चाहिए कुछ किरकेटिया जयचंद
अब हमको पूरा विशवास हो गया है कि अपने देश को कुछ किरकेटिया जयचंद की एकदम सख्त जरूरत है। यानी कुछ ऐसन किरकेटिया पिलयर औरो कोच चाहिए, जो अपनी ही टीम की लुटिया डुबो सके। सच पूछिए, तो इसी में अपने देश का भला है औरो किरकेट का भी।
आप कहिएगा कि हम एतना गुस्सा में काहे हूं, तो भइया हर चीज की एक ठो लिमिट होती है, लेकिन ई मुआ किरकेट है कि इसका कोयो लिमिटे नहीं है। का जनता, का नेता, सब हाथ धो के इसी के पीछे पड़ल रहता है। देश-दुनिया जाए भांड़ में, सबको चिंता बस किरकेट की है। दक्षिण अफरीका से दू ठो मैच का हार गए, ऐसन लग रहा है जैसे पूरे देश का सिर शरम से नीचे हो गया हो। सड़क से संसद तक हंगामा मचा है। विदर्भ के किसान भूखे मर रहे हैं, फांसी लगा रहे हैं, नेता औरो जनता सब को इसकी चिंता नहीं है, लेकिन देश दू ठो मैच हार गया, इसकी उन्हें घनघोर चिंता है। लोगों के भूखे मरने औरो किसानों के फांसी पर झूलने से पूरे विश्व में नाक कट रही है, उसकी चिंता कोयो नहीं कर रहा, लेकिन दस ठो किरकेट खेलने वाले देश में नाक कट गई, इसकी बहुते चिंता है।
हम तो कहते हैं कि भगवान की दया से ऐसने सब दिन हारती रहे अपनी टीम। इसी में भारतीय किरकेट का भला है औरो अपने देश का भी। का है कि अगर हम इसी तरह हारते रहे न, तो एक दिन जरूर ऐसन आएगा, जब लोग किरकेट के बारे में सोचना बंद कर देंगे। मतलब उन दूसरे 'दलित' खेलों को भी अपने देश में पैर फैलाने का मौका मिलेगा, जो 'सवर्ण' किरकेट के सामने बेमौत मर रहे हैं। अगर बच्चा सब तेंडुलकर औरो गंग्गुली बनने का सपना नहीं देखेगा, तो यकीन मानिए एक अरब का अपना देश ओलंपिकों में दो-तीन सौ पदक तो जीतिए लेगा। अब आप ही बताइए, किरकेट के ग्यारह ठो पिलयर के पीछे दिमाग खराब करना फायदेमंद है या फिर दो-तीन सौ एथलीटों के पीछे?
मैच हारते रहने का सबसे बड़का फायदा ई होगा कि देश के बेरोजगारों को कभियो बेरोजगारी नहीं अखरेगी। का है कि अपने देश के लोग सब घनघोर विश्लेषक किस्म के पराणी होते हैं औरो 'एक्सपर्ट कमेंट' देने में माहिर होते हैं। उनको कौनो मुद्दा दे दीजिए औरो फिर देखिए उनकी विश्लेषण क्षमता! किरकेट की ए बी सी डी ऊ भले न जानते हों, लेकिन किरकेट तो ऊ डॉन ब्रेडमैन तक को सिखा सकते हैं। ऐसन में अगर अपनी टीम हारती रहेगी, तो विश्लेषण बेसी होगा औरो विश्लेषण बेसी होगा, तो देश के बेरोजगार सब कभियो अपने को बेरोजगार महसूस नहीं करेंगे औरो सरकार से बेरोजगारी भत्ता भी नहीं मांगेंगे। मतलब देश को जीतने से बेसी फायदा किरकेट टीम के हारते रहने में है। आप ही सोचिए न, जीतने के बाद विश्लेषण की गुंजाइशे कितनी बचती है?
वैसे हारते रहने में फायदा तो भारतीय किरकेट टीम का भी है। का है कि लगातार हारते रहने से लोग किरकेट को भूल जाएंगे, जैसन हाकी को भूल गए हैं। ऐसन में किरकेटरों पर मानसिक दवाव कम होगा, जिससे ऊ बढ़िया परदरशन कर सकेंगे। अगर बढि़या नहीं खेल पाए, तभियो कोयो उनको जूता का माला तो नहिए पहनाएगा औरो नहिए उनके घर पर तोड़-फोड़ करेगा। खबर तो पढ़े ही होंगे, बेचारा गरीब पराणी मोहम्मद कैफ के घर पर लोग सब लाठी-डंडा लेकर पहुंच गए थे! आज तक कभियो धनराज पिल्लई के घर पर हाकी प्रेमियों के परदरशन की खबर सुने हैं आप? नहीं ना! तो फिर दुआ कीजिए, कुछ किरकेटिया जयचंद तो हमको मिल ही जाए!
आप कहिएगा कि हम एतना गुस्सा में काहे हूं, तो भइया हर चीज की एक ठो लिमिट होती है, लेकिन ई मुआ किरकेट है कि इसका कोयो लिमिटे नहीं है। का जनता, का नेता, सब हाथ धो के इसी के पीछे पड़ल रहता है। देश-दुनिया जाए भांड़ में, सबको चिंता बस किरकेट की है। दक्षिण अफरीका से दू ठो मैच का हार गए, ऐसन लग रहा है जैसे पूरे देश का सिर शरम से नीचे हो गया हो। सड़क से संसद तक हंगामा मचा है। विदर्भ के किसान भूखे मर रहे हैं, फांसी लगा रहे हैं, नेता औरो जनता सब को इसकी चिंता नहीं है, लेकिन देश दू ठो मैच हार गया, इसकी उन्हें घनघोर चिंता है। लोगों के भूखे मरने औरो किसानों के फांसी पर झूलने से पूरे विश्व में नाक कट रही है, उसकी चिंता कोयो नहीं कर रहा, लेकिन दस ठो किरकेट खेलने वाले देश में नाक कट गई, इसकी बहुते चिंता है।
हम तो कहते हैं कि भगवान की दया से ऐसने सब दिन हारती रहे अपनी टीम। इसी में भारतीय किरकेट का भला है औरो अपने देश का भी। का है कि अगर हम इसी तरह हारते रहे न, तो एक दिन जरूर ऐसन आएगा, जब लोग किरकेट के बारे में सोचना बंद कर देंगे। मतलब उन दूसरे 'दलित' खेलों को भी अपने देश में पैर फैलाने का मौका मिलेगा, जो 'सवर्ण' किरकेट के सामने बेमौत मर रहे हैं। अगर बच्चा सब तेंडुलकर औरो गंग्गुली बनने का सपना नहीं देखेगा, तो यकीन मानिए एक अरब का अपना देश ओलंपिकों में दो-तीन सौ पदक तो जीतिए लेगा। अब आप ही बताइए, किरकेट के ग्यारह ठो पिलयर के पीछे दिमाग खराब करना फायदेमंद है या फिर दो-तीन सौ एथलीटों के पीछे?
मैच हारते रहने का सबसे बड़का फायदा ई होगा कि देश के बेरोजगारों को कभियो बेरोजगारी नहीं अखरेगी। का है कि अपने देश के लोग सब घनघोर विश्लेषक किस्म के पराणी होते हैं औरो 'एक्सपर्ट कमेंट' देने में माहिर होते हैं। उनको कौनो मुद्दा दे दीजिए औरो फिर देखिए उनकी विश्लेषण क्षमता! किरकेट की ए बी सी डी ऊ भले न जानते हों, लेकिन किरकेट तो ऊ डॉन ब्रेडमैन तक को सिखा सकते हैं। ऐसन में अगर अपनी टीम हारती रहेगी, तो विश्लेषण बेसी होगा औरो विश्लेषण बेसी होगा, तो देश के बेरोजगार सब कभियो अपने को बेरोजगार महसूस नहीं करेंगे औरो सरकार से बेरोजगारी भत्ता भी नहीं मांगेंगे। मतलब देश को जीतने से बेसी फायदा किरकेट टीम के हारते रहने में है। आप ही सोचिए न, जीतने के बाद विश्लेषण की गुंजाइशे कितनी बचती है?
वैसे हारते रहने में फायदा तो भारतीय किरकेट टीम का भी है। का है कि लगातार हारते रहने से लोग किरकेट को भूल जाएंगे, जैसन हाकी को भूल गए हैं। ऐसन में किरकेटरों पर मानसिक दवाव कम होगा, जिससे ऊ बढ़िया परदरशन कर सकेंगे। अगर बढि़या नहीं खेल पाए, तभियो कोयो उनको जूता का माला तो नहिए पहनाएगा औरो नहिए उनके घर पर तोड़-फोड़ करेगा। खबर तो पढ़े ही होंगे, बेचारा गरीब पराणी मोहम्मद कैफ के घर पर लोग सब लाठी-डंडा लेकर पहुंच गए थे! आज तक कभियो धनराज पिल्लई के घर पर हाकी प्रेमियों के परदरशन की खबर सुने हैं आप? नहीं ना! तो फिर दुआ कीजिए, कुछ किरकेटिया जयचंद तो हमको मिल ही जाए!
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