मंतरी जी के 'गरीब'
हमरे लिए ई सवाल हमेशा से भेजा घुमाने वाला रहा है कि आखिर गरीब कौन है? बच्चा में जब ई सवाल हम मास्टर जी से पूछते थे, तो रवि मुखिया, सुकन तांती सब का नाम गिनाकर ऊ परिभाषा सोचने का काम हम पर छोड़ देते थे। पराइमरी एजुकेशन में इससे बेसी नहीं बताया गया। हाई इस्कूल में हमको बताया गया कि जिसको दू जून रोटी खाने को मिल जाए, समझो ऊ गरीब नहीं है। मतलब तभियो हमको गरीब की परिभाषा नहीं बताई गई। कॉलेज में शिक्षा व्यवस्था उदार हुई, तो हमको बताया गया कि यूएन एक निश्चित डॉलर से कम की रोजाना आमदनी वालों को गरीब मानता है। अब डॉलर की बात तो हमरी समझ में कभियो नहीं आई, लेकिन सरकार ने भारतीय टका में गरीब 'न' होने की जो 'औकात' बताई थी, ऊ हमरे आसपास के सौ लोगों में से दस की भी नहीं थी।
खैर, अब भला हो उस नेताजी का, जिन्होंने गरीब रथ चलाकर हमको गरीबी की परिभाषा समझाने में मदद की है! गरीब रथ मंतरी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है औरो सरकारी प्रोजेक्ट है, तो जाहिर है ई रेल भी गरीब की सरकारी परिभाषा पर ही बनी होगी। तो आइए, हम गरीब रथ को देखकर भारत के गरीबों को समझने की कोशिश करते हैं।
बॉगी में घुसते ही जो गरीब की पहली परिभाषा आपकी समझ में आएगी, ऊ ई कि गरीब कभियो मोटा नहीं हो सकता या फिर इहो कह सकते हैं कि मोटा आदमी कभियो गरीब नहीं हो सकता। अब इसकी बॉगी का गेट एतना छोटा है कि 'खाते-पीते घर' का कोयो पराणी उसमें घुसिए नहीं सकता। तो आप इहो मान सकते हैं कि गरीब रथ के बॉगी के गेट में जो घुस जाए, ऊ गरीब हुआ औरो जो नहीं घुस पाए ऊ अमीर।
इस टरेन की सीट भी कुछ बेसिए छोटी है, तो आप इहो मान सकते हैं कि मंतरी जी के सपने का गरीब यही कोई 36 इंची की कमर वाला शख्स ही होगा! अगर किसी की कमर 36 इंची पार हो, यानी कमर नहीं कमरा हो, तो ई समझिए कि ऊ अमीर है औरो मंतरी जी या फिर कहिए कि सरकार के रजिस्टर में गरीब की कैटगरी में नहीं आता।
इस टरेन को देखकर इहो लगता है कि गरीब गरमी तो सह सकता है, लेकिन ठंडी नहीं। शायद यही वजह है कि मंतरी जी ने इस टरेन को एसी तो बना दिया, लेकिन एसी की मशीन थोड़ी खराब लगाई, ताकि बॉगी बेसी ठंडा नहीं हो औरो गरीब कंबल के अभाव में दांत किटकिटाकर मर न जाए। अब गरमी से पसीना बहेगा तो गरीब तौलिया से पोछ लेगा, दम घुटने लगेगा, तो गेट पर जाकर ताजी हवा खा लेगा, लेकिन ठंड से बचने का तो उसके पास कोयो उपाय नहीं होता ना! तो इसका मतलब ई हुआ कि जो गरमी सह ले, लेकिन ठंडी न सहे, ऊ आदमी गरीब हुआ। नहीं, ऐसा नहीं है कि इस टरेन में कंबल नहीं मिलता, मिलता तो है, लेकिन इसका पराइवेट ठेकेदार एक बॉगी के लिए तीस-चालीस कंबल से बेसी रखबे नहीं करता है। तो मतलब ई हुआ कि गरीब ऊ है, जो बेसी सुविधाभोगी नहीं हो।
और हां, गरीब रथ देखकर गरीबों की जो एक परिभाषा औरो हमरी समझ में आई, ऊ ई कि सफर में जिसके पास खाने की औकात नहीं हो, ऊ गरीब होता है। अब का है कि इस टरेन में पेंट्री कार है ही नहीं। तो मतलब ई कि जो बाजार से खरीदकर नहीं खा पाए और सत्तू-चिउड़ा बांधकर सफर करने को मजबूर हो, ऊ पराणी गरीब हुआ।
और गरीबों की अंतिम परिभाषा ई कि जिसके सफर को रोककर अमीरों का सफर जारी रखा जाए, ऊ मजबूर पराणी भी गरीब होता है। काहे कि राजधानी एक्सप्रेस को रास्ता देने के लिए गरीब रथ को किसी जंगल में भी घंटे भर रोका जा सकता है! तो उम्मीद है, हमरी तरह आप भी अब गरीबी की तह तक पहुंच गए होंगे। आप इहो जान गए होंगे कि कैसे 22 हजार करोड़ रुपया के लाभ में कोयो मंत्रालय पहुंच सकता है और वाहवाही में मंतरी जी दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में पढ़ाने के लिए जा सकते हैं।
खैर, अब भला हो उस नेताजी का, जिन्होंने गरीब रथ चलाकर हमको गरीबी की परिभाषा समझाने में मदद की है! गरीब रथ मंतरी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है औरो सरकारी प्रोजेक्ट है, तो जाहिर है ई रेल भी गरीब की सरकारी परिभाषा पर ही बनी होगी। तो आइए, हम गरीब रथ को देखकर भारत के गरीबों को समझने की कोशिश करते हैं।
बॉगी में घुसते ही जो गरीब की पहली परिभाषा आपकी समझ में आएगी, ऊ ई कि गरीब कभियो मोटा नहीं हो सकता या फिर इहो कह सकते हैं कि मोटा आदमी कभियो गरीब नहीं हो सकता। अब इसकी बॉगी का गेट एतना छोटा है कि 'खाते-पीते घर' का कोयो पराणी उसमें घुसिए नहीं सकता। तो आप इहो मान सकते हैं कि गरीब रथ के बॉगी के गेट में जो घुस जाए, ऊ गरीब हुआ औरो जो नहीं घुस पाए ऊ अमीर।
इस टरेन की सीट भी कुछ बेसिए छोटी है, तो आप इहो मान सकते हैं कि मंतरी जी के सपने का गरीब यही कोई 36 इंची की कमर वाला शख्स ही होगा! अगर किसी की कमर 36 इंची पार हो, यानी कमर नहीं कमरा हो, तो ई समझिए कि ऊ अमीर है औरो मंतरी जी या फिर कहिए कि सरकार के रजिस्टर में गरीब की कैटगरी में नहीं आता।
इस टरेन को देखकर इहो लगता है कि गरीब गरमी तो सह सकता है, लेकिन ठंडी नहीं। शायद यही वजह है कि मंतरी जी ने इस टरेन को एसी तो बना दिया, लेकिन एसी की मशीन थोड़ी खराब लगाई, ताकि बॉगी बेसी ठंडा नहीं हो औरो गरीब कंबल के अभाव में दांत किटकिटाकर मर न जाए। अब गरमी से पसीना बहेगा तो गरीब तौलिया से पोछ लेगा, दम घुटने लगेगा, तो गेट पर जाकर ताजी हवा खा लेगा, लेकिन ठंड से बचने का तो उसके पास कोयो उपाय नहीं होता ना! तो इसका मतलब ई हुआ कि जो गरमी सह ले, लेकिन ठंडी न सहे, ऊ आदमी गरीब हुआ। नहीं, ऐसा नहीं है कि इस टरेन में कंबल नहीं मिलता, मिलता तो है, लेकिन इसका पराइवेट ठेकेदार एक बॉगी के लिए तीस-चालीस कंबल से बेसी रखबे नहीं करता है। तो मतलब ई हुआ कि गरीब ऊ है, जो बेसी सुविधाभोगी नहीं हो।
और हां, गरीब रथ देखकर गरीबों की जो एक परिभाषा औरो हमरी समझ में आई, ऊ ई कि सफर में जिसके पास खाने की औकात नहीं हो, ऊ गरीब होता है। अब का है कि इस टरेन में पेंट्री कार है ही नहीं। तो मतलब ई कि जो बाजार से खरीदकर नहीं खा पाए और सत्तू-चिउड़ा बांधकर सफर करने को मजबूर हो, ऊ पराणी गरीब हुआ।
और गरीबों की अंतिम परिभाषा ई कि जिसके सफर को रोककर अमीरों का सफर जारी रखा जाए, ऊ मजबूर पराणी भी गरीब होता है। काहे कि राजधानी एक्सप्रेस को रास्ता देने के लिए गरीब रथ को किसी जंगल में भी घंटे भर रोका जा सकता है! तो उम्मीद है, हमरी तरह आप भी अब गरीबी की तह तक पहुंच गए होंगे। आप इहो जान गए होंगे कि कैसे 22 हजार करोड़ रुपया के लाभ में कोयो मंत्रालय पहुंच सकता है और वाहवाही में मंतरी जी दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में पढ़ाने के लिए जा सकते हैं।
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