Saturday, March 15, 2008

हाकी की लुटिया

हाकी की लुटिया डूब गई, लोग बहुते निराश हुए। पूरे देश में बस एके ठो आदमी है, जो तनियो ठो परेशान नहीं हुआ औरो ऊ हैं हाकी महासंघ के अध्यक्ष गिल साहब। हमने सोचा, चलो मातम की इस बेला में गिल साहब से हाकी के बारे में बतिया लिया जाए। हम पहुंचे गिल साहब के पास।

हमने कहा, 'बधाई हो, आपने ऊ कर दिखाया, जो 80 साल में कोयो नहीं कर सका था?' ऊ बोले, 'धन्यवाद, चलिए इसी बहाने आप लोगों को हाकी की याद तो आई। हम हाकीवाले धन्य हो गए।'
इससे पहले कि हम दूसरा सवाल पूछते, ऊ हमहीं से पूछ बैठे, 'तो का आप अपने अखबार में सबसे निकम्मे हैं?'

मैं सकपका गया, 'आप ई काहे पूछ रहे हैं?' ऊ बोले, 'जो पतरकार अपने को बहुते काबिल समझता है, ऊ तो किरकेट कवर करने के लिए जुगाड़ लगाता है, संपादक की सेवा करता है। संपादक भी तो निकम्मों को ही हाकी कवर करने में लगाते हैं!'

हमने झेंप मिटाई, 'आप तो जिसके पीछे लगते हैं, उसी को मिटा डालते हैं। पहले पंजाब से आतंक खतम किया औरो अब देश से हाकी को। आपने अपनी काबिलियत से पंजाब में आतंकवादियों का सफाया किया था या फिर बस आपकी 'मिटाने' की आदत की वजह से ऐसा हो गया?'

ऊ बोले, 'कहना मोश्किल है। ई तो आप उन लोगों से पूछिए, जिन्होंने हमरी परतिभा देखकर मुझे हाकी का ठेकेदार बनाया था!' हमने कहा, 'कोयो आपको इस ठेकेदारी से हटाता काहे नहीं है?' इसके लिए टैम किसके पास है? पब्लिक को किरकेट देखने से फुरसत नहीं मिल रहा, तो नेता किरकेटरों को सम्मानित करने में बिजी है। मीडिया ने कृषि मंतरी शरद पवार को किरकेट मंतरी बनाकर रख दिया है, लेकिन गिल कौन है, आप में से बहुते पतरकारों को पतो नहीं होगा। बच्चा सब एक मिनट में बता देगा कि किरकेटिया आईपीएल में कितनी टीमें खेलेंगी, लेकिन देश में इंडियन प्रीमियर हाकी लीग जैसन चीज भी है, ई कोयो नहीं बता पाएगा! अब आप ही बताइए, एतना उपेक्षित खेल का मुखिया बनना कम साहस की बात है? अगर आज यही खेल किरकेट जैसन हिट होता, तो हमरे जैसन बूड्ढे को तो लोग कभिये का कुर्सी से लुढ़का चुके होते। आप तो हमको धन्यवाद दीजिए कि एतना फेमस आदमी होकर भी हम हाकी से चिपका हुआ हूं, बीसीसीआई अध्यक्ष बनने की कोशिश नहीं कर रहा। अब बूढ़ा हो गया हूं, हाकी स्टिक इसी समय तो सहारे के काम आती है।

हमने कहा, 'खेल मंतरी तक कह रहे हैं कि ऊ हाकी के बारे में कुछो नहीं बोलना चाहते?'

गिल साहब दहाड़े, 'ऊ बोलेंगे किस मुंह से? बोलेगा तो ऊ, जिसने कभियो हाकी के लिए कुछो किया हो। हाकी राष्ट्रीय खेल है, लेकिन केतना हाकी स्टेडियम है देश में? अब लोग गली में स्टिक घुमाकर तो हाकी खिलाड़ी बन नहीं सकते। सरकार गली-मोहल्ले में सेज खड़ी कर रही है, दिल्ली जैसन जगह में निलामी में जमीन बेच रही है, लेकिन स्टेडियम के लिए उसके पास जमीन नहीं है। अब या तो सरकार अपने जमीन बेचकर खजाने में अरबों जमा कर ले या फिर हाकी की सुध ले ले। जिस हाकी के लिए आप मरे जा रहे हैं, लोग तो उस पर फिलिम बनाकर करोड़ों कमाते हैं औरो फिर आईपीएल की एक ठो टीम खरीद लेते हैं! बढ़िया होगा आप भी हाकी के बारे में कुछो मत बोलिए, किरकेट पर लिखिएगा, तो लोगों में पहचान बनेगी, जिसकी आपको सख्त जरूरत है।

गिल साहब की सलाह ने हमको सोचने पर विवश कर दिया है. सोचता हूँ इससे पहले कि हमरी हालत गिल जैसी हो, हमको पवार बनने की कोशिश कर लेनी चाहिए. आप का सोचते हैं?

Saturday, March 01, 2008

नेताजी का बजट

देश को बजट मिल गया। सत्ता में बैठे नेताजी सब खुश हैं, उनके दोनों मंतरियों ने एकदम धांसू इलेक्शन वाला बजट पेश किया है, तो विपक्षी नेताओं की परेशानी ई है कि बजट का पोस्टमार्टम कर ऊ जनता को जो उसका सड़ा-गला पार्ट दिखा रहे हैं, उसको देखकर जनता को हार्ट अटैक नहीं हो रहा।

एक ठो विपक्षी नेताजी मिले, बोले, 'पब्लिक निकम्मी हो गई है। लालू ने सब्जबाग दिखा दिया, ऊ खुश हो गई... चिदंबरम ने ख्वाब दिखाया, ऊ खुश हो गई। हमरी तो कोयो सुनबे नहीं करता है। हम कह रहा हूं कि ई बोगस बजट है, इससे लोगों का भला नहीं होगा, लेकिन पब्लिक है कि समझने को तैयार नहीं है। हमने जनता से आह्वान किया कि बजट के विरोध में धरना-परदरशन करने चलिए, लेकिन पब्लिक की बदमाशी देखिए कि विरोध परदरशन में हमरे दस ठो चमचा को छोड़कर कोयो नहीं आया। अब मरे जनता, हमरे बाप का का जा रहा है, अपनी लाइफ तो सेटल है।'

हम जनताजी के पास पहुंचे। जनता का कहना था कि जब यही विपक्षी नेताजी सत्ता में थे, तो इन्होंने बजट में हमरा खून चूस लिया था। बजट बना-बनाकर पांच साल में इन्होंने हमको कंगाल बना दिया, तो हमने इन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। अब हमरे देह में एतना ताकते नहीं बचा है कि हम इनके विपक्षी बन जाने पर इनके साथ धरना-परदरशन कर सकूं। वैसे हमरी तो नियति यही है। चुसना तो हमको है ही, अब चाहे ये नेताजी चूसें या इनके विरोधी।

हमने सोचा रेल मंतरी जी से ही किलियर पूछ लिया जाए। हमने कहा, 'आपने तो ऐसन गुड़-गोबर किया है कि समझ में आपका बजट अइबे नहीं किया, लेकिन एक बात हम दावे के साथ कह सकता हूं कि जो व्यक्ति आपकी टरेन में दस दिन लगातार सफर कर ले, उसको बत्तीस ठो रोग हो जाएगा। किराया घटाने के बदले आप अपनी टरेन में सुविधाएं काहे नहीं ठीक कराते?'

मंतरी जी बोले, 'आपको ऐसन का परेशानी हो गई?'

हमने कहा, 'आपकी टरेन का खाना और पखाना दोनों खराब होता है। लोग इनमें से कौनो एक काम कर ले, तो दूसरा काम करने लायक नहीं बचता! खाना एतना खराब होता है कि खाया नहीं जाता, इसलिए सुबह निकालने को कुछो बचता ही नहीं है। औरो दुर्भाग्य से अगर सुबह टायलेट चले जाएं, तो गंदगी से मन ऐसन खराब होता है कि दिन भर खाना खाया नहीं जाता। दोनों ही स्थिति में लोग बीमार पड़ते हैं। जो बीमार नहीं पड़ते हैं, उन्हें लूट लिया जाता है, तनिक सुरक्षो बेवस्था दुरुस्त कर लीजिए। किराया भले दो टका बढ़ा दीजिए, लेकिन सुविधा तो दे दीजिए।'

मंतरी जी बोले, 'आपको दिक्कत है, तो आप पैदले चलिए, लेकिन हमको पढ़ाइए मत। देश को जेतना सुधरना था, गांधी जी के टैम में ही सुधर लिया। अब तो हमको भोट चाहिए औरो जनता किराया कम करने पर भोट देती है, सो हम कर रहा हूं। वैसे भी आपकी शिकायत अब रहेगी नहीं। वित्त मंतरी जी ने जैसन बजट पेश किया है, उसकी हकीकत आपको एक-आध हफ्ते में ही पता चल जाएगी। तब आप एक तो खाने नहीं खाएंगे औरो खाएंगे भी तो एतना कम कि टरेन में टायलेट जाने की जरूरते नहीं पड़ेगी। औरो सुरक्षा के बारे में तो आप तब न सोचेंगे, जब जेब में पैसा होगा। जिस दिन जनता रोटी-दाल और टैक्स से पैसा बचा लेगी, हमरी रेल में सुरक्षो बेबस्था मजबूत हो जाएगी।

अब हम वित्त मंतरी के पास जाने का सोच रहा हूं, लेकिन दिक्कत ई है कि जब एक ठो भदेस मंतरी ने हमको ऐसन उल्लू बना दिया, तो चिदंबरम तो पढ़ल-लिखल आदमी है!