एतना खोट गरीबी में!
आजकल जहां देखिए, वहीं कंकालों की चरचा है। अपने देश के निठारी गांव से लेकर परदेस सोमालिया तक, हड्डी ही हड्डी! निठारी में भले-चंगे मानुषों को एक अमीर ने कंकाल बना दिया, तो सोमालिया में गरीबी से कंकाल में बदल चुके मानुषों को अमीर अमेरिका अब पता नहीं किस चीज में बदलेगा।
बढ़िया है भैय्या। अमेरिका धनी देश है, इसलिए ऊ धनी आदमी जैसन रोज 'दिन होली, रात दीवाली' तो मनइबे करेगा। अभिए तो उसने इराक में सद्दाम की बलि से बकरीद मनाया था औरो एतना जल्दी सोमालिया में दीवाली मनाने पहुंच गया! खैर, अमीर मनाए रोज होली-दीवाली हमरा कौन-सा तेल-घी जलता है, लेकिन दिक्कत बस ई है कि निठारी गांव हो या सोमालिया, अमीरों की ऐय्याशी में बोटी तो गरीबों की ही उड़ती है न। तो गलती किसकी है, खून पीने वाले अमीरों की या फिर खून पिलवाने के लिए तैयार गरीबों की?
हमरे खयाल से गलती दोनों में से किसी की नहीं है, काहे कि दोनों अपनी आदत से लाचार हैं। अमीरों की गलती इसलिए नहीं है, काहे कि उनकी प्यास होती ही इतनी बड़ी है कि जल्दी बुझबे नहीं करती, तो गरीबों की गलती आप इसलिए नहीं कह सकते, काहे कि अगर पेट में चूहा हुड़दंग मचाएगा, तो लोग श्मशान में भी अन्न ढूंढने पहुंचेगा ही। आपको का लगता है, सोमालिया के 'कंकाल मानव' सब शौक से गया होगा अल कायदा के आतंकवादियों के पास? अरे भैय्या, उन आतंकियों ने उन्हें भी वैसने चॉकलेट देकर फंसाया होगा, जैसन निठारी गांव के बच्चा सब को मोनिंदर सिंह ने फंसाया था। ई कमबख्त पेट बहुत खराब चीज होता है हो, जो न कराए, ऊ कम है!
तो का खोट अमीरी में है? न, बिल्कुल नहीं। हमरे खयाल से खोट गरीबी में है! न आदमी गरीब होगा, न कोयो उनको फंसाकर उसकी जान लेगा। अगर निठारी के मासूम बच्चों औरो सोमालिया के 'कंकाल मानवों' के पास पैसा होता, तो ऊ मोनिंदर या अलकायदा के फांस में काहे फंसता?
खोट गरीबी में है, तभिये तो बिहार-यूपी के मजदूरों को असम से लेकर मुंबई तक में गाली सुननी पड़ती है। इधर बेचारा हिंदीभाषियों की असम में हत्या हो रही है, तो उधर बाल ठाकरे पुरबियों को मुंबई छोड़ने के लिए रोजे धमकाते रहते हैं। गरीबों में एक खोट औरो होता है, जब ऊ अमीर हो जाता है, तो गरीबों से घोर नफरत करने लगता है। तभिये तो कल तक गरीब रही मल्लिका सहरावत को आज गरीबों से नफरत है। पिछले दिनों ऊ मिली, तो बहुते गुस्से में थी। उनकी तकलीफ ई है कि चैनलों के चलते मुंबई में हुआ उनका एतना खास सेक्सी भूखे-नंगों तक ने देख लिया। कहने लगी, 'चैनल के भुख्खर पतरकारों ने हमको बाजारू औरत समझ लिया था। अगर भूखे-नंगों को ही नाच दिखाना होता, तो अपने कपड़ों को लंगोट का रूप काहे देती? का है कि ऊ कपड़ा तो बस अमीर ही बर्दाश्त कर सकते हैं, गरीबों को उसे देखकर गर्मी आने लगती है, जो किसी के लिए ठीक नहीं। फिलिम में जब हम आधा ढंककर आधा उघारे रहती हूं, तब को फरंट सीट से किलो के हिसाब में सिक्का उछाला जाता है परदे पर! अगर इस तरह का बॉडी सूट पहनकर परदे पर पहुंच जाऊं, तो सिनेमा हाल का तो भगवाने मालिक है! अब जो हजम न हो गरीबों को, ऊ उनको काहे दिखाया जाए।'
चलिए, हमको गरीबों के एक ठो औरो खोट का पता चल गया!
बढ़िया है भैय्या। अमेरिका धनी देश है, इसलिए ऊ धनी आदमी जैसन रोज 'दिन होली, रात दीवाली' तो मनइबे करेगा। अभिए तो उसने इराक में सद्दाम की बलि से बकरीद मनाया था औरो एतना जल्दी सोमालिया में दीवाली मनाने पहुंच गया! खैर, अमीर मनाए रोज होली-दीवाली हमरा कौन-सा तेल-घी जलता है, लेकिन दिक्कत बस ई है कि निठारी गांव हो या सोमालिया, अमीरों की ऐय्याशी में बोटी तो गरीबों की ही उड़ती है न। तो गलती किसकी है, खून पीने वाले अमीरों की या फिर खून पिलवाने के लिए तैयार गरीबों की?
हमरे खयाल से गलती दोनों में से किसी की नहीं है, काहे कि दोनों अपनी आदत से लाचार हैं। अमीरों की गलती इसलिए नहीं है, काहे कि उनकी प्यास होती ही इतनी बड़ी है कि जल्दी बुझबे नहीं करती, तो गरीबों की गलती आप इसलिए नहीं कह सकते, काहे कि अगर पेट में चूहा हुड़दंग मचाएगा, तो लोग श्मशान में भी अन्न ढूंढने पहुंचेगा ही। आपको का लगता है, सोमालिया के 'कंकाल मानव' सब शौक से गया होगा अल कायदा के आतंकवादियों के पास? अरे भैय्या, उन आतंकियों ने उन्हें भी वैसने चॉकलेट देकर फंसाया होगा, जैसन निठारी गांव के बच्चा सब को मोनिंदर सिंह ने फंसाया था। ई कमबख्त पेट बहुत खराब चीज होता है हो, जो न कराए, ऊ कम है!
तो का खोट अमीरी में है? न, बिल्कुल नहीं। हमरे खयाल से खोट गरीबी में है! न आदमी गरीब होगा, न कोयो उनको फंसाकर उसकी जान लेगा। अगर निठारी के मासूम बच्चों औरो सोमालिया के 'कंकाल मानवों' के पास पैसा होता, तो ऊ मोनिंदर या अलकायदा के फांस में काहे फंसता?
खोट गरीबी में है, तभिये तो बिहार-यूपी के मजदूरों को असम से लेकर मुंबई तक में गाली सुननी पड़ती है। इधर बेचारा हिंदीभाषियों की असम में हत्या हो रही है, तो उधर बाल ठाकरे पुरबियों को मुंबई छोड़ने के लिए रोजे धमकाते रहते हैं। गरीबों में एक खोट औरो होता है, जब ऊ अमीर हो जाता है, तो गरीबों से घोर नफरत करने लगता है। तभिये तो कल तक गरीब रही मल्लिका सहरावत को आज गरीबों से नफरत है। पिछले दिनों ऊ मिली, तो बहुते गुस्से में थी। उनकी तकलीफ ई है कि चैनलों के चलते मुंबई में हुआ उनका एतना खास सेक्सी भूखे-नंगों तक ने देख लिया। कहने लगी, 'चैनल के भुख्खर पतरकारों ने हमको बाजारू औरत समझ लिया था। अगर भूखे-नंगों को ही नाच दिखाना होता, तो अपने कपड़ों को लंगोट का रूप काहे देती? का है कि ऊ कपड़ा तो बस अमीर ही बर्दाश्त कर सकते हैं, गरीबों को उसे देखकर गर्मी आने लगती है, जो किसी के लिए ठीक नहीं। फिलिम में जब हम आधा ढंककर आधा उघारे रहती हूं, तब को फरंट सीट से किलो के हिसाब में सिक्का उछाला जाता है परदे पर! अगर इस तरह का बॉडी सूट पहनकर परदे पर पहुंच जाऊं, तो सिनेमा हाल का तो भगवाने मालिक है! अब जो हजम न हो गरीबों को, ऊ उनको काहे दिखाया जाए।'
चलिए, हमको गरीबों के एक ठो औरो खोट का पता चल गया!
टिप्पणियाँ
अन्जाने में एक बहुत जोरदार कह दी आपने कि
गरीबों में एक खोट औरो होता है, जब ऊ अमीर हो जाता है, तो गरीबों से घोर नफरत करने लगता है।
आपके लेखों की प्रशंषा करने के लिये योग्य शब्द नहीं मिलते। एक शब्द में कहें तो " झकास" लेख