ई तो कुछ बेसिए हो गया

आपने ऊ सुना कि नहीं कि एक सर्वे में दिल्ली को 'क्वालिटी आफ लिविंग' के पैमाना पर 215 देशों में 148वां स्थान मिला है औरो इस बात पर तमाम लोग खुशियां मना रहे हैं। लोगों का तो नहीं पता, लेकिन हमरे लिए ई फैसला कर पाना मुश्किल हो रहा है कि इस खबर पर हंसूं या रोऊं। हमरे लिए ई गर्व की बात इसलिए नहीं, काहे कि हमको इसकी बुनियादे बहुत कमजोर दिखती है। सबसे पहली बात तो ई कि दिल्ली की सारी चमक-दमक दस परसेंट लोगों के बल पर है औरो अगर नब्बे परसेंट लोग बस किसी तरह जिंदगी काट रहे हों, तो आप किसी शहर को ऐसन तमगा नहीं दे सकते। दूसरी बात ई कि इन दस परसेंट लोग में से भी 'पसीने की कमाई' बहुत कम लोगों के पास है औरो उन्हीं लोगों के चलते बाकी नब्बे परसेंट दिल्ली झुग्गी बनकर रह गई है।

दरअसल, भरष्टाचार की अजीब महिमा ई है कि इससे पावर औरो पैसे वाले लोगों का तो जीवनस्तर सुधरता चला जाता है, लेकिन यही सुधरता जीवनस्तर बाकियों के लिए अभिशाप बन जाता है। आखिर जोंक दूसरे जीवों का खून पीकर ही तो मोटे होते हैं। तो अगर जोंकों के भरोसे दिल्ली का लिविंग स्डैंडर्ड किसी सर्वे में हाई दिखता हो, तो हमरे खयाल से किसी के लिए यह गर्व की बात नहीं।

दरअसल, कुछ ऐसन बात है, जो हमको कतई ई नहीं विश्वास होने देती कि दिल्ली में जीवनस्तर सुधर रहा है। दूसरे को छोडि़ए, खुदे सरकार मानती है कि दिल्ली में 80 परसेंट रिहायशी मकान अवैध है। मतलब साफ है, वहां नागरिक सुविधाएं भी अवैध कालोनियों जैसी ही है। इन कालोनियों में बस किसी तरह पानी औरो बिजली पहुंच रही है, अधिकतर में तो सीवेज सिस्टम तक नहीं है, सड़क औरो पार्क की तो बाते मत कीजिए। एक का घर दूसरे के घर पर चढ़ा हुआ है, गलियां औरो सड़क इतनी संकरी है कि आग लग जाए या भूकंप हो जाए, तो मरने वाले आदमियों की संख्या शताब्दी का रिकार्ड बना ले। लोगों के घर में कूलर है, फ्रीज है, एसी है, लेकिन बिजली रोज आठ घंटे कटती है। बताइए, जहां के अस्सी परसेंट लोगों के घर में पावर कट के कारण फ्रीज दिन में तीन बार अपने आप डिफ्रॉस्ट हो जाता हो, वहां कोयो सर्वे ई कैसे दावा कर सकता है कि वहां जीवनस्तर सुधर रहा है!

हमको तो लगता है कि सर्वे करने वालों ने रोड पर कार, फ्लाई ओवर औरो रोड के किनारे चमचमाते मॉल व मल्टीप्लेक्स देखके ई घोषित कर दिया कि दिल्ली का जीवनस्तर सुधर रहा है। उन 'काबिलों' ने ई नहीं देखा कि ये कार, फ्लाईओवर औरो मॉल-मल्टीप्लेक्स दिल्ली के दस परसेंट आदमी के काम का भी नहीं है। उन लोगों ने ई नहीं देखा कि दिल्ली के बहुसंख्यक लोग अभियो वाजिब पैसा देकर भी ब्लू लाइन के कंडक्टरों की गालियां सहते हुए दिल्ली की सड़कों पर सफर करते हैं। उन्होंने ई नहीं देखा कि दिल्ली का तीन चौथाई इलाका बैंकों के रजिस्टर में नेगेटिव एरिया घोषित है, जहां रहने वालों को लोन भी नहीं मिलता औरो बिना लोन के तो मिडिल क्लास रात में सपना तक नहीं देख सकता। फिर उन्होंने इहो नहीं देखा कि लोगों को नाला साफ कराने तक के लिए कोर्ट के शरण में जाना पड़ता है औरो पार्किंग के मुद्दे पर पड़ोसियों में गालियां से गोलियां तक चलती हैं। और जब एतना सब के बावजूद किसी को स्थिति सुधरती लग रही है, तो यकीन मानिए कि या तो ऊ बहुते आशावादी लोग हैं या फिर इस घोषणा में उनका कोयो स्वार्थ है!

टिप्पणियाँ

Udan Tashtari ने कहा…
वाह गुरु, बहुते सही दिये हो!! बहुत बढ़िया.
बेनामी ने कहा…
बहुतै अच्छा लिखते हैं आप झाजी! ये बात एकदम सही है कि इतनी कमियों के बावजूद दिल्ली का स्तर
ऊंचा बताया जाये।
रंजन (Ranjan) ने कहा…
आपने दिल्ली को बहुत करीब से देखा है...
झा जी पीछले पाँच दस सालो में दिल्ली थी वैसी ही है?
Priya Ranjan Jha ने कहा…
@ sanjay ji
nahin sudhar to huen hain, lekin itna nahin ki 225 mein 148th sthan mile. jitne shahar hain unmen delhi ko 190 ke aaspass hona chahiye.

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