काश! हम सठियाये होते
पहले हम बुढ़ापे से डरते थे, लेकिन अब बूढे़ होने को बेकरार हूं। दिल करता है, कल के बजाए आज बूढ़ा हो जाऊं, तो एक अदद ढंग की हसीना हमको भी मिल जाए।
नहीं, हम बेवकूफ नहीं हूं। बूढ़ा हम इसलिए होना चाहता हूं, काहे कि बुढ़ापा अब बुढ़ापा रह नहीं गया है। जीवन के चौथेपन में अब एतना मौज आने लगी है कि वानप्रस्थ की बात अब किसी के दिमागे में नहीं घुसती। विश्वास न हो, तो दुनिया देख लीजिए। लोग जेतना बूढे़ होते जा रहे हैं, जवानी उनमें ओतने हिलोरें मारती जा रही है।
' साठा पर पाठा' बहुत पहिले से हम सुनते आया हूं, लेकिन ई कहावत कभियो ओतना सच होते दिखा नहीं, जेतना अब दिख रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति सर्कोजी से लेकर रूस के राष्ट्रपति पुतिन औरो पके बालों वाले सलमान रुश्दी तक, साठवां वसंत देखने जा रहे तमाम लोगों को ऐसन ऐसन हसीना मिल रही है कि जवान लोग के जीभ में पानी आ रहा है। अब हमरी समझ में ई नहीं आ रहा कि कमियां जवान लोगों में हैं या फिर दुनिया भर की लड़कियों की च्वाइस बदल गई है?
लोग कहते हैं कि बात दोनों हुई हैं। जवान लोग पैसा बनाने के चक्कर में ऐसन बिजी हैं कि उनके दिल में रोमांस का सब ठो कुएं सूख गया है, तो पैसा कमाते-कमाते बूढ़े हो चुके लोग जब ठंडा होने लगे हैं, तो उनमें रोमांस का घड़ा फिर से छलकने लगा है। ऐसन में आप ही बताइए, लड़कियों के पास बूढ़ों के बाल काले करवाने के अलावा औरो कौनो चारा बचता है का?
वैसे, लड़कियां भी कम उदार नहीं हुई हैं। अभिए कुछ दिन पहले करीना को देखकर हमको महसूस हुआ कि लड़कियों की सोच में केतना का फरक आ गया है। सैफ के दो-तीन बच्चों के साथ ऊ ऐसन मगन थीं, जैसे ऊ अपने ही बच्चे हों। कुछ दशक पहले तक सौतेली मां का मतलब यमराज होता था, लेकिन अब दूसरे का बच्चा भी अगर पति के तरफ से गिफ्ट में मिल मिल जाए, तो लड़कियां उनसे मां कहलवाने में गुरेज नहीं करतीं। अब चाहे ऊ बच्चा अपनी ही उमर का काहे नहीं हो।
हालांकि चाहे कुछो कहिए बुढ़ापे में दम तो होबे करता है। औरो ई दम ऐसन नहीं है कि उनमें अभिए आया है। ई हमेशा से रहा है। अंतर बस ई है कि बूढ़ा रोमांस पहले लोक लाज के भय से घूंघट नहीं निकालता था, लेकिन अब जमाने के हिसाब से ऊ बेशरम हो गया है!
बुढ़ापा हमेशा से खतरनाक रहा है, इसका एक ठो बानगी देखिए। बीस साल पहले हमरी एक परिचिता की टीचर अपनी शिष्याओं को नसीहत कुछ ऐसे देती थीं- अगर तुम बस से कहीं जा रही हो औरो बस में तुम्हें कौनो सीट किसी पुरुष के साथ शेयर करनी पड़े, तो बूढे़ आदमी के साथ बैठने के बजाय जवान पुरुष के साथ बैठना, ऊ कम खतरनाक होते हैं! तो ई था बीस साल पहले बूढ़ों का आतंक! अब तो तभियो मामला सेफ है, काहे कि ई आतंक परेम में बदल गया है! सही पूछिए, तो इसीलिए हम सठियाना चाहता हूं!
नहीं, हम बेवकूफ नहीं हूं। बूढ़ा हम इसलिए होना चाहता हूं, काहे कि बुढ़ापा अब बुढ़ापा रह नहीं गया है। जीवन के चौथेपन में अब एतना मौज आने लगी है कि वानप्रस्थ की बात अब किसी के दिमागे में नहीं घुसती। विश्वास न हो, तो दुनिया देख लीजिए। लोग जेतना बूढे़ होते जा रहे हैं, जवानी उनमें ओतने हिलोरें मारती जा रही है।
' साठा पर पाठा' बहुत पहिले से हम सुनते आया हूं, लेकिन ई कहावत कभियो ओतना सच होते दिखा नहीं, जेतना अब दिख रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति सर्कोजी से लेकर रूस के राष्ट्रपति पुतिन औरो पके बालों वाले सलमान रुश्दी तक, साठवां वसंत देखने जा रहे तमाम लोगों को ऐसन ऐसन हसीना मिल रही है कि जवान लोग के जीभ में पानी आ रहा है। अब हमरी समझ में ई नहीं आ रहा कि कमियां जवान लोगों में हैं या फिर दुनिया भर की लड़कियों की च्वाइस बदल गई है?
लोग कहते हैं कि बात दोनों हुई हैं। जवान लोग पैसा बनाने के चक्कर में ऐसन बिजी हैं कि उनके दिल में रोमांस का सब ठो कुएं सूख गया है, तो पैसा कमाते-कमाते बूढ़े हो चुके लोग जब ठंडा होने लगे हैं, तो उनमें रोमांस का घड़ा फिर से छलकने लगा है। ऐसन में आप ही बताइए, लड़कियों के पास बूढ़ों के बाल काले करवाने के अलावा औरो कौनो चारा बचता है का?
वैसे, लड़कियां भी कम उदार नहीं हुई हैं। अभिए कुछ दिन पहले करीना को देखकर हमको महसूस हुआ कि लड़कियों की सोच में केतना का फरक आ गया है। सैफ के दो-तीन बच्चों के साथ ऊ ऐसन मगन थीं, जैसे ऊ अपने ही बच्चे हों। कुछ दशक पहले तक सौतेली मां का मतलब यमराज होता था, लेकिन अब दूसरे का बच्चा भी अगर पति के तरफ से गिफ्ट में मिल मिल जाए, तो लड़कियां उनसे मां कहलवाने में गुरेज नहीं करतीं। अब चाहे ऊ बच्चा अपनी ही उमर का काहे नहीं हो।
हालांकि चाहे कुछो कहिए बुढ़ापे में दम तो होबे करता है। औरो ई दम ऐसन नहीं है कि उनमें अभिए आया है। ई हमेशा से रहा है। अंतर बस ई है कि बूढ़ा रोमांस पहले लोक लाज के भय से घूंघट नहीं निकालता था, लेकिन अब जमाने के हिसाब से ऊ बेशरम हो गया है!
बुढ़ापा हमेशा से खतरनाक रहा है, इसका एक ठो बानगी देखिए। बीस साल पहले हमरी एक परिचिता की टीचर अपनी शिष्याओं को नसीहत कुछ ऐसे देती थीं- अगर तुम बस से कहीं जा रही हो औरो बस में तुम्हें कौनो सीट किसी पुरुष के साथ शेयर करनी पड़े, तो बूढे़ आदमी के साथ बैठने के बजाय जवान पुरुष के साथ बैठना, ऊ कम खतरनाक होते हैं! तो ई था बीस साल पहले बूढ़ों का आतंक! अब तो तभियो मामला सेफ है, काहे कि ई आतंक परेम में बदल गया है! सही पूछिए, तो इसीलिए हम सठियाना चाहता हूं!
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