उसके 'टांग उठाने' के इंतजार में...

मिसराइन जी आजकल बहुते परेशान हैं। उनकी परेशानी का कारणो कम अजीब नहीं है। दिक्कत ई है कि उसका जर्मन नसल वाला डॉगी चारों टांग जमीन पर रखकर सूसू करता है। आप कहेंगे, भाई इसमें परेशानी वाली का बात है... उसकी मरजी... ऊ कुछो करे। अब कुत्ता हुआ, तो कोयो जरूरी है कि टांग उठा के ही...?

आप ऐसन कह सकते हैं, लेकिन मिसराइन जी की अपनी तकलीफ है, जो उन्हें डॉगी के टांग उठाने का बेसब्री से इंतजार करवा रही है। अब का है कि उनके पति महोदय, यानी मिसिर जी का कहना है कि जिस दिन डॉगी 'टांग उठाने' लगेगा, तो बूझना कि बच्चा जवान हो गया औरो तब ऊ यहां-वहां गंदा कर तुम्हे परेशान नहीं करेगा। वैसे, मिसराइन को डॉगी से एतनही परॉबलम नहीं है, परॉबलम औरो सब है, लेकिन मिसिर जी के कारण ऊ कुछो बोलतीं नहीं।

एक दिन टेबुल पर मिसराइन को एक ठो दवाई वाला चिट्ठा दिख गया, उस पर मरीज का नाम लिखा था लियो मिसर। अब मिसराइन की समझ में ई नहीं आ रहा कि जिस मिसिर जी ने जिंदगी भर कभियो अपने सरनेम पर गर्व नहीं किया, ऊ एतना शान से कुत्ता महोदय के नाम में अपना सरनेम कैसे लगवा रहे हैं!

वैसे, मिसराइन को मिसिर जी की ओर से सख्त हिदायत है कि ऊ इस कुत्ते की शान में कौनो गुस्ताखी न करें। लियो मिसर कोयो गली का खजहा कुत्ता नहीं है, ई समझाने के लिए मिसराइन के सामने लियो महाराज के पितृ पक्ष औरो मातृ पक्ष का बाकायदा वंश वृक्ष पेश किया गया, जिसके अनुसार ऊ एक बेहद ऊंचे कुल के बालक हैं। उनकी नानी ने एक बड़े परतियोगिता में अपनी 'बुद्धि के बल' पर मेडल जीता था, तो यूरोप के किसी देश में जिंदगी के आखिर दिन गुजार रहे उनके दादा अपने समय में शहर के सबसे हैंडसम डॉगी का खिताब जीत चुके हैं। औरो ई कुल का प्रताप ही है कि लियो महाराज को खरीदने में मिसिर जी को हजारों रुपये ढीले करने पड़ गए।

वैसे, मिसिर जी से हजार रुपये खरच करवा लेना लियो महाराज के लिए बाएं हाथ का काम है। लियो एक बार बीमार पड़े नहीं कि मिसिर जी डाक्टर लेकर हाजिर। हजार-दो हजार की सूई तो उनको कभियो लग जाता है औरो बेचारी मिसराइन ई सब देखकर कलपती रहती हैं। एक ई लियो महाराज का सौभाग्य है कि मिसिर जी एतना केयर करते हैं औरो एक मिसराइन का दुर्भाग्य कि मिसिर जी बीमार पड़ने पर तीन दिन बाद उनको इलाज के लिए ले जाते हैं औरो उहो अंगरेजी नहीं, होम्योपैथी डाक्टर के पास। काहे कि ऊ सस्ता होता है।

हालांकि दुनिया के लिए लियो महाराज भले ही डॉग हों, लेकिन मिसिर जी उनको डीओजी साहब मानते हैं। ऊ लियो साहब को ऐसन कोचिंग दिलवा रहे हैं, जिससे ऊ पुलिस में भर्ती हो सके।

जिस दिन लियो साहब ऊ पुलिसिया एग्जाम पास कर जाएंगे, मिसिर जी का मानना है कि उस दिन उनका जीवन धन्य हो जाएगा। काहे कि तब लियो साहब इंटेलिजेंट कुत्ते की जमात में तो शामिल हो ही जाएंगे, मिसिर जी को भी पांच-दस हजार महीना कमाकर देंगे। दिलचस्प बात तो ई है कि अब जब एतना सब्जबाग मिसिर जी मिसराइन को दिखा चुके, तभिए तो उनको लियो मिसर के 'विसर्जन' से कौनो परॉबलम नहीं है। अब उनको इंतजार है तो बस इस बात का कि यह 'कुल दीपक' जल्दी से जल्दी 'टांग उठाना' शुरू कर दे, तो ऊ गंगा नहा आएं!

टिप्पणियाँ

mamta ने कहा…
भली कही ।
ghughutibasuti ने कहा…
अच्छा लिखा है ।
घुघूती बासूती
Udan Tashtari ने कहा…
लियो मिश्रा जी के उज्जवल भविष्य के लिये हार्दिक शुभकामनायें.

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