कांग्रेस की बत्ती गुल!

क्या कहते हैं उसे... हां 'धो डालना'। तो बीजेपी ने भी कांग्रेस को दिल्ली के एमसीडी के चुनाव में धो डाला। धोना इस सेंस में कि खुद कांग्रेस को भी अपनी ऐसी दुर्गति की आशंका नहीं थी और न ही बीजेपी को इतनी बड़ी जीत की उम्मीद! आखिर कौन यह सोच सकता था राज्य में बिना किसी कद्दावर नेतृत्व के भी बीजेपी 164 सीटें पा लेगी और कांग्रेस 69 सीट लेकर देखती रह जाएगी!

वैसे, इसे लोकतंत्र का चमत्कार और विडंबना ही कहिए कि इस जीत के लिए खुद बीजेपी भी अपनी पीठ नहीं थपथपा सकती! यह तो कहिए कि कांग्रेस ने दिल्ली की इतनी दुर्गति ही कर दी थी कि मजबूरन लोगों को बीजेपी को चुनना पड़ा। वरना बीजेपी कोई सुधरी पार्टी कतई नहीं है कि उसे एमसीडी की जिम्मेदारी सौंप कर जनता निश्चिंत हो जाए।

तमाम लोग यह मानते हैं कि कांग्रेस को सीलिंग और अवैध निर्माणों के तोड़फोड़ की सजा मिली, लेकिन यह हार की एकमात्र और सबसे बड़ी वजह कतई नहीं है। कांग्रेस की इस दुर्गति के लिए जो सबसे बड़ा फैक्टर जिम्मेदार है, वह है कमर तोड़ महंगाई। दाल, चावल, सब्जियों और घरेलू चीजों के दाम हाल के महीनों में इतनी तेजी से बढ़े कि लोगों को घर का बजट देखकर बेहोशी आने लगी है। इतिहास खुद को दोहराता है और इस चुनाव में भी यही हुआ। यह तो कहिए कि बीजेपी ने एक तरह से बदला वसूला है कांग्रेस से। नौ साल पहले प्याज की आसमान चढ़ती कीमतों ने बीजेपी से दिल्ली का ताज छिन लिया था और अब दाल-सब्जी की आसमान छूती कीमतों ने कांग्रेस को पटकनी दे दी है। सत्ता छीनने का हथियार यहां एक ही है।

हालांकि एमसीडी चुनाव की इतनी अहमियत नहीं होती कि इसके परिणाम को जनता का जनादेश मान शीला दीक्षित को इस्तीफा देने को मजबूर किया जाए, लेकिन कांग्रेस ही नहीं बीजेपी के लिए भी यह चुनाव एक सबक है। अगर बीजेपी दिल्ली के ज्वलंत मुद्दे की आग जलाकर रख पाती है, तो तय मानिए कि अगले विधानसभा चुनाव में भी वह कांग्रेस की छुट्टी कर देगी, लेकिन सवाल है कि क्या कांग्रेस एमसीडी के इस चुनाव से कोई सबक नहीं लेगी और बीजेपी को विधानसभा में भी मौका दे देगी?

अगर राज्य के वर्तमान स्थितियों को देखें, तो यह कम ही उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन में एमसीडी चुनाव की तुलना में कोई सुधार होने वाला है। वजह यह कि कांग्रेस की हार के कारणों-- सीलिंग, अवैध निर्माणों की तोड़फोड़, पानी, बिजली और महंगाई, किसी में भी सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही। आखिर इनमें से कोई भी चीज दिल्ली सरकार के हाथ में नहीं है। सीलिंग व अवैध निर्माण के मामले में कोई भी सकारात्मक परिणाम के लिए वह कोर्ट पर निर्भर है, तो पानी व बिजली के मामले में पड़ोसी राज्यों पर। महंगाई कोई लोकल मुद्दा नहीं है और दिल्ली सरकार चाहकर भी चीजों के दाम को महंगाई के आसमान से नीचे नहीं उतार सकती। तो कांग्रेस ने यह हार अपनी प्रशासनिक अक्षमताओं की वजह से कम और दूसरी वजहों से ज्यादा खाई है। हां, इस हार में पार्टी और सरकार के बीच तारतम्य की जो कमी है, उसकी भी अपनी भूमिका रही है।

इस चुनाव से सबक: दिल्ली के एमसीडी चुनावों के परिणाम को देखकर कोई भी सरकार यह सोचना छोड़ दे कि वह मॉल, मल्टीप्लेक्स और फ्लाईओवर्स से राज्य को सजाकर जनता से वोट पा लेगी। हालांकि हम ऐसा ही परिणाम चंद्रबाबू नायडू की आंध्र प्रदेश से विदाई के रूप में भी देख चुके हैं। सच तो यह है कि इन चीजों के रहने और न रहने से जनता को उतना फर्क नहीं पड़ता, जितना कि पेट में अन्न होने से। अगर जनता के पेट में अन्न नहीं होगा, तो वह किसी भी सरकार का तख्ता पलट सकती है। उसे आप धर्मनिरपेक्षता या साम्प्रदायिकता के नाम पर हमेशा मूर्ख नहीं बना सकते और न ही समस्या का अस्थायी समाधान निकालकर उसे भरमा सकते हैं।

टिप्पणियाँ

Jagdish Bhatia ने कहा…
बहुत ही अच्छा लिखा प्रिय।
मुझे तो कई बार हैरानी होती है की यह राजनीतिक दल क्या वह सब नहीं समझते जिसे आम और साधारण लोग भी समझते हैं।
छोटी मोटी मार्केटिंग कंपनी भी जनता की नब्ज पहचानती है मगर बड़े बड़े राजनैतिक दल जनता से पूरी तरह कैसे कट जाते हैं?
मसिजीवी ने कहा…
अच्‍छा विश्‍लेषण
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत बढ़िया लिखे हैं.
बेनामी ने कहा…
बढि़या, बहुत बढि़या लिखा!

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