शिक्षा मतलब चुनावी घुट्टी

अपने देश में एक ठो बड़की सरकारी संस्थान है, नाम है उसका एनसीईआरटी। वैसे तो इसका काम बच्चों को शिक्षा का घुट्टी पिलाना है, लेकिन असल में सरकार इसका उपयोग चुनावी घुट्टी पिलाने के लिए करती है। यानी एनसीईआरटी का यही मतलब है...नैशनल काउंसिल ऑफ इलेक्टोरल (एजुकेशन नहीं) रिसर्च एंड टरेनिंग। तभिये न सरकार इसका उपयोग बच्चा सब के भविष्य सुधारने के बदले उसका ब्रेन वॉश करने में करती है।

इसकी चुनावी उपयोगिता देखिए कि सरकार बदलते ही अध्यक्ष से लेकर इसका सिलेबस तक बदल जाता है, इसमें राम-रहीम की परिभाषा बदल जाती है। एक सरकार के दौरान इसकी किताब में जिस महापुरुष को बड़का देशभक्त औरो सेक्युलर बताया जाता है, दूसरी सरकार के आते ही ऊ महापुरुष आतंकवादी औरो कम्युनल हो जाता है। इसकी किताबों पर रंग भी चढ़ता है - बीजेपी की सरकार में भगवा औरो कांगरेसी सरकार में लाल। अब ई तो रिसर्च वाली बात है कि कांगरेस में बुद्धिजीवी काहे नहीं पैदा होता है कि उसको लाल झंडे वालों से बुद्धि उधार लेनी पड़ती है।

खैर कुछ हो, इसकी किताबों का रंग बदलने से हमरे यहां ऐसन जेनरेशन पैदा हो रही है, जो पूरी तरह कन्फूज है। अभी एक ठो इस्कूल में गए थे। एक ठो बच्चा से पूछे - भगत सिंह का नाम जानते हो? उसने कहा - नाम तो सुना है। मैंने पूछा कौन थे? कहने लगा एक क्लास में पढ़ा था कि उ स्वतंत्रता सेनानी थे, लेकिन दूसरी में पढ़ा कि उन्होंने देश के लिए कुछो नहीं किया था। अब उस समय हम पैदा तो हुए नहीं थे, इसलिए सही-सही कुछो बता नहीं सकते आपको!

हमने दूसरे से पूछा - बाबरी मस्जिद का नाम सुने हो? उसने कहा, 'हां पहली क्लास में पढ़े थे कि उ एक ठो 'ढांचा' था, जिसको 'वीर राष्ट्र भक्तों' ने तोड़कर 'पुण्य' कमाया, लेकिन दूसरी क्लास में पढ़े कि उ एक ठो मस्जिद था, जिसको कुछ 'सिरफिरे कम्युनल' लोगों ने तोड़ दिया। अब हमसे ई मत पूछिएगा कि उसको 'शौर्य दिवस' कहते हैं कि 'काला दिवस', का है कि न तो हम बनाते समय उसके पास थे औरो न ही तोड़ते समय।

अब हमरे समझ में आने लगा था कि पूरा देश कन्फूज काहे है! दरअसल, बात जब चुनाव की हो तो सरकार के लिए कन्फूजन सबसे बढि़या चीज होती है। तभिये न नेता सब ने राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के मुद्दा पर टीवी चैनल वाले को कन्फूज कर दिया। अब उन नेताओं का कहना है कि जानते तो हम सब कुछ थे, लेकिन इसलिए उत्तर नहीं दिए कि हम सेक्युलर पार्टी से हैं औरो इसलिए अपने मुंह से 'वंदे मातरम्' नहीं निकाल सकते, जबकि जो नेता राष्ट्र गान 'जन, गण, मन...' को नहीं बता पाए थे, उनका कहना है कि जब तक उनकी पार्टी यह निरणय नहीं ले लेती है कि ई गीत राष्ट्र भक्ति का गीत है या अंगरेजों की चरण वंदना, तब तक उ ऐसन किसी प्रश्न का उत्तर नहीं देंगे।

अब जब ऊपर से नीचे तक एतना कन्फूजन हो, तो हमरे खयाल से एनसीईआरटी का फुल फॉर्म ऐसे समझा जाना चाहिए .. जब कांगरेसी सरकार हो, तो इसको पढि़ए नैशनल कांगरेस एंड कम्युनिस्ट काउंसिल ऑफ इलेक्टोरल रिसर्च एंड टरेनिंग औरो जब बीजेपी की सरकार हो, तो पढि़ए नॉन कांगरेस एंड कम्युनिस्ट काउंसिल ऑफ इलेक्टोरल रिसर्च एंड टरेनिंग!!

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
"जब कांगरेसी सरकार हो, तो इसको पढि़ए नैशनल कांगरेस एंड कम्युनिस्ट काउंसिल ऑफ इलेक्टोरल रिसर्च एंड टरेनिंग औरो जब बीजेपी की सरकार हो, तो पढि़ए नॉन कांगरेस एंड कम्युनिस्ट काउंसिल ऑफ इलेक्टोरल रिसर्च एंड टरेनिंग!!

क्या खुब बेबाकी से लिखा है, बहुत सही. लगे रहो, कभी तो किसी की आँख खुलेगी और यह खिलवाड़ बंद होंगे.

बधाई,

-समीर लाल
Unknown ने कहा…
देखिये ऐसा है कि एक जमाने में हमने भी ये एन.सी.ई.आर.टी. की ही किताबें पढ़ी थीं। पर तब सरकार को यह आयडिया नहीं आया था शायद, क्योंकि स्लेबस कुछ १०-१५ साल से नहीं बदला था। अब दूसरे देशों पर नजर डाले तो हर जगह यह करतूत लाल झंडे वालों की पाएंगे। और जगहों पर यह सब बहुत कम होता है। छोटे मोटे बदलाव से कन्फ्यूजन नहीं होता। बड़ा बदलाव वे ही करते हैं। अब वे सत्ता में हैं तो भारत में भी होगा ।
sur ने कहा…
जवाब नहीं आपका क्या परिभाषा दी है... बिल्कुल सटीक.

शुभकामनाएं

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