भविष्य का बेड़ा गर्क

आजकल सब कुछ भविष्य के भरोसे ही हो रहा है। जिससे मिलिए, वही आपको भविष्य के लिए चिंतित दिखेगा। कोयो भविष्य की चिंता बेचकर कमा रहा है, तो कोयो भविष्य की चिंता खरीदकर गंवा रहा है। लेकिन इस सब के बीच गड़बड़ ई है कि भविष्य के फेर में सब अपना बेड़ा गर्क करवा रहा है।

अब दिल्लिये को लीजिए। यहां के लोग सब भविष्य से बहुते डरते हैं। भविष्य की चिंता उनकी जेब काट रही है। यहां जमीन है नहीं, लेकिन बिल्डर सब कागज पर घर बनाकर खूब बेच रहा है औरो लोग सब खरीदियो रहा है! यहां आपको ऐसन-ऐसन कालोनी मिलेगी, जहां पीने के लिए पानी औरो रोशनी के लिए बिजली नहीं है, लेकिन घर का दाम सुनिएगा, तो गश आ जाएगा! घर देखने जाइए, तो बिल्डर आपको पहले ठंडा पिलाएगा, फिर बताएगा कि कैसे दो साल में इसका दाम दुगुना होने वाला है। दूर का ढोल सबको सुहाना लगता है, सो बिल्डर का बताया भविष्य का सपना आपको एतना मीठा लगेगा कि जेब खाली करके या बैंक से लोन लेके या फिर दोस्तों से गाली खाके भी आप उस भविष्य को खरीद ही लीजिएगा। लेकिन आपको झटका लगेगा तब, जब वहां आपको मुफ्त में रहने वाला किराएदार भी नहीं मिलेगा!

भविष्य की इस चिंता ने कैसन बेड़ा गर्क किया है, इसका उदाहरण डीडीए के इंजीनियर हैं। बेचारों ने लोगों को भविष्य बेचकर खूब पैसा कमाया। जेतना डीडीए की कालोनी उ बसा नहीं पाए, उससे बेसी पराइवेट कालोनी बसने दी। बेटा-बेटा का भविष्य एकदम झक्कास हो औरो खुद आलीशान घर में रहे, इस फेर में बेचारों ने डीडीए का भट्ठा बैठा दिया, लेकिन बेचारे ई भूल गए कि वर्तमान ने पर भविष्य का पिलर खड़ा होता है। अब डीडीए के पास काम है ये नहीं है। जब काम नहीं होगा, तो इंजीनियर को रखकर सरकार का चटनी बनाएगी? सो जल्दिये नौकरी छूटने के भय से बेचारा सब की अब हालत खराब हो गई है। अब पता नहीं इसको भविष्य का आबाद होना कहा जाए या बर्बाद होना?

दिक्कत इहो है कि लोग भविष्य के लिए नाक के सीध में सोचते हैं, उसके दाएं-बाएं नहीं। बजट के बाद कार महंगी हो जाएगी, इसकी चिंता में फरवरी में ही लोग कार खरीद लेते हैं, लेकिन पार्किंग के लिए पड़ोसी के बीच सालों भर झगड़ा होगा, इसकी चिंता कोयो नहीं करता। कुछ साल बाद बाल-बच्चे होंगे, परिवार बड़ा हो जाएगा, इसलिए लोग बड़ी गाड़ी खरीदते हैं, लेकिन उ पेटरोल बेसी पीएगी औरो पार्किंग के लिए बेसी जगह छेकेगी, इसकी चिंता कोयो नहीं करता।

वैसे, आप कह सकते हैं कि भविष्य बेड़ा गर्क भी इसलिए करवाता है काहे कि भविष्य की चिंता क्षणभंगुर होती है। अब देखिए न, जब तक किसी के पास गाड़ी खरीदने लायक पैसा नहीं होता, सड़क पर गाडि़यों की संख्या को उ भविष्य के परयावरण और परिवहन व्यवस्था के लिए नुकसानदेह मानता है। लेकिन गाड़ी खरीदने लायक पैसा होते ही उसे अपने भविष्य की चिंता सताने लगती है औरो नई गाड़ी की चमक में जाम की चिंता खतम हो जाती है। अब आप ही बताइए, जब तक ई मानसिकता रहेगी, बेड़ा गर्क तो होगा ही, चाहे उ आपका हो या किसी और का!

टिप्पणियाँ

Pratik Pandey ने कहा…
बहुत बढिया लेख है। उम्मीद है कि इस नए पते पर भी पहले की ही तरह आपके धारदार व्यंग्य लगातार पढ़ने को मिलते रहेंगे।
अनुनाद सिंह ने कहा…
लगता है आपहूँ भविष्ये देख के नया चिट्ठा शुरू किये हैं |
Sunil Deepak ने कहा…
सत्य वचन, आप तो छोटी उम्र में ही बहुत होशियार हो गये. यह भविष्य की चिंता सच में बहुत झँझट के काम करवा देती है.

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