प्रिय भक्तो, पिछले कुछ सालों से जन्माष्टमी के दिन मैं बड़ा व्याकुल महसूस करता हूं। मुझे पता चला कि पृथ्वी लोक पर सबसे ज्यादा पॉपुलर भगवानों में मैं शीर्ष पर हूं, लेकिन सच पूछो तो अपनी पॉपुलैरिटी को लेकर मैं खुद ही कन्फ्यूज्ड हूं। इतना पॉपुलर होने का मतलब है कि लोग मेरे विचारों से प्रभावित होंगे। उन्हें लगता होगा कि मैं उनका आदर्श हूं, लेकिन समझ नहीं आ रहा कि अगर मैं घर-घर पूजा जाता हूं, सबसे पॉपुलर हूं और आदर्श भी, तो फिर मेरे विचारों की, मेरे आदर्शों की धज्जियां वहां कैसे उड़ रही हैं! मुझसे जुड़ा कोई भी धर्मग्रंथ, कोई भी पुराण देख लीजिए, महिलाओं को मैंने सबसे ज्यादा मान दिया है। जिस समय पुरुषों का राज था, वे समाज को लीड करते थे, तब भी मैंने गोपियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल किया। उन्हें पुरुषों के बराबर दर्जा दिया। जहां कृष्ण हैं, वहां गोपियां हैं। बिना गोपियों के कृष्ण की कथा कभी पूरी नहीं होती। यह महिला सशक्तिकरण का मेरा तरीका था। मैंने उन्हें घर की चारदीवारी से बाहर निकाला, वे मेरे साथ नि:संकोच आ सकती थीं, रास में शामिल हो सकती थीं। कृष्ण के नाम पर उनके घरवालों ने उन्हें
सभी आजाद रहना चाहते हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि आजादी की सबकी परिभाषा अलग-अलग है। संभव है कि जहां से किसी की आजादी शुरू होती हो, वहां किसी के लिए इसका अंत हो रहा हो, लेकिन हम इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। हमने इतने स्वतंत्रता दिवस मना लिए, लेकिन सच यही है कि ज्यादातर लोग आज भी आजादी को गलत अर्थों में ही ले रहे हैं: जिन लोगों ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी और सचमुच में आजादी क्या होती है, इसे शिद्दत से महसूस किया था, अगर उन चुनिंदा बचे- खुचे लोगों से आप बात करें, तो पाएंगे कि वे देश में ब्रिटिश शासन की वापसी चाहते हैं। उन्हें देश का आज का रंग-ढंग कुछ रास नहीं आ रहा। वे चाहते हैं कि जो अनुशासन अंग्रेजों के समय में था, वह फिर से देश में वापस आए। आजादी के नाम पर आज जिस तरह से सब कुछ बेलगाम है, वह उनसे सहा नहीं जाता। वैसे, उन लोगों का दर्द समझा भी जा सकता है। आज लोग हर वह काम कर रहे हैं, जो वे करना चाहते हैं और यह सब कुछ हो रहा है आजादी के नाम पर। व्यक्तिगत आजादी के नाम पर वे दूसरों की स्वतंत्रता छीन रहे हैं, बोलने की आजादी के बहाने वे दूसरों को बोलने से रोक रहे हैं, लोकतांत्रिक तरीके से वि
लीजिए, खड़ा हो गया एक ठो औरो बवाल! कैटरीना स्कर्ट पहनकर अजमेर शरीफ दरगाह का गई, कट्टरपंथियों ने बवाल मचा दिया। कम कपड़े पर बवाल औरो उहो ऐसन देश में, जहां गरीबों को तन ढंकने के लिए पूरा कपड़ा तक नसीब नहीं होता, हमरी समझ से परे है। माना कि कैटरीना गरीब नहीं है, लेकिन देश में ऐसन करोड़ों गरीब महिला आपको मिल जाएंगी, जिनको टांग क्या, छाती ढंकने के लिए भी कपड़े नसीब नहीं होते। तो का दरगाह जाने का हक उनको नहीं है? बताइए, ई दुनिया केतना अजीब है! गरीब गरीब बनकर अपने लिए दुआ भी नहीं कर सकता। आपको किसी दरगाह या इबादतखाना में जाना है, तो पहले भीख मांगकर पूरा तन ढंकिए, तब जाकर अपनी गरीबी दूर करने के लिए आप दुआ कर सकते हैं! बहुत बढि़या! गरीब को गरीबी से चिपकाकर रखने का इससे बढि़या फर्मूला धरम के ठेकेदारों को औरो कोयो मिलियो नहीं सकता। वैसे, एक ठो बात बताऊं, ई गरीबो सब न एकदम से बदमाश होते हैं। जबर्दस्ती हमेशा गरीबी से दूर भागने की कोशिश करते रहते हैं। अब जिस अमीरी को भोगने के लिए आप पैदा ही नहीं हुए हैं, उस चीज को पाने की कोशिशे काहे करते हैं? आप तो बस फटे-चिटे बुरके में दरगाह औरो इबादतगाहों में आते
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उम्मीद है नव वर्ष में भी आपके मजेदार लेख लगातार पढ़ने को मिलते रहेंगे।