सब्र का फल कड़वा होता है

कहते हैं कि सब्र का फल मीठा होता है, लेकिन हमको लगता है कि अब इस कहावत में बदलाव की जरूरत है। का है कि सब्र का फल मीठा होबे करेगा, आज के समय में इसकी कोयो गारंटी नहीं ले सकता।

अब देखिए न अपने बंगाल टाइगर को। टीम में सलेक्ट होने के इंतजार में बेचारे टाइगर महाराज बूढ़े हुए जा रहे हैं, लेकिन न तो ग्रेट चप्पल को ऊ पहन पा रहे हैं औरो नहिए मोरे का किरण कहीं उनको दिख रहा है। न उनको विदा होने के लिए कहा जाता है औरो न ही रखा जाता है। ऊ तो बस आश्वासन पर जिंदा हैं, जो कभियो चयन समिति से मिलता है, तो कभियो किरकेट बोर्ड से। हमको तो लगता है कि पैड-ग्लब्स पहनकर सिलेक्शन के दिन बुलावे का इंतजार करते-करते गंगुल्ली महाराज जब सो जाते होंगे, तो सपने में भी उनको सब्र से डर लगता होगा।

हालांकि ई कम आश्चर्य की बात नहीं है कि निकम्मा के नाम पर खिलाडि़यों को टीम से बाहर एतना इंतजार कराने वाला किरकेट बोर्ड गुरु गरेग को एतना सब्र के साथ कैसे ढो रहा है! बोर्ड को लगता है कि सब्र से काम लीजिए, गरेग हमको विश्व कप जिताएंगे। जबकि विश्व कप के लिए युवा टीम तैयार कराने के नाम पर ऊ जिस तरह से खिलाडि़यों को अंदर-बाहर कर रहे हैं, उससे तो हमको नहीं लगता कि कभियो भारत की 'टीम' बनियो पाएगी? जिस तरह से ऊ महाशय काम कर रहे हैं, उससे तो लगता है कि जब तक 'ढंग' की भारतीय टीम बनेगी, तब तक सब 'योग्य' खिलाड़ी एक-एक कर बूढ़े हो जाएंगे। अब देखिए न, गंग्गुली को बाहर बिठाकर गरेग 'युवा टीम' बना रहे हैं, लेकिन साल बीत गया अभी तक ऊ एको ठो युवा तीसमार खां नहीं ढूंढ पाए। ऐसने चलता रहा, तो चप्पल बनाते रहें विश्व विजेता टीम और मिलता रहा भारतीय किरकेट को सब्र का मीठा फल!

सही बताऊं, तो गंग्गुली जी की याद हमको इसलिए आई है, काहे कि आजकल हमारा औरो उनका दर्द एके जैसा है। उनका दर्द दिल्लीवाले से बेहतर कोयो नहीं जान सकता। सब्र का फल केतना कड़वा होता है, ई कोयो हमसे पूछे। तोड़फोड़ को लेकर पिछले साल भर से हमरी हालत खराब है। रात की नींद औरो दिन की चैन छिन गई है। अरे भइया, अतिक्रमण रखना है, तो रखो औरो तोड़ना है, तो तोड़ दो। हमको गंग्गुली काहे बनाए हुए हो?

हमरे नेता लोग हैं, रोज आकर कहेंगे- बस कुछ दिन औरो सब्र कीजिए, सब ठीक-ठाक हो जाएगा। उनका भरोसा दिलाने का अंदाज कुछ ऐसन होता है कि आपको लगेगा, जैसे अगर आप संसदो भवन पर अतिक्रमण कर लेंगे, तो ऊ कानून बनाकर उसको लीगल कर देंगे, लेकिन होता कुछो नहीं। साल भर सब्र करने का परिणाम ई है कि पूरी दिल्ली एक बेर फिर सील हो रही है।

हमको तो लगता है कि जैसे हम बस सब्र करने के लिए ही अभिशप्त हैं। घर से बाहर तक सब्र, सब्र और बस सब्र...। घर में जगह पर कुछ भी मिल नहीं रहा, इसके लिए गुस्सा करो तो सब्र करने की सीख मिलेगी। ऑफिस जाने के लिए रोड पर निकलो, तो आगे वाला सीख देगा- सब्र कर यार, अभी साइड देता हूं। उसे का पता कि लेट पहुंचने पर ऑफिस में बॉस कैसे ऐसी-तैसी करेगा? ऑफिस पहुंचो, तो वहां का आलम गीता मय होता है- काम किए जा, फल की चिंता मत कर। सब्र कर। भगवान चाहेंगे, तो तुम्हारी भी सैलरी बढ़ेगी, पोस्ट बढ़ेगा। अब एतना सब्र कर-कर के तो हम भी गंग्गुली जैसे बूढ़ा हो जाऊंगा औरो जब बूढ़ा हो जाऊंगा, तो आप ही कहिए सब्र करके ही का करूंगा?

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