर भी खुश रहते हैं। यानी महबूबा दुनिया की सबसे बड़ी लुटेरिन होती हैं या फिर आप इहो कह सकते हैं कि ऊ 'भाइयों' की 'भाई' होती हैं। इसलिए भैय्या, हम तो यही कहेंगे कि बढ़िया तो ई होगा कि आप दुनिये मत लूटिए औरो लूटना ही है, तो महबूबा मत 'पालिए'। पाप ही करना है, तो अपने लिए कीजिए न, हाड़-मांस के एक लोथड़े के लिए पाप काहे करना!

लुटेरों को महबूबा कैसे लूटती है, इसका बहुते उदाहरण है। 'डी' कंपनी से दुनिया थर्राती है। मुंबई से लेकर दुबई तक लोग दाऊद इबराहिम के नाम से कांपते हैं औरो हफ्ता चुका-चुकाकर दिन काटते हैं। उसी 'बेचारे' दाऊद का जेतना माल उसकी महबूबा मंदाकिनी ने उड़ाया, ओतना किसी ने नहीं! दाऊदे का चेलबा है अबू सलेम। गुरु गुड़ है, तो चेला भी प्यार-मोहब्बत के फेर में फंसकर कम चीनी नहीं बना। मोनिका बेदी के प्यार के कोल्हू में बेचारे की इतनी पेराई हुई कि कट्टा के बल पर कमाया करोड़ों रुपैया कब उसकी जेब से खिसक गया, बेचारे को पते नहीं चला!

अब्दुल करीम तेलगी ने एतना नकली स्टाम्प छापा कि सरकार के खजाने का तेल निकल गया। अजीब देखिए कि सरकारी खजाने को जमकर लूटने वाले इस लुटेरे के दिल को दो कौड़ी की एक बार बाला ने लूट लिया। औरो ऐसन लूटा कि एक दिन में तेलगी ने उस हुस्न पर 90 लाख रुपये निसार कर दिए औरो ऊ भी नकद में। प्यार-व्यार में जब लोग पड़ते हैं, तो कहते हैं कि किसी ने उसका दिल जीत लिया।

परभात जी की बात मानें, तो दिल उसके पास होता है, जो संवेदनशील होते हैं औरो यही वजह है कि क्रिएटिव लोग, मतलब कवि, कलाकार, साहित्यकार इश्क-विश्क के चक्कर में बेसी पड़ते हैं। लेकिन हम तो दावे के साथ कहता हूं कि ऐसा बिल्कुल नहीं है। संवेदनशीलता का इश्क से कौनो चक्कर है ही नहीं। आप ही कहिए, अगर ऐसा होता, तो सैकड़ों लोगों की किडनी लूटकर बेच देने वाले जल्लाद अमित कुमार की आधा दर्जन महबूबा होती? आपको का लगता है कि अमित कुमार का दिल देखकर किसी महिला ने उसे अपना दिल दिया होगा? कतई नहीं। विश्वास कीजिए, दिल नहीं उन महबूबाओं ने जिगर गिना होगा! उन महिलाओं ने देखा होगा कि उसने केतना लोगों का जिगर काटकर केतना पैसा जुटाया है, जिसको लूटा जा सके। लुटेरों की नियति देखिए कि मासूमों का जिगर लूटकर और बेचकर अमित कुमार ने जो करोड़ों कमाया, महबूबाओं ने उसमें से लाखों उड़ाया!

वैसे, ऐसन भी नहीं है कि लुटेरों की ही महबूबा बनती है, सच तो ई है कि महबूबा पुरुषों को लुटेरा बनाती भी है। दिल्ली में हर साल सैकड़ों ऐसन शोहदे पकड़े जाते हैं, जो महबूबा को खुश करने के लिए दूसरों को लूटते हैं। वे लड़कियों को पटाने के लिए पॉकेटमारी से लेकर झपटमारी तक करते हैं औरो महंगा गिफ्ट देकर खुश रखते हैं। वैसे, महबूबा ही नहीं, पत्नियां भी लोगों को लुटेरा बनाती हैं। आखिर सरकारी बाबू औरो साहब लोग पत्नियों के लिए ऐशो आराम की चीज जुटाने के चक्कर में ही तो घूस लेते हैं, भ्रष्ट बनते हैं, मंतरी-संतरी के साथ मिलकर घोटाला करते हैं।

तो का पुरुषों को लुटेरा बनाने में महिलाओं का हाथ है? पता नहीं... कह नहीं सकता, आखिर शादीशुदा आदमी हूं भाई!

Friday, February 15, 2008

दारू के फेर में किडनी

आजकल हर जगह किडनी का शोर है। कोयो किडनी बेचने वालों को गरिया रहा है, तो कोयो किडनी खरीदने वालों को। कोयो किडनी दान की वकालत कर रहा है, तो कोयो कानून आसान करने की बात, लेकिन दिक्कत ई है कि असली समस्या पर किसी का ध्याने नहीं जा रहा।

दरअसल, किडनी सुनकर भले ही आपको अपना जिगर या जिगर का टुकड़ा याद आता हो, लेकिन हमरी स्थिति ई है कि किडनी का नाम सुनते ही हमको दारू की याद आती है औरो किडनी खराब होने की बात सुनकर दारूबाज की। दिलचस्प बात इहो कि दारू या दारूबाज याद आते ही हमको गांधीजी याद आ जाते हैं औरो जब गांधीजी याद आते हैं, तो याद आ जाती है अपने देश की सरकार।

हमरे खयाल से किडनी चोरी कांडों के लिए सबसे बेसी जिम्मेदार सरकार ही है। काहे कि अपना रेभेन्यू बढ़ाने के लिए सरकार जमकर दारू बेचती है औरो उसके बेचे गए दारू को पी-पीकर ही लोग अपना किडनी खराब कर लेते हैं। जैसे जैसे सरकार की तिजोरी भरती जाती है, किडनी खराब लोगों की संख्या भी देश में बढ़ती जाती है। अब सरकार या तो दारू बेच ले या फिर किडनी चोरों से समाज को बचा ले!

अभिये गांधी जयंती पर दिल्ली सरकार ने एक ठो विज्ञापन निकाला कि गांधी जी दारू के खिलाफ थे, इसलिए जनता से अपील है कि ऊ दारू छोड़ दे। ई वही दिल्ली सरकार है, जो रोज इस जुगाड़ में लगी रहती है कि उसके राज्य में दारू बेसी बिके, ताकि रेभेन्यू बेसी आए। इसके लिए उसने केतना कुछ नहीं किया- ऊ चाहती है कि दारू पीने की न्यूनतम आयु घटा दी जाए, ताकि राज्य में दारूबाजों की संख्या बढ़ सके। तर्क ई है कि जब भोट डालने की उमर 18 साल है, तो मुंह में दारू लगाने की उमर बेसी काहे हो? ऊ चाहती है कि दिल्ली के बारों में बालाएं दारू परोसें, ताकि लोग बहक-बहककर दारू पीएं औरो दारू की बिक्री में इजाफा हो। कोशिश तो इहो हो रही है कि परचून की दुकान तक पर बियर जैसी चीज बेचने की इजाजत मिले। अब आप ही बताइए, ऐसन सरकार को गांधी जी के नाम पर ढोंग करने की जरूरत का है?

सच बात तो ई है कि जे जेतना पैसे वाला होता है, ऊ ओतना दारू पीता है औरो उसका किडनी भी ओतने बेसी खराब होता है। अब जब किडनी खराब हो जाता है, तो पैसा वाला लोग बाजार में थैली लेकर निकल पड़ते हैं, काहे कि पैसा कमाने के चक्कर में उसका कोई नाते-रिश्तेदार तो बचता नहीं, जो उसके लिए अपना किडनी दान कर सके! अब जब पैसा वाला बाजार में थैली लेकर उतरेगा, तो बेईमान को कौन पूछे, नीयत तो ईमानदारों की भी डोलबे करेगी। औरो जब नीयत डोल गई, तो किडनी चोरी में टाइमे केतना लगता है। आप भरती हुए पेट दरद के इलाज के लिए औरो डाक्टर ने आपकी किडनी निकालकर बेच दी।

अब दिक्कत बस ई है कि किडनी गरीबों की ही जाती है, चाहे दारू पीकर जाए या फिर दारू पीने वालों के चक्कर में। अमीर तो तभियो लाखों खरच कर किडनी लगा लेगा, बेचारे गरीबों की एतना औकात कहां!