खतम हो गया 'भालू राज'
जब पहली बार लालू बिहार में सत्ता से बेदखल हुए थे तो मैने एक ब्लॉग लिखा था. आज लालू जब फिर से राजनीति से बेदखल हो रहे हैं तो वो ब्लॉग पेश कर रहा हूँ:
तो लीजिए, जनाब हम फिर से आ गया हूं मैदान में। अब आप ई पूछिएगा कि अब तक हम कहां थे, त सुनिए- - वैसे, तो लोकतंत्र के असली शेर हमहीं जनता हैं, लेकिन का है कि जंगलराज में सब उल्टे न होता है, इसलिए हम बकरी बन गए थे औरो नंदन कानन में भालू राज था। अब जाके जब भालू राज खतम हुआ है, त हम मांद से बाहर आ गया हूं।
का कहे, हम शेर थे, तो मांद में काहे दुबके हुए थे? अरे, ई सब समय का फेर है। हमको थोड़े ई पता था कि हमरे बल पर सत्ता में आया भालू एतना मजबूत हो जाएगा कि हमको बिलाड़ो नहीं बूझेगा। और फिर कमजोर तो हम इसलिए भी हो गए थे, क्योंकि भालू राज में हम सबका चारा कोयो और खा गया। अब आप ही बताइए, खाने नहीं मिलेगा, तो शेरे रहने से का आप भालू को हरा दीजिएगा?
उ तो धनवाद दीजिए सुधरल इलेक्शन कमिशन को कि हम सबको भोट देने का मौका मिला। नहीं तो इहो बेर ईवीएम से जिन्नै न निकलता! अब ई तो भलूए का चमत्कार था कि जिन्न चिराग के बदले ईवीएम से निकलने लगा था। अब आप ईहो बूझ गए होंगे कि हुंआ बच्चा सब के खिस्सा-कहानी से जिन्न-विन्न काहे गायब हो गया और बच्चा सब दिल्ली- कानपुर के फैकटरी में क्यों मजदूर हो गया। वही जिन्न न मदद करता था भलूआ के, लेकिन का है कि इस बार राव ने जिन्न को घाव कर दिया आ उ ईवीएम में घुसिए नहीं सका। अब आपको ई त पता चलिए न गया होगा कि भालू एतना निक्कमा था, त एतना साल से शासन कैसे कर रहा था!
का है कि दुर्भाग अब तक नंदन कानन का पीछे नहीं छोड़ रहा था। नहीं त बरिस भर पहिले न हम आजाद हो जाते। उ तो भालू को एगो खूंटा सिंह मिल गया और भालू राज एक साल और खिंच गया। और आप तो जानते ही हैं कि खूंटा मजबूत हो, तो बछड़ा केतना उछलता है, बिना ई बूझे कि उसको फिर से धरती पर उतरना है! का है कि उछलने के बाद आना तो आपको धरतिए पर है, हवा में तो रहिएगा नहीं और जेतना जोर से उछलिएगा, जमीन पर ओतना ही जोर से गिरएगा भी। त फिलहाल भालू जमीन सूंघ रहा है और हम आ गया हूं अपनी जगह पर। अब आप भी चैन से बदाम टूंगिए औरो हमर बेहतरी के कामना कीजिए, तब तक हम तनि घूम-घाम कर आता हूं। अभी तो हम शेर बना ही रहूंगा, जब तक कि हमरा राज खतम नहीं हो जाता।
टिप्पणियाँ