बदनाम का हुए, नाम हो गया!

वोल्फोवित्ज जी को आप जानते हैं कि नहीं? हां, हां... वही विश्व बैंक के अध्यक्ष महोदय, जिनकी कुर्सी महज इसलिए छीन ली गई, काहे कि वे प्रेम-पुजारी बन गए हैं। पता नहीं आप इस बारे में का सोचते हैं, लेकिन हमरे खयाल से तो ई बहुत बड़ा अन्याय है उस बेचारे के साथ। बताइए, जिस दुनिया में प्रेम को पूजा माना जाता हो औरो इश्क-मोहब्बत के लिए 'शहीद' हो गए महात्मा वैलंटाइन को देवता जैसन पूजा जाता हो, वहां भला किसी आदमी को अपनी प्रेमिका को प्रमोट करने का कहीं ऐसन खामियाजा भुगतना पड़े?

वैसे, वोल्फोवित्ज महोदय की भी गलती है-- उनको चोंच लड़ाने का सार्वजनिक प्रदर्शन करने की का जरूरत थी? अरे भाई, इस बुढ़ापे में घी पीना ही था, तो चुपचाप कंबल ओढ़कर पीते। न किसी को आपकी गुटरगूं का पता चलता औरो न आप परेशान होते। अब बेसी काबिल बनिएगा, तो ऐसने परिणाम भुगतना होगा! सर जी, विदवान औरो बड़का एडमिनिस्ट्रेटरे होने से सब कुछ नहीं हो जाता, बहुत कुछ औरो सीखना पड़ता है। केतना बढ़िया होता, अगर आप हमरे यहां के नेतवन सब से कुछ सीख लिए होते, जो दूसरे की मेहरारू को भी अपनी बताकर सरकारी पैसा पर दुनिया भर में सैर कराते रहते हैं। एतने नहीं, यहां तो 'सारी दुनिया एक तरफ, मेहरारू का भाई एक तरफ' की तर्ज पर नेता सब अपने 'साधु' साले को भी राजा बनवा देते हैं।

फिर हमरे नेता लोग से आप एक ठो पाठ औरो सीख सकते थे--सरकारी खजाने को शेर की तरह सार्वजनिक रूप से सीधे नहीं चबाइए, चूहे की तरह धीरे-धीरे कुतरते जाइए! ऐसन में कब आपने खजाना खाली कर दिया, किसी को पते नहीं चलेगा औरो पता चलबो करेगा, तो मामला एतना पुराना हो जाएगा कि सबूत जुटाने में ही पुलिस को नानी याद आ जाएगी! अपनी महबूबा की सैलरी में बजाय एक बार इतना ज्यादा इन्क्रीमेंट करने के, आप अगर उसकी सैलरी धीरे-धीरे बढ़ाते, तो कोयो आपको पकड़ नहीं सकता था।

का कहे आपके पास एतना समय नहीं था? हां, ई बात तो आप सहिए कह रहे हैं, चूहा बनने का आपके पास टाइमे कहां था? आपकी हड़बड़ी हम समझ सकता हूं। अब जो व्यक्ति 63 साल का हो, ऊ अगर प्रेमिका को खुश करने में दो-तीन साल औरो लगा देगा, तो फल कहिया चखेगा? हम आपकी इस बात को मानता हूं कि जीवन की सांध्य वेला में कोयो आशिक लोक-लाज की परवाह करके अपना टाइम खोटी नहीं कर सकता, लेकिन आप ई भी तो देखिए कि बूढ़ा होकर भी आप बड़का तीसमार खां बन रहे थे!

वैसे, गोली मारिए ऐसन विश्व बैंक की अध्यक्षता को, इसमें रखले का है? अमेरिका के फेर में गरीब देश की आप ऐसे भी नि:स्वार्थ मदद नहीं कर पा रहे थे, लेकिन प्यार में बदनाम होकर अब आप बहुतों दिल के 'गरीब' की मदद कर पाएंगे। आपको पैसे की कमी है नहीं, महबूबा की सैलरी भी आपने बढ़ा ही दी, अब तो बस आशिकों के लिए एक ठो एनजीओ खोल लीजिए! चकाचक दुकान चलेगी। पटना के परोफेसर मटुकनाथ चौधरी को ही देख लीजिए--अपनी शिष्या के प्यार में बदनाम का हुए, पूरी दुनिया में नाम हो गया! लोकलाज गया छप्पर पर, अब तो ऊ चैनल-चैनल डोलते फिरते हैं औरो 'हार्ट स्पेशिलिस्ट' हो गए हैं! पैसा तो बनिए रहा है, नामो हो रहा है।

तो हमरी मानिए, भारत आ जाइए। यहां दिल की बीमारी अभी 'अर्ली स्टेज' में है औरो खबरिया चैनलों की जवानी उछाल पर। एको ठो चैनल में अगर एक्सपर्ट की नौकरी मिल गई, तो सिद्धू के जैसन आपकी भी लाइफ सेटल हो जाएगी, दिलों पर 'मरहम' लगाने का पुण्य अलग से मिलेगा!

टिप्पणियाँ

बहुत बढिया लेख है। बधाई। अच्छा व्यंग्य किआ है।
विशाल सिंह ने कहा…
मज़ेदार व्यंग है।
Unknown ने कहा…
बढ़िया व्यंग्य बिहारी बाबू........
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत सही व्यंग्य दिया है. अब देखो, सलाह मान कर भारत आ ही न जायें!!
बेनामी ने कहा…
बहुतै बढ़िया लिखे। तनि जल्दी जल्दी लिखा करिये!
Rajesh Kumar ने कहा…
एक बिहारी का दूसरे बिहारी बाबू को पड़ाम। गंगा को बहने दीजिए भाई, मतलब, जल्दी जल्दी में लिखा करिए।अच्छा लिख रहें हैं सिपाही जी।
राजेश कुमार

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