बस इसी सर्टिफिकेट की जरूरत थी। जो बात अपने देश के नेताओं से हर कोयो कहना चाहता है, लेकिन कहकर भी सुना नहीं पाता है, ऊ बात रोनेन बाबू ने डंके की चोट पर कह दी। औरो आश्चर्य की बात तो ई है कि नेताओं ने न सिर्फ उनका कमेंट सुना, बल्कि समझियो लिया। अब उनकी मोटी खाल में रोनेन की बात घुसी कैसे, बस यही पता लगाने वाली बात है!
हालांकि रोनेन ने बेदिमाग नहीं, बेसिर मुरगे की बात की थी, जो हलाल होते ही फुट भर उछलने लगता है। लेकिन भारतीय नेताओं की तरह हमहूं इस बात से सहमत हूं कि रोनेन ने घुमा-फिरकर एक ही बात कहने की कोशिश की थी कि हमरे नेता सब बेदिमाग हैं।
वैसे, हमरे खयाल से रोनेन का ई बयान नेताओं के लिए काम्प्लीमेंट है। रोनेन तो यह कहना चाह रहे थे कि ये भारतीय नेताओं की ही कूबत है कि वे बिना दिमागो के देश चला रहे हैं, वरना तो विदेशों में दिमाग वाला भी देश नहीं चला पाता! रोनेन कुछो माने, लेकिन हम तो यही मानते हैं कि अपने यहां दिमाग होना, कौनो मुसीबत से कम नहीं! आपके पास दिमाग है, तो आप एबनारमल हैं। सच तो ई है कि अगर आपके पास दिमाग है, तो आप यहां नेता बनिए नहीं सकते, काहे कि दिमाग होने का मतलब है कि आप सही-गलत में फरक समझने लगिएगा। औरो जहां ई फरक आप समझने लगे कि गई आपकी भैंसिया पानी में। नेतागिरी का शटर तो बंद हुआ ही समझिए।
अब का है कि भाई-भतीजावाद औरो भरष्टाचार को परमोट करने से मना कीजिएगा, तो लोग आपको वोट नहीं देंगे। अगर घूस के रूप में घर आती लक्ष्मी को न कहने का साहस कीजिएगा, तो घर की लक्ष्मी के सामने खड़े होने का साहस नहीं कर पाइएगा। अपने देश के लिए भगवान बनिएगा, तो बेटा-बेटी के लिए शैतान से कम नहीं होइएगा। आपके 'भगवान' बनने का मतलब है कि जिंदगी भर उनकी आत्माएं छोटी-छोटी चीजों के लिए अतृप्त ही रह जाएंगी। 'भगवान' बनने वाले को तो अपने देश में घर के लोग तक वोट नहीं देते, बाकी को कौन पूछे! औरो जब वोट मिलेगा ही नहीं, तो नेता बनिएगा कैसे? तो हमरे खयाल से बेदिमाग मुरगा बनने में ही फैदा है।
वैसे, सूत्र तो कहते हैं कि हमरे विदेश मंतरी जी का इस विषय में कुछो और ही मानना है। उनका कहना है कि रोनेन बाबू निर्दोष हैं। जिस तरह से हम भगवान की विशेषता गिनाने के लिए उनको चार भुजाओं वाले, पांच मुखवाले... कहते हैं, उसी तरह रोनेन बाबू ने नेताओं की स्तुति गान में उनको 'बिना सिर का...' कहा होगा। इसीलिए हे नेताओं, रोनेन की भावनाओं को समझो, गुस्साओ मत!
Saturday, August 25, 2007
Monday, August 20, 2007
अंगरेज चले गए, नए अंगरेज दे गए
15 अगस्त बीत गया, देश ने आजादी का 60वां हैपी बर्थ डे मना लिया, लेकिन हम अभियो इसी गुणा-भाग में लगा हुआ हूं कि देश वास्तव में केतना आजाद हुआ है! हमरा निष्कर्ष ई है कि अजगर अंगरेज 60 साल पहले देश से चला गया, लेकिन उसकी पूंछ अभियो देश में शान से लहरा रही है।
अंगरेजियत औरो अंगरेजी के प्रति हमरी अटूट श्रद्धा 60 साल बादौ गायब नहीं हो रही, तो आज के 'भारतीय अंगरेज' तब के असली अंगरेज से बेसी खूंखार हैं। अंगरेज का लूटा बिरटेन चला जाता था, इसलिए दिखता नहीं था औरो इसीलिए दुख नहीं होता था। लेकिन इन भारतीय अंगरेजों का लूटा भारत में ही रह जाता है, इसलिए सबको दिखता है औरो दिल को दुख पहुंचाता है। ये 'भारतीय अंगरेज' इंडिया में रहते हैं औरो भारत से इनकी दूरी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है।
अंगरेज दुनिया लूटते रहे औरो भारतीयों को बैट-बॉल थमा गए। पूरा देश अभियो इस खेल की बंधुआ मजदूरी कर रहा है, काहे कि गुलाम पैर किरकेटिया पिच के अलावा औरो किसी खेल में दौड़िए नहीं पाता। गुलामी के दौर में साहब बन जाने के बाद ही भारतीय किरकेट खेलते थे, लेकिन आज लोग किरकेट खेलकर साहब बन जाते हैं। किरकेटिया गुलामी खून में ऐसन है कि यहां हर बच्चा गावस्कर, तेंदुलकर बनने के सपने के साथ ही पैदा होता है।
जो गरीबी में इन सपनों के साथ नहीं पैदा होने का साहस नहीं जुटा पाता, उसको मैकाले की शिक्षा पद्धति घुट्टी में मिलती है। ऊ बढ़िया कलमघिस्सू बाबू बनने के लिए दिन-रात एक कर देता है औरो चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर इंदिरा गांधी तक के खानदान का वंश वृक्ष तोता की तरह रटते हुए सरकारी नौकरी के लिए चप्पल घिसता रहता है।
देश की स्थिति गुलामी के दिनों से बहुत बेसी नहीं बदली है, इसका बहुते परमाण है। अंगरेजों के जमाने में विक्टोरिया के नाम पर वायसराय राज करते थे, आज मैडम के नाम पर रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट देश पर राज कर रहा है। अंगरेजों के जमाने में रजवाड़ों की ठाठ थी, आज भी उनकी ठाठ है, बल्कि 32 नए रजवाड़े पैदा हो गए हैं-- गांधी वंश, यादव वंश, ठाकरे वंश, करुणानिधि वंश, देवगौड़ा वंश, दीक्षित वंश, पवार वंश, पटनायक वंश, चौटाला वंश... केतना नाम गिनाएं! ऐसने गुलामी के दिनों में पचास-सौ ठो राय बहादुर रहे होंगे, आज पचासो हजार राय बहादुर हैं औरो शासन की चमचागिरी कर फल-फूल रहे हैं।
सूदखोर महाजन तभियो थे, आज भी हैं, बल्कि आज बेसी ताकतवर बन गए हैं। ऊ माडर्न क्रेडिट कार्ड देकर चक्रवृद्धि ब्याज में वसूली करते हैं औरो डंके की चोट पर करते हैं। बड़का व्यापारी सब तभियो राज करते थे, आज भी रिलायंस जैसन घराना राज कर रहे हैं। मजदूरों का शोषण जेतना तब होता था, उससे बेसी आज हो रहा है, लेकिन कोयो कुछ कहने का साहस नहीं कर पाता, फिर आप ही बताइए आजाद देश में बदला का है? कानून की स्थिति तो औरो खराब है।
लोग अभियो गुलामी के दौर में अंगरेजों के बनाए कानूनों के तहत सजा पा रहे हैं, जेल जा रहे हैं, तो उसके छेदों का फायदा उठाकर कानून को ठेंगा भी दिखा रहे हैं। भारतीय कचहरियों में दायर मुकदमे आधा से बेसी गरीब औरो निरक्षर लोगों के हैं, लेकिन वहां मुकदमे पर बहस अंगरेजी में होता है, आदेश अंगरेजी में निकलते हैं। खेती की रजिस्टरी औरो शपथ पत्र जिस भाषा में तैयार होते हैं, उसको आदमी को कौन पूछे, साक्षात भगवानो नहीं पढ़ पाएंगे! तभिये तो वकीलों व दलालों की फौज की मौज है औरो बेचारे अनपढ़ गरीब अभियो उनकी गुलामी कर रहे हैं।
अंगरेजियत औरो अंगरेजी के प्रति हमरी अटूट श्रद्धा 60 साल बादौ गायब नहीं हो रही, तो आज के 'भारतीय अंगरेज' तब के असली अंगरेज से बेसी खूंखार हैं। अंगरेज का लूटा बिरटेन चला जाता था, इसलिए दिखता नहीं था औरो इसीलिए दुख नहीं होता था। लेकिन इन भारतीय अंगरेजों का लूटा भारत में ही रह जाता है, इसलिए सबको दिखता है औरो दिल को दुख पहुंचाता है। ये 'भारतीय अंगरेज' इंडिया में रहते हैं औरो भारत से इनकी दूरी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है।
अंगरेज दुनिया लूटते रहे औरो भारतीयों को बैट-बॉल थमा गए। पूरा देश अभियो इस खेल की बंधुआ मजदूरी कर रहा है, काहे कि गुलाम पैर किरकेटिया पिच के अलावा औरो किसी खेल में दौड़िए नहीं पाता। गुलामी के दौर में साहब बन जाने के बाद ही भारतीय किरकेट खेलते थे, लेकिन आज लोग किरकेट खेलकर साहब बन जाते हैं। किरकेटिया गुलामी खून में ऐसन है कि यहां हर बच्चा गावस्कर, तेंदुलकर बनने के सपने के साथ ही पैदा होता है।
जो गरीबी में इन सपनों के साथ नहीं पैदा होने का साहस नहीं जुटा पाता, उसको मैकाले की शिक्षा पद्धति घुट्टी में मिलती है। ऊ बढ़िया कलमघिस्सू बाबू बनने के लिए दिन-रात एक कर देता है औरो चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर इंदिरा गांधी तक के खानदान का वंश वृक्ष तोता की तरह रटते हुए सरकारी नौकरी के लिए चप्पल घिसता रहता है।
देश की स्थिति गुलामी के दिनों से बहुत बेसी नहीं बदली है, इसका बहुते परमाण है। अंगरेजों के जमाने में विक्टोरिया के नाम पर वायसराय राज करते थे, आज मैडम के नाम पर रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट देश पर राज कर रहा है। अंगरेजों के जमाने में रजवाड़ों की ठाठ थी, आज भी उनकी ठाठ है, बल्कि 32 नए रजवाड़े पैदा हो गए हैं-- गांधी वंश, यादव वंश, ठाकरे वंश, करुणानिधि वंश, देवगौड़ा वंश, दीक्षित वंश, पवार वंश, पटनायक वंश, चौटाला वंश... केतना नाम गिनाएं! ऐसने गुलामी के दिनों में पचास-सौ ठो राय बहादुर रहे होंगे, आज पचासो हजार राय बहादुर हैं औरो शासन की चमचागिरी कर फल-फूल रहे हैं।
सूदखोर महाजन तभियो थे, आज भी हैं, बल्कि आज बेसी ताकतवर बन गए हैं। ऊ माडर्न क्रेडिट कार्ड देकर चक्रवृद्धि ब्याज में वसूली करते हैं औरो डंके की चोट पर करते हैं। बड़का व्यापारी सब तभियो राज करते थे, आज भी रिलायंस जैसन घराना राज कर रहे हैं। मजदूरों का शोषण जेतना तब होता था, उससे बेसी आज हो रहा है, लेकिन कोयो कुछ कहने का साहस नहीं कर पाता, फिर आप ही बताइए आजाद देश में बदला का है? कानून की स्थिति तो औरो खराब है।
लोग अभियो गुलामी के दौर में अंगरेजों के बनाए कानूनों के तहत सजा पा रहे हैं, जेल जा रहे हैं, तो उसके छेदों का फायदा उठाकर कानून को ठेंगा भी दिखा रहे हैं। भारतीय कचहरियों में दायर मुकदमे आधा से बेसी गरीब औरो निरक्षर लोगों के हैं, लेकिन वहां मुकदमे पर बहस अंगरेजी में होता है, आदेश अंगरेजी में निकलते हैं। खेती की रजिस्टरी औरो शपथ पत्र जिस भाषा में तैयार होते हैं, उसको आदमी को कौन पूछे, साक्षात भगवानो नहीं पढ़ पाएंगे! तभिये तो वकीलों व दलालों की फौज की मौज है औरो बेचारे अनपढ़ गरीब अभियो उनकी गुलामी कर रहे हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)