पति-पत्नी की मोटी लड़ाई

हम मिसिर जी के यहां पहुंचे, तो ऊ अपनी मेहरारू के साथ एक ठो इंटरनैशनल मुद्दे पर थेथड़ोलॉजी में बिजी थे। मुद्दा वही 'महिला बनाम पुरुष' टाइप सदियों पुरानी बहस और थेथड़ोलॉजी इसलिए काहे कि ऐसन बहस का न सिर होता है, न पूंछ। खैर, तो जल्दिये ऊ लोग इस बात का पोस्टमार्टम करने लगे कि आखिर दिल्ली में पतियों की तुलना में पत्नियां ज्यादा मोटी काहे होती हैं?

मिसिर जी का कहना था कि चूंकि महिलाएं टेनशन देने में विश्वास करती हैं, लेने में नहीं, इसलिए वे ज्यादा तंदुरुस्त होती हैं औरो बेचारा पति नामक जीव चूंकि पत्नी का सबसे करीबी 'दुश्मन' होता है, इसलिए पत्नियां सबसे बेसी टेनशन इसी जीव को देती हैं। यही वजह है कि टेंशन ले-ले कर बेचारे पति सब दिन 'सिंकिया पहलवान' ही बनल रहते हैं औरो टेंशन देकर मिलने वाले आनंद से प्रफुल्लित पत्नियां 'भूगोल सुंदरी' बन जाती हैं।

मिसिर जी की बात सुनकर उनकी मेहरारू तैश में आ गईं। बोलने लगीं, 'ई तो आपका फालतू का तर्क है। सच बात तो ई है कि घर-गिरहस्थी में फंसाकर पुरुषों ने महिलाओं को बरबाद कर दिया है। महिलाएं इसलिए मोटी नहीं होती हैं कि ऊ पतियों को टेनशन देकर अपना खून बढ़ाती हैं, बल्कि मोटी इसलिए होती हैं, काहे कि चूल्हे-चौके में फंसकर उनके पास एतना टाइमे नहीं होता कि ऊ अपने पर ध्यान दें। अगर हम पतली होने के लिए सवेरे हवाखोरी करने चले जाएं, तो आप सोचिए कि बिना चाय के आपकी सुबह केतना खराब होगी? टेंशन तो आप लोग देते हैं महिलाओं को, तभियो पता नहीं मोटे काहे नहीं होते हैं!'

हमने सोचा मामला अब रफादफा हो जाएगा, लेकिन मिसिर जी के तरकश में तीर की कमी नहीं थी। उन्होंने दूसरा तीर चलाया, 'देखिए, घर की मालकिन तो यही हैं। ऐसन में ऑफिस जाने के बाद हम ई देखने थोड़े आता हूं कि हमरे परोक्ष में दिन भर इन्होंने का खाया-पीया। का पता, हमको दही-चूड़ा खिलाकर ऑफिस विदा करने के बाद दूध की सब ठो मलाई यही खा लेती होंगी! आखिर मकान देखने से ही न पता चल जाता है कि उसमें किस क्वालिटी का बालू- सीमेंट लगा है। आप ही बताइए, हमरे अंजर-पंजर को देखकर कोयो कह सकता है कि वर्षों से हमने पौष्टिक खाना खाया हो? औरो इनको देखिए... सब यही कहता है कि खाते-पीते घर की महिला है! जब ई खाते-पीते घर की महिला है, तो इसी घर में रहकर हम चिड़ीमार काहे बना हुआ हूं?'

उनको शांत करने के लिए हमने भी तीर चलाया, 'मिसिर जी, लेकिन ई केवल दिल्ली की कहानी होगी, काहे कि इंटरनैशनल लेवल पर हुए एक ठो सर्वे का तो कहना है कि महिलाओं से बेसी पुरुष मोटापे के शिकार होते हैं...।'

मिसिर जी ने हमको रोका, 'बेसी नारीवादी मत बनिए। आप ऐसे ही छोटे शरीर के मालिक हैं, बढ़िएगा नहीं तो कभियो बुढ़ैबो नहीं करिएगा। ऐसे में अगर बीवी मोटी हो गईं, तो आते-जाते मोहल्ले में सब कहेंगे-- देखो मां-बेटा जा रहे हैं...।'

अब हम समझ गए थे मिसिर जी का दर्द कहां था। बीवी मोटी हुई, उसका गम कम था, असली टिस तो ई थी कि लोग मिसराइन के साथ उनकी जोड़ी को भी मां-बेटे की जोड़ी कहते थे!

टिप्पणियाँ

बोधिसत्व ने कहा…
क्या कहने भाई....मिसिर और मिसिराइन की कथा भली लगी....आनन्द पाया
और आपको अपने ब्ल़ाग विनय पत्रिका से जोड़ भी लिया है।
बेनामी ने कहा…
बहुत खूब कही आपने, ई तो बिल्कुल जीवंत घरेलू दास्तां है, घरे-घरे होता रहता है...मगर प्रस्तुति बेजोड थी... बहुत-बहुत बधाई...

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