एक हमहीं चिरकुट हैं भैय्या
आजकल दुनिया तानाशाहों से परेशान है। बुश से लेकर मुश तक औरो रामदास से लेकर बुद्धदेव दास तक, सब कहर ढा रहे हैं, लेकिन कोयो उनका कुछो बिगाड़ नहीं पा रहा। मुशर्रफ ने अंतत: अपनी वरदी उतारिये दिया, लेकिन दुरभाग्य देखिए कि दुनिया उनका सिक्स पैक एब्स अभियो नहीं देख पाई है। हमरी दिली तमन्ना थी कि मुश का ऊ सिक्स पैक एब्स देखूं, जिनके बूते उसने कारिगल का सपना देखा था, लेकिन अफसोस कि देख नहीं पाया।
अब का है कि तानाशाह का मतलब तो ई न होता है कि मौका मिलते ही उसको सिंहासन पर से नीचे उतारिए औरो ऐसन ठोकिए कि फिर कोयो दूसरा तानाशाह पैदा न हो। लेकिन अफसोस कि मुशर्रफ के साथ ऐसन नहीं हुआ। उसने वरदी के नीचे में राष्ट्रपति का डरेस पहन लिया था। वरदी उतर गई, लेकिन शेरवानी अभियो देह पर कायम है।
मुशर्रफ ही नहीं, दुनिया में जेतना खूंखार तानाशाह होता है, सब मुशर्रफे जैसन डरपोक होता है औरो दस ठो कपड़ा पहनकर रहता है, ताकि एक-आध ठो उतरियो जाए, तो इज्जत कायम रहे। एक ठो बेचारा सद्दामे ऐसन अभागल थे कि नेस्तनाबूद हो गए, नहीं तो तानाशाह सब तो ऐसन होते हैं कि अपनी इज्जत बचाने के लिए लाखों की पैंट उतार देते हैं औरो साथ में सिर भी!
अपने रामदास भाई साहब को ही देख लीजिए। चमकती मूंछ की इज्जत न चल जाए, इसके लिए बेचारा सालों से एम्स डायरेक्टर के चमकते चांद को पूरै बंजर करने की कोशिश में लगे हुए थे औरो अंतत: मुशर्रफ जैसन ऊहो अपने मिशन में कामयाब होइए गए। आप ही बताइए, जिस स्वास्थ्य मंतरी पर सवा अरब लोगों के पेट खराब औरो बुखार ठीक कराने का भार हो, ऊ भला एक ठो हस्पताल के निदेशक से लड़ने में अपनी एनर्जी कैसे बरबाद कर सकता है?
का कहे, पेट खराब औरो बुखार ठीक कराने का भार? हां भैय्या, सरकारी हस्पतालों में इससे बड़ी बीमारी का इलाजे कहां होता है! एतना छोटकी बिमारियो का इलाज हो जाए, तो गनीमत मानिए। ऊ तो कहिए कि देश में झोला छाप 'घोड़ा डाक्टरों', हकीमों और तांतरिकों की संख्या एतना बेसी है कि ऊ बीमारी से निराश होने के बावजूदो किसी को जल्दी मरने नहीं देते। 'जो पुडि़या दे रहे हैं, ऊ लेते रहिए, जल्दिये ठीक हो जाइएगा' के आश्वासने पर ऊ लोगों को सालों जिलाए रखते हैं। नहीं तो, पराइवेट हस्पताल की तो हालत ई है कि फीस देखकर लाखों लोग रोज मर जाए!
अब जिस देश का ई हाल हो, वहां का स्वास्थ्य मंतरी अगर किसी विद्वान डाक्टर को अपने साथ मूंछ की लड़ाई में सालों व्यस्त रखे, तो उसको तानाशाहे न कहिएगा! औरो अति तो ई देखिए कि महज एक आदमी के अहं ने सरकार को 'बीच' का साबित कर दिया। नहीं तो, भला किसी संस्था के निदेशक को सबक सिखाने के लिए कहीं लोकसभा औरो राज्यसभा के बेजा इस्तेमाल की इजाजत मिलती है किसी मंतरी को?
लेकिन एतना सब के बावजूद अफसोस यही कि दुनिया मुशर्रफे जैसन भारतीय तानाशाहों का भी 'सिक्स पैक एब्स' नहीं देख पाएगी, काहे कि गठबंधन सरकार के इस युग में ब्लैक मेलर पार्टियां दैव समान होती हैं औरो सरकार उनका चरण चंपन करती है। तो भैय्या, हम जनता ही ऐसन चिरकुट हैं, जो इन तानाशाहों को झेलते रहते हैं। केतना बढि़या रहता, हमहूं नेता बन जाते!
अब का है कि तानाशाह का मतलब तो ई न होता है कि मौका मिलते ही उसको सिंहासन पर से नीचे उतारिए औरो ऐसन ठोकिए कि फिर कोयो दूसरा तानाशाह पैदा न हो। लेकिन अफसोस कि मुशर्रफ के साथ ऐसन नहीं हुआ। उसने वरदी के नीचे में राष्ट्रपति का डरेस पहन लिया था। वरदी उतर गई, लेकिन शेरवानी अभियो देह पर कायम है।
मुशर्रफ ही नहीं, दुनिया में जेतना खूंखार तानाशाह होता है, सब मुशर्रफे जैसन डरपोक होता है औरो दस ठो कपड़ा पहनकर रहता है, ताकि एक-आध ठो उतरियो जाए, तो इज्जत कायम रहे। एक ठो बेचारा सद्दामे ऐसन अभागल थे कि नेस्तनाबूद हो गए, नहीं तो तानाशाह सब तो ऐसन होते हैं कि अपनी इज्जत बचाने के लिए लाखों की पैंट उतार देते हैं औरो साथ में सिर भी!
अपने रामदास भाई साहब को ही देख लीजिए। चमकती मूंछ की इज्जत न चल जाए, इसके लिए बेचारा सालों से एम्स डायरेक्टर के चमकते चांद को पूरै बंजर करने की कोशिश में लगे हुए थे औरो अंतत: मुशर्रफ जैसन ऊहो अपने मिशन में कामयाब होइए गए। आप ही बताइए, जिस स्वास्थ्य मंतरी पर सवा अरब लोगों के पेट खराब औरो बुखार ठीक कराने का भार हो, ऊ भला एक ठो हस्पताल के निदेशक से लड़ने में अपनी एनर्जी कैसे बरबाद कर सकता है?
का कहे, पेट खराब औरो बुखार ठीक कराने का भार? हां भैय्या, सरकारी हस्पतालों में इससे बड़ी बीमारी का इलाजे कहां होता है! एतना छोटकी बिमारियो का इलाज हो जाए, तो गनीमत मानिए। ऊ तो कहिए कि देश में झोला छाप 'घोड़ा डाक्टरों', हकीमों और तांतरिकों की संख्या एतना बेसी है कि ऊ बीमारी से निराश होने के बावजूदो किसी को जल्दी मरने नहीं देते। 'जो पुडि़या दे रहे हैं, ऊ लेते रहिए, जल्दिये ठीक हो जाइएगा' के आश्वासने पर ऊ लोगों को सालों जिलाए रखते हैं। नहीं तो, पराइवेट हस्पताल की तो हालत ई है कि फीस देखकर लाखों लोग रोज मर जाए!
अब जिस देश का ई हाल हो, वहां का स्वास्थ्य मंतरी अगर किसी विद्वान डाक्टर को अपने साथ मूंछ की लड़ाई में सालों व्यस्त रखे, तो उसको तानाशाहे न कहिएगा! औरो अति तो ई देखिए कि महज एक आदमी के अहं ने सरकार को 'बीच' का साबित कर दिया। नहीं तो, भला किसी संस्था के निदेशक को सबक सिखाने के लिए कहीं लोकसभा औरो राज्यसभा के बेजा इस्तेमाल की इजाजत मिलती है किसी मंतरी को?
लेकिन एतना सब के बावजूद अफसोस यही कि दुनिया मुशर्रफे जैसन भारतीय तानाशाहों का भी 'सिक्स पैक एब्स' नहीं देख पाएगी, काहे कि गठबंधन सरकार के इस युग में ब्लैक मेलर पार्टियां दैव समान होती हैं औरो सरकार उनका चरण चंपन करती है। तो भैय्या, हम जनता ही ऐसन चिरकुट हैं, जो इन तानाशाहों को झेलते रहते हैं। केतना बढि़या रहता, हमहूं नेता बन जाते!
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