अकेला गण, एतना विरोधी तंत्र
हम साल भर अपने देश पर नाज करता रहता हूं, लेकिन जैसने २६ जनवरी आता है, हमरा मन बदल जाता है। गणतंत्र के नाम से हमको चिढ़ होने लगता है- सुनते ही लगता है, जैसे दो-चार सौ मधुमक्खियों ने हमको भभौंड़ लिया हो। गणतंत्र से बेसी तो इस देश में 'गनतंत्र' की चलती है। आखिर जहां गन के बल पर नेता वोट लूटकर ले जाता हो, चोर नोट लूटकर ले जाता हो, सरकार जनता के मुंह पर पट्टी बांध देती हो औरो आतंकवादी बेटी से लेकर बोटी तक लूटकर ले जाता हो, उसे 'गनतंत्र' समझने में बुराइए का है? वैसे, आप इस देश को 'गुणतंत्र' कहें, तो भी चलेगा। आखिर आज देश में वही लोग ठीक से जी रहे हैं, जिनके पास गुण है, जो पढ़ल-लिखल है। यहां जो गरीब है, निरक्षर है, बिना किसी हुनर का है, ऊ तो जानवर से भी बदतर जिंदगी जी रहा है। ऐसन 'गुणतंत्र' में ही हो सकता है। गणतंत्र में तो गरीब, निरक्षरों को भी जीने का हक मिलता है, कमजोरों की भी अपनी इज्जत होती है। अपना देश 'गुणतंत्र' इस मामले में भी है कि यहां गुणगान करने वाले ही फलते-फूलते हैं। आप भले ही बहुत काबिल हों, बॉस का गुणगान नहीं करते, तो आपकी गाड़ी हमेशा एक...