जस्ट कूल ड्यूड, कुछ पॉजिटिव तो ढूंढ

भारत विश्व कप में पिट गया और तमाम लोग परेशान हो गए। रात भर जगने का सिला आखिर टीम इंडिया ने क्या दिया-- टीम का बंडल बंध गया। खैर, आप परेशान मत होइए और नकारात्मक सोच से बचने के लिए कुछ पॉजिटिव सोचिए। आखिर हर चीज का एक सकारात्मक पक्ष तो होता ही है ना। मान लीजिए कि जो होना था, वह हो गया। आइए, हम यहां आपको इस सदमे से उबरने में मददगार कुछ पॉजिटिव बातें बताते हैं।

धूप में भी पकते हैं बाल

जी हां, अगर आप युवा हैं, तो मान लीजिए कि इस हार ने आपको यही मैसेज दिया है। और क्रिकेट के 'अंध भक्त' होने के कारण आपको इस बात में पूरा विश्वास भी करना चाहिए कि बाल अनुभव बढ़ने के साथ ही नहीं पकते! ऐसे में अगर अब आपको कोई यह कहकर घुड़की दे कि 'मैंने अपने बाल धूप में नहीं पकाए हैं और मेरे अनुभव के सामने तुम कहीं नहीं ठहरते', तो अब आपको उसके प्रभामंडल से घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि बांग्लादेश और आयरलैंड का उदाहरण उसके सामने रखने की जरूरत है। सच मानिए, भारत की हार ने आपको एक बड़ा उदाहरण दिया है, यह साबित करने का कि अनुभव ही सब कुछ नहीं होता, आज के बच्चे 'सीखने' से पहले ही काफी कुछ सीख चुके होते हैं।

श्रम के करोड़ों घंटे बच गए

अगर आप देश भक्त हैं और क्रिकेट के प्रति अपने जज्बात को थोड़ी देर के लिए परे रख सकते हैं, तो आप भी इस बात से सहमत होंगे ही कि पहले ही राउंड में भारतीय टीम ने विश्व कप से आउट होकर देश के हित में काम किया है। जरा सोचिए, सवा अरब लोगों के इस देश में अगर कोई व्यक्ति औसतन एक घंटा भी विश्व कप का मैच देखता है, तो वह काम के कितने घंटे बर्बाद करता है!

और अब जबकि भारत विश्व कप से बाहर हो गया है हमारे-आपके जैसे करोड़ों लोग क्रिकेट को भूल अपने काम को ढंग से अंजाम दे पाएंगे, यानी क्रिकेट के निठल्ले चिंतन से बचने का मतलब है देश के लिए श्रम के करोड़ों घंटे बचा लेना! है न खुशी की बात! आखिर इससे आप ही के देश की प्रगति होगी न।

बोर्ड के परीक्षार्थियों के हित में है यह हार

इस विश्व कप से सबसे ज्यादा परेशानी बोर्ड के परीक्षार्थियों को हो रही थी। मुगल बादशाहों के नाम रटते-रटते अक्सर उनका ध्यान सचिन के स्ट्रेट ड्राइव पर चला जाता था और फिर सताने लगता था परीक्षा में कम अंक आने का डर। अब क्या कीजिएगा मन की उड़ान को तो कोई नहीं रोक सकता ना! फिर बच्चों के पैरंट्स की हालत भी कम खराब नहीं थी। बच्चे को एग्जाम की तैयारी में कोई बाधा नहीं पहुंचे, इसलिए वे टीवी ऑन तक नहीं करते थे, लेकिन मन ही मन मैच नहीं देख पाने के कारण कुढ़ते रहते थे।

तो टीम इंडिया के खराब प्रदर्शन से अब बच्चे मुगल खानदान के बादशाहों के नाम सही से याद कर पाएंगे व एग्जाम में बढ़िया मार्क्स ला पाएंगे और उनके पैरंट्स की खुशी के बारे में तो पूछिए ही मत। अगर पड़ोस में कोई बोर्ड का परीक्षार्थी हो, तो जरा हार के बाद की स्थिति पता करके देखिए। यकीन मानिए, आपको यह जानकर सुकून मिलेगा कि बच्चे और उनके पैरंट्स दोनों खुश हैं।

रात की नींद छिनने से बच गई

भारतीय टीम हारकर विश्व कप से बाहर हो गई, तो अब हमारे लिए विश्व कप में बचा ही क्या? अब हमें रात के तीन बजे तक जगने की जरूरत नहीं, चैन से खाइए और खर्राटे भरिए। पुराने रूटीन पर लौटकर आपको भी खुशी ही होगी। अगर आप यह मानते हैं, तो फिर खुश होइए न!

... यानी रोग से आप बच गए और डांट से भी

लगातार रात भर जगने का मतलब होता है, तबीयत खराब होना और फिर दफ्तर पहुंचकर ऊंघते रहने की वजह से बॉस से डांट खाना। चलिए, भारत के अब तक के तीन मैचों के लिए आपने अपनी तबीयत जितनी खराब कर ली और बॉस से जितनी डांट खा ली, काफी है। अब न तो भारतीय टीम मैच खेलने के लिए मैदान में होगी और न ही आपको रात में जगकर पेट व आंख की गड़बडि़यों का सामना करने पड़ेगा। रात में जगेंगे नहीं, तो दिन में ऑफिस में ऊंघकर बॉस से डांट खाने की मजबूरी भी नहीं होगी।

टिप्पणियाँ

रवि रतलामी ने कहा…
और, अगर भारत लगातार दो साल तक हर क्रिकेट मैच हार जाए तो देस की जनता जो क्रिकेट के कारण गली मुहल्लों में कबड्डी, कंचे व गुल्लीडंडा खेलना भूल गई है वो भी फिर से क्रिकेट को भूलकर इन्हें खेलना प्रारंभ कर देगी. :)
Udan Tashtari ने कहा…
आपने मेरी आँखें खोल दीं, मै नाहक ही हार से दुखी था. किस विध कहूँ आभार तुहारा!! :)
Sagar Chand Nahar ने कहा…
”दिल को बहलाने, गालिब ख्याल अच्छा है....”

चलिये हम सब कम से कम आपकी तरह आशावादी तो हों। :)
बेनामी ने कहा…
भाई नकल बडिया कर लेते हो

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अकेला गण, एतना विरोधी तंत्र

महिलाओं के सखा बनें पुरुष

आजादी के नाम पर...