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बेगानी शादी में...

दुपहरिया तक गली में पूरा रोड घेरकर टेंट-शामियाना टंग गया था। आखिर माजरा का है, खिड़की से हमने नीचे देखा। ऐन नाक के नीचे घर के गेट पर टेंट-शामियाना देख हमरी बांछें खिल गईं-- आज तो दावत उड़ाने का मौका मिलबे करेगा। आंखों ने देखा, उन्हें बड़ी तृप्ति मिली, लेकिन जीभ को मजा नहीं आया- - का पता दिल्ली है, पड़ोसी भोज में बुलैबे न करे। दिमाग ने खबर पेट को भी पहुंचाई। वहां जठराग्नि ऐसी जली कि कई हजार चूहे एक साथ बगावत पर उतर आए! अभी मुंह में पानी भरना शुरुए हुआ था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। एक थका-हारा इंसान गेट पर खड़ा था, परिचय से पता चला पड़ोसी महाराज हैं। निमंत्रण देने आए होंगे, ई सोचकर हमने कुछ बेसिए आवेश में उनको बिठाया। ऊ मुद्दे पर आए, 'हमरे यहां शादी है, पानी चाहिए। हमरा घर दूर है, आपके नल से कनेक्शन ले लूं।' मन ने कहा, 'निमंत्रण तो दिए नहीं, मुंह उठाए पानी मांगने आ गए। पार्टी नहीं, तो पानी कैसन? मुफ्त में दिन भर मोटर चलाकर अपना पानी औरो बिजली बिल हम काहे बढ़ाएं?' फिर खयाल आया कि पानी लेंगे, तो निमंत्रण देबै करेंगे, लेकिन मन ने कहा, 'ऐसन इरादा होता तो कार्ड के संग आते।

बार बाला से किसकी मौज

दिल्ली के पियक्कड़ सब आजकल बहुते खुश हैं। अब बार में सुंदरी के हाथ से सुरा जो मिलेगी, मतलब नशा का डबल डोज न हो गया! हमको तो लगता है कि अब दिल्ली का कायाकल्प हो जाएगा। सब कहता है कि इससे ला एंड आर्डर की स्थिति बिगड़ेगी, लेकिन हमको लगता है सुधर जाएगी। एक बार 'बार बाला' सब को काम पर पहुंचने दीजिए, फेर देखिएगा रोड पर कैसे मवालियों का अकाल हो जाता है। सब बांका रात भर मयखाने में रहेगा औरो दिन भर हैंगओवर में। आप छेड़ने की बात करते हैं! रोड पर लड़कियां तरस जाएंगी, कोई उनको देखने वाला नहीं मिलेगा। और बार में...? बाला सब उनको एतना टंच पिला देंगी कि उनसे गिलास नहीं संभलेगा, आप बंदूक-पेस्तौल चलाने की बात करते हैं। औरो ऐसने चलता रहा, तो एक दिन दिल्ली के सब बदमाश डैमेज लिवर औरो किडनी के साथ एम्स में भरती होकर इलाज के अभाव में मर जाएगा। पूछ लीजिए अपने रवि बाबू से, इसका इलाज केतना महंगा होता है। न हींग लगा न फिटकरी औरो रंग देखिए क्राइम कंट्रोल केतना चोखा हो गया... आप सरकार को बेकूफ समझते हैं। हां, कुछ भलो लोग मरेगा, लेकिन का कीजिएगा, कुछ पाने के लिए कुछ तो गंवाना ही पड़ता है। आप बूझ नहीं रहे ह

एक हमहीं चिरकुट हैं भैय्या

आजकल दुनिया तानाशाहों से परेशान है। बुश से लेकर मुश तक औरो रामदास से लेकर बुद्धदेव दास तक, सब कहर ढा रहे हैं, लेकिन कोयो उनका कुछो बिगाड़ नहीं पा रहा। मुशर्रफ ने अंतत: अपनी वरदी उतारिये दिया, लेकिन दुरभाग्य देखिए कि दुनिया उनका सिक्स पैक एब्स अभियो नहीं देख पाई है। हमरी दिली तमन्ना थी कि मुश का ऊ सिक्स पैक एब्स देखूं, जिनके बूते उसने कारिगल का सपना देखा था, लेकिन अफसोस कि देख नहीं पाया। अब का है कि तानाशाह का मतलब तो ई न होता है कि मौका मिलते ही उसको सिंहासन पर से नीचे उतारिए औरो ऐसन ठोकिए कि फिर कोयो दूसरा तानाशाह पैदा न हो। लेकिन अफसोस कि मुशर्रफ के साथ ऐसन नहीं हुआ। उसने वरदी के नीचे में राष्ट्रपति का डरेस पहन लिया था। वरदी उतर गई, लेकिन शेरवानी अभियो देह पर कायम है। मुशर्रफ ही नहीं, दुनिया में जेतना खूंखार तानाशाह होता है, सब मुशर्रफे जैसन डरपोक होता है औरो दस ठो कपड़ा पहनकर रहता है, ताकि एक-आध ठो उतरियो जाए, तो इज्जत कायम रहे। एक ठो बेचारा सद्दामे ऐसन अभागल थे कि नेस्तनाबूद हो गए, नहीं तो तानाशाह सब तो ऐसन होते हैं कि अपनी इज्जत बचाने के लिए लाखों की पैंट उतार देते हैं औरो साथ में

एकता बड़े काम की चीज

अनेकता में एकता भारत की विशेषता है, बचपन में गुरुजी ने इस पर बहुते लेख लिखवाया था। हालांकि अकल आने पर ऐसन लगा जैसे गुरुजी को देशभक्ति से मतलब कम था, ऊ अपने सरकारी होने का ऋण बेसी उतार रहे थे। हम अभियो तक ऐसने सोच रखते थे, लेकिन भगवान भला करे बंगाल सरकार का, जिसने हमरी सोच बदल कर रख दी। अब हमको फिर से अनेकता में एकता दिखने लगी है। दरअसल, 'सेक्युलर' बंगाल सरकार ने जब से तसलीमा नसरीन को 'कम्यूनल' राजस्थान सरकार के संरक्षण में भेजा है, हम सोच में पड़ गया हूं। हमरे समझ में ई नहीं आ रहा रहा कि कॉमरेडों ने संघियों पर एतना विश्वास करना कब से शुरू कर दिया कि उसके भरोसे तसलीमा नसरीन को छोड़ दिया! ई तो भाजपाई सरकार को सेक्युलर होने का परमाण पत्र देने जैसी बात है, यानी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसन बात! मानवाधिकार औरो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर जिस महिला को आप सालों से सुरक्षा-संरक्षा देते आ रहे हैं, एके झटका में आप उससे पल्ला कैसे झाड़ सकते हैं? हमने यही बात अपने कामरेड मित्र से पूछी। ऊ बोलने लगे, 'मत जाइए, सेक्युलर औरो कम्युनल जैसन बात पर। ई सब तुच्छ बात है। असल बात तो

गर नाम नहीं, नंबरों से मिले पहचान

नाम बिना किसी का काम नहीं चलता। यही वजह है कि लोग अपने बच्चों से लेकर डॉगी और यहां तक कि गाय-भैंस को भी एक नाम देते हैं। ऐसे में क्या यह संभव है कि अपने देश में लोगों को नाम के बजाय नंबरों से पहचान जाए? दरअसल, एक मोबाइल सर्विस प्रवाइडर कंपनी के एक विज्ञापन में दिखाया जाता है कि दो जातियों के झगड़े के बाद सरपंच फैसला करता है कि नाम की वजह से समाज में वैमनस्यता बढ़ती है, इसलिए गांव में अब सब अपने-अपने मोबाइल नंबरों से जाना जाएगा। यानी जिसका जो मोबाइल नंबर होगा, उसका नाम भी वही होगा। हालांकि विज्ञापन में इस आइडिया को हिट करार दिया जाता है, लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में भी यह आइडिया क्या उतना ही हिट हो सकता है? अधिकतर लोगों की राय में यह नामुमकिन है। दरअसल, तमाम लोगों का मानना है कि भारत में नाम समस्या पैदा नहीं करता, समस्या की जड़ टाइटल है, जो यह शो करता है कि कोई किस कास्ट का है। जाति के खांचे में बंटे हिंदू और मुस्लिम दोनों में टाइटल ही सब कुछ है। समाजशास्त्री गीता दुबे कहती हैं, 'दरअसल, देश में सदियों से चली आ रही जाति व्यवस्था पर चोट कर उसे ढहा देना इतना आसान भी नहीं है। दलित, मुस्लिम

पावर से लैस बनाम पावरलेस

ऐसे तो दुनिया में हर चीज की अपनी-अपनी महिमा है, लेकिन जेतना महिमा पावर में है, ओतना किसी में नहीं। अपने देश के नेताओं और विद्वानों ने अपने वोट बैंक औरो दिमाग के हिसाब से चाहे समाज को जेतना टुकड़ा में बांट रखा हो, लेकिन हमरे खयाल से समाज में दूए तरह के लोग हैं- एक ऊ जो पावर से लैस हैं औरो दूसरा ऊ जो पावरलेस हैं। पावर से लैस लोग जब चाहे, तब अपनी जिंदगी में उजाला बिखेर लेते हैं, लेकिन पावरलेस लोगों के लिए दिन भी राते जैसन होता है-- एकदम काला काला। पावर से लैस लोग जब चाहे, तब खबरों में छा सकते हैं-- चोरी करते पकड़ा गए तभियो, चोर को पकड़ लाए तभियो, लेकिन पावरलेस लोग चोर बनने पर ही खबरों में आते हैं, चोर पकड़ने पर कभियो नहीं। अगर पावरलेस लोगों ने चोर को पकड़कर रगड़ दिया, तो हल्ला मच जाता है--कानून को हाथ में ले लिया... कानून का शासन खतम कर दिया। यानी अगर आप पावरलेस हैं, तो लुट जाना आपका कर्त्तव्य है। पावरलेस आदमियों को चोरों से खुद को बचाने का कौनो राइट नहीं होता। तभियो नहीं, जबकि मरल पुलिस व्यवस्था का अघोषित नारा है 'अपने सामान की रक्षा स्वयं करे'। मतलब साफ है, जो पावर से लैस हैं, ऊ

पति-पत्नी की मोटी लड़ाई

हम मिसिर जी के यहां पहुंचे, तो ऊ अपनी मेहरारू के साथ एक ठो इंटरनैशनल मुद्दे पर थेथड़ोलॉजी में बिजी थे। मुद्दा वही 'महिला बनाम पुरुष' टाइप सदियों पुरानी बहस और थेथड़ोलॉजी इसलिए काहे कि ऐसन बहस का न सिर होता है, न पूंछ। खैर, तो जल्दिये ऊ लोग इस बात का पोस्टमार्टम करने लगे कि आखिर दिल्ली में पतियों की तुलना में पत्नियां ज्यादा मोटी काहे होती हैं? मिसिर जी का कहना था कि चूंकि महिलाएं टेनशन देने में विश्वास करती हैं, लेने में नहीं, इसलिए वे ज्यादा तंदुरुस्त होती हैं औरो बेचारा पति नामक जीव चूंकि पत्नी का सबसे करीबी 'दुश्मन' होता है, इसलिए पत्नियां सबसे बेसी टेनशन इसी जीव को देती हैं। यही वजह है कि टेंशन ले-ले कर बेचारे पति सब दिन 'सिंकिया पहलवान' ही बनल रहते हैं औरो टेंशन देकर मिलने वाले आनंद से प्रफुल्लित पत्नियां 'भूगोल सुंदरी' बन जाती हैं। मिसिर जी की बात सुनकर उनकी मेहरारू तैश में आ गईं। बोलने लगीं, 'ई तो आपका फालतू का तर्क है। सच बात तो ई है कि घर-गिरहस्थी में फंसाकर पुरुषों ने महिलाओं को बरबाद कर दिया है। महिलाएं इसलिए मोटी नहीं होती हैं कि ऊ पतियों

रावण का इंटरभ्यू

दिल्ली में आजकल रावणों की संख्या अचानक से बढ़ गई है। जी हां, चोर-उचक्के , गिरहकट, लंपट औरो बलात्कारी जैसन कलियुगी जिंदा रावण तो पहिले से यहां बहुत थे, आजकल त्रेतायुगीन रावण के पुतले की भी भरमार है। तो हुआ ई कि हमरी संपादक जी ने कहा कि दशहरा के मौके पर रावण का इंटरभ्यू लेकर आओ। खैर, हमको बेसी खोजना नहीं पड़ा, बगल वाले पार्क में ही ऊ मूंछ पर हाथ फेरते दिख गए। हमने इंटरभ्यू की बात कही, तो ऊ नेता जी जैसन खुश हो गए औरो दे डाला एक धांसू इंटरभ्यू। लीजिए, आप भी पढि़ए : 'दिल्ली में आपकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है...।' 'बात ई है कि लोगों में फरस्टेशन बढ़ गया है। दिल्ली में चोर-उचक्कों औरो हत्यारों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन लोग उनका कुछो बिगाड़ नहीं पा रहे हैं। ऐसे में हमरा पुतला फूंककर ऊ अपना फरस्टेशन निकालते हैं। इससे उनको सुकून मिलता है। अब जैसे-जैसे उनका फरस्टेशन बढ़ रहा है, हमरे पुतलों की संख्या भी ऊ बढ़ाते जा रहे हैं। फिर हुआ इहो है कि जेतना चोर-उचक्का सब था, सब नेता बन गया है। हमरा पुतला फूंककर ऊ सब जनता को समझाना चाहते हैं कि ऊ पापी तो हैं, लेकिन रावण जितना नहीं। खैर,

बाबा बनने का गुर

उस दिन रमेश जी आए। बहुते हड़बड़ी में थे। बोलने लगे, 'किसी से हमको दस करोड़ टका कर्जा दिला दीजिए, दो साल में हम उसको बीस करोड़ लौटा दूंगा...।' हमने कहा, 'अरे, असली बतवा तो बताइए? एतना टका शेयर बाजार में लगाइएगा का? हमरी मानिए, अभी ऐसन रिस्क मत लीजिए, शेयर बजार जल्दिये डूबने वाला है। वित्त मंतरी तक कह रहे हैं कि अभी इन्भेस्टमेंट में खतरा है।' ऊ बोले, 'आप बेकारे नरभसिया रहे हैं। भैय्या, शेयर बाजार में पैसा लगाना के चाहता है? हम तो बाबा बनना चाहता हूं, पैसवा उसी के लिए चाहिए।' हमने कहा, 'का बात कर रहे हैं! साधु-संत बनना कौनो दुकानदारी थोड़े है कि उसे शुरू करने के लिए पूंजी चाहिए। लोग तो माया-मोह से पिंड छुड़ाने के लिए साधु-संत बनते हैं औरो आप हैं कि साधु बनने के लिए पूंजी...!' रमेश जी उखड़ गए, उनको लगा जैसे हम उनकी बात बूझने की कोशिशे नहीं कर रहा हूं। ऊ चूड़ा-सत्तू लेकर बैठ गए कि जब तक हम समझूंगा नहीं, ऊ उठेंगे नहीं। बोले, 'देखिए, मुफ्त में आजकल बाबा बनना बहुते मुश्किल है। बढ़िया बाबा बनने के लिए दस करोड़ तो चाहिए ही। दो-तीन करोड़ हमको इसलिए चाहिए, ताकि

बस ईमानदारों को न दिखे घूस

भरष्टाचार करना जेतना आसान है, उसको छिपाना ओतने मुश्किल। कमबखत कहीं न कहीं से दिखिए जाता है। घूस कमाते वक्त भले ही आप दुनिया को पता नहीं चलने दीजिए, लेकिन जेब में पहुंचते ही ई दुनिया को दिखने लगता है। अब का कीजिएगा, पैसे का गरमी होबे एतना तेज करता है कि बलबलाकर जेब से बाहर आ जाता है औरो पूरी दुनिया जान जाती है कि बंदा घूस कमाकर धन्ना सेठ बन गया है। वैसे, किसने अपना जेब केतना गरम किया, इसका पता तभिये चलता है, जब कौनो व्यवस्था ताश के पत्ता जैसन भरभरा के गिर जाए। मसलन, जब एम्स के डाक्टरों को डेंगू हो जाए, सरकारी डाक्टर अपना इलाज पराइवेट नर्सिन्ग होम में कराए, परोफेसर का बेटा मैट्रिक फेल हो जाए, नई सड़क में गड्ढा हो जाए... तभिये पता चलता है कि घूस किस-किस ने खाया। दिक्कत ई है कि घूस खाने वाला व्यवस्था पर ऐसन रंग-टीप करता है कि भरष्टाचार का पोल जल्दी खुलबे नहीं करता। औरो जब तक पोल खुलता है, बंदा या तो आलीशान बाथरूम बना चुका होता है या फिर सारा पैसा खाकर बाथरूम गंदा कर चुका होता है। बाथरूम से याद आया, तनिये दिन पहले जो यूपी के पूर्व मुख्य सचिव गिरफ्तार हुए हैं, उनके बाथरूम में सोने का नलका ल

कहां है गांधीगीरी?

' लगे रहो मुन्ना भाई' को रिलीज हुए साल भर से ज्यादा हो गया। यानी गांधीगीरी ने इस दुनिया में एक साल पूरा कर लिया। जब यह फिल्म रिलीज हुई थी, तो माना जा रहा था कि गांधी एक बार फिर से प्रासंगिक हो उठेंगे, लेकिन क्या ऐसा हकीकत में हुआ? अगर हम इस एक साल का आकलन करने बैठें, तो निष्कर्ष है, शायद नहीं। सच तो यह है कि यह फिल्म गांधी के सिद्धांतों के लिए लिटमस टेस्ट साबित हुई। यानी, जो यह जानना चाहते थे कि गांधीजी के सिद्धांत आज कितने प्रासंगिक हैं, उन्हें इसका आधा-अधूरा उत्तर तो मिल ही गया है। दरअसल, सवाल यह है भी नहीं कि गांधीजी आज के समय में कितने प्रासंगिक हैं। असल सवाल यह है कि क्या आज की दुनिया में गांधी के सिद्धांतों पर चला जा सकता है? अगर इस एक साल का अनुभव देखें, तो इसका उत्तर है, नहीं। 'लगे रहो मुन्ना भाई' की रिलीज के बाद सबसे पहले यूपी के एक व्यक्ति ने 'गांधीगीरी' को अपनाया। उसने सबके सामने अपने कपड़े उतारकर उस सरकारी मुलाजिम को थमा दिए, जो उससे घूस मांग रहा था। मीडिया विस्फोट के इस युग में बात मिनटों में दुनिया भर में फैल गई। सबको लगा कि गांधी युग वाकई वापस आ र

किरकेटिया कप की अज़ब कहानी

देश की किरकेटिया टीम ने 20-20 वाला विश्वकप का जीता, पूरे देश उसके पीछे पगलाए पड़ा है। राज्य सरकारें खिलाड़ियों को ईनाम ऐसे बांट रही है, जैसे खिलाड़ियों ने विश्व का सब देश जीत के उनकी चरणों में रख दिया हो। खैर, जाने दीजिए, ई सब तो आप लोग भी जानते होंगे। यहां तो हम आपको कुछ ऐसन बात बताना चाहता हूं, जो आप जानबे नहीं करते होंगे। जैसे कि आप ई नहीं जानते होंगे कि 20-20 विश्व कप खेलने जाने से पहिले अपने किरकेटिया खिलाडि़यों ने अपने परिवारों को कुछ महीने के लिए शहर छोड़कर जाने के लिए कह दिया था, ताकि अगर ऊ बांग्लादेश की टीम से हारकर विश्व कप से बाहर हो जाए, तो देश में गुस्साई भीड़ उनके मां-बाप का टांग न तोड़ सके। पिछले विश्व कप में हार के बाद रांची के लोगों ने धोनी के घर का दीवारे ढहा दिया था, डर के मारे इस बार उसके भाई ने साधु जैसन दाढ़ी बढ़ा लिया, ताकि कोयो पहचान नहीं पाए। जब भारत विश्व कप जीत गया, बेचारे ने तभिये जाकर बेचारे ने दाढ़ी बनाई। आप इहो नहीं जानते होंगे कि दिल्ली के उस थाने का कमरा अभियो खालिए है, जिसको सहवाग ने साउथ अफरीका जाने से पहिले अपने लिए बुक कराया था। का कहे, थाना बुक! अर

राम सेतु की पंचायत में अम्मा

कुल की नैया डूबती देख आखिरकार अम्मा को मैदान में डैमेज कंटरोल के लिए कूदना ही पड़ा। ऐसे तो ऊ हर समय अपने बिगड़ैल बच्चा सब का कान उमेठते रहती हैं, लेकिन बचवा सब है कि सुधरने का नाम ही नहीं लेते। अम्मा एक झगड़ा निबटाती नहीं कि बचवा सब दूसरे झगड़ा में उनको घसीट लेता है। अभिए तो उन्होंने परमाणु मुद्दे पर किसी तरह सेथ-मेथ कर तलाक को टाला था कि बचवा सब राम का अस्तित्व ही मिट्टी में मिलाने पर तुल गए औरो उनको मैदान में कूदना पड़ा। अम्मा का मानना है कि वामपंथियों को छेड़ना अलग बात है औरो बजरंगियों को छेड़ना अलग, लेकिन बचवा सब है कि समझने को तैयारे नहीं है। खैर, अम्मा पंचों के सामने पेश हुई हैं औरो डैमेज कंटरोल कर रही हैं, आखिर 'पापी' वोट का सवाल है - पंच: आपका कुल राम को नहीं मानता? अम्मा: नहीं हुजूर, ऐसा नहीं है। अब का है माई-बाप कि बचवा सब नादान हैं, अभी राजनीति सीखिए रहे हैं, इसलिए गलती हो गई। अब आप ही देखिए न, अगर इनको देश चलाना आता, तो सरकार हमरे इशारे पर काहे नाचती? परधानमंतरी डमी काहे होता? पंच: तो आप उनको राजनीति सिखाती काहे नहीं हैं? अम्मा: हुजूर, ऐसा है कि अगर वे राजनीति स

चैनल वाले बाबा

मिसिर जी ने टीवी देखकर अपनी मेहरारू को बुलाया। चैनलों पर सरौते वाले बाबा का आशरम दिखाया जा रहा था। चप्पलों का ढेर, घायलों की लाइन, लोगों का हुजूम... मिसिर जी ने मेहरारू को 'कल तक' चैनल दिखाया। वहां का अल्टरा-मॉड एंकर चीख-चीख कर इस कांड के लिए मध्य परदेश सरकार को कोस रहा था। ऊ वहां के एसपी से पूछ रहा था कि बाबा पर आईपीसी का कौन-कौन धारा लग सकता है कि ऊ जेल में सड़ जाए। एंकर की बात सुन मिसिर जी का मन भन्ना गया, 'सबसे पहले तो तुम्ही पर आईपीसी की सब धारा लगा दी जानी चाहिए कि चैनल बंद हो जाए। पांच दिन पहले तुम्ही तो अपने चैनल पर सरौते वाले बाबा का गुणगान कर रहे थे, अब घडियाल जैसे रो क्यों रहे हो?' मिसिर जी का तो मन कर रहा था कि टीवी से खींच कर झुठ्ठे एंकर को पटक दे, लेकिन हकीकत में ऐसा ऊ ऐसा कर नहीं सकते थे, सो मन मसोस कर रह गए। एंकर से फारिग हो मिसिर जी ने मेहरारू की खबर ली, 'देख लीजिए नजारा... पूरी दुनिया के हस्पताल के डाकडर मर गए, जो आप इलाज के लिए इस बाबा से अपनी आंख में सरौता डलवाना चाहती थीं। हम तो पहले ही कह रहे थे न कि ई चैनल वाले लोगों को बरगलाते हैं... बाबाओं

बेदिमाग मुरगा

बस इसी सर्टिफिकेट की जरूरत थी। जो बात अपने देश के नेताओं से हर कोयो कहना चाहता है, लेकिन कहकर भी सुना नहीं पाता है, ऊ बात रोनेन बाबू ने डंके की चोट पर कह दी। औरो आश्चर्य की बात तो ई है कि नेताओं ने न सिर्फ उनका कमेंट सुना, बल्कि समझियो लिया। अब उनकी मोटी खाल में रोनेन की बात घुसी कैसे, बस यही पता लगाने वाली बात है! हालांकि रोनेन ने बेदिमाग नहीं, बेसिर मुरगे की बात की थी, जो हलाल होते ही फुट भर उछलने लगता है। लेकिन भारतीय नेताओं की तरह हमहूं इस बात से सहमत हूं कि रोनेन ने घुमा-फिरकर एक ही बात कहने की कोशिश की थी कि हमरे नेता सब बेदिमाग हैं। वैसे, हमरे खयाल से रोनेन का ई बयान नेताओं के लिए काम्प्लीमेंट है। रोनेन तो यह कहना चाह रहे थे कि ये भारतीय नेताओं की ही कूबत है कि वे बिना दिमागो के देश चला रहे हैं, वरना तो विदेशों में दिमाग वाला भी देश नहीं चला पाता! रोनेन कुछो माने, लेकिन हम तो यही मानते हैं कि अपने यहां दिमाग होना, कौनो मुसीबत से कम नहीं! आपके पास दिमाग है, तो आप एबनारमल हैं। सच तो ई है कि अगर आपके पास दिमाग है, तो आप यहां नेता बनिए नहीं सकते, काहे कि दिमाग होने का मतलब है कि आप

अंगरेज चले गए, नए अंगरेज दे गए

15 अगस्त बीत गया, देश ने आजादी का 60वां हैपी बर्थ डे मना लिया, लेकिन हम अभियो इसी गुणा-भाग में लगा हुआ हूं कि देश वास्तव में केतना आजाद हुआ है! हमरा निष्कर्ष ई है कि अजगर अंगरेज 60 साल पहले देश से चला गया, लेकिन उसकी पूंछ अभियो देश में शान से लहरा रही है। अंगरेजियत औरो अंगरेजी के प्रति हमरी अटूट श्रद्धा 60 साल बादौ गायब नहीं हो रही, तो आज के 'भारतीय अंगरेज' तब के असली अंगरेज से बेसी खूंखार हैं। अंगरेज का लूटा बिरटेन चला जाता था, इसलिए दिखता नहीं था औरो इसीलिए दुख नहीं होता था। लेकिन इन भारतीय अंगरेजों का लूटा भारत में ही रह जाता है, इसलिए सबको दिखता है औरो दिल को दुख पहुंचाता है। ये 'भारतीय अंगरेज' इंडिया में रहते हैं औरो भारत से इनकी दूरी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। अंगरेज दुनिया लूटते रहे औरो भारतीयों को बैट-बॉल थमा गए। पूरा देश अभियो इस खेल की बंधुआ मजदूरी कर रहा है, काहे कि गुलाम पैर किरकेटिया पिच के अलावा औरो किसी खेल में दौड़िए नहीं पाता। गुलामी के दौर में साहब बन जाने के बाद ही भारतीय किरकेट खेलते थे, लेकिन आज लोग किरकेट खेलकर साहब बन जाते हैं। किरकेटिया गुलामी

दाग अच्छे हैं

राष्ट्रपति का चुनाव का खतम हुआ, समझ लीजिए कि हमरे नेताओं के माथा पर से एक ठो बड़का भार उतर गया। जब से कलाम जी राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे, तब से पता नहीं कहां से एतना खतरनाक शब्द सब हवा में तैरने लगा था कि हमरे नेता सब की हालत खराब रहने लगी थी। अब आप ही बताइए न शुचिता, ईमानदारी, पवित्रता, विद्वता ... औरो न जाने केतना कुछ ... एतना भारी भरकम शब्द सब कलाम से जुड़ल था कि राष्ट्रपति भवन में समाइए नहीं पाता था। परिणाम ई हो गया कि देश का बाकी नेता सब इंफीरियरिटी काम्प्लेक्स से ग्रस्त हो गया था औरो मानसिक तौर पर बीमार रहने लगा था। अब आप समझ गए होंगे कि तीसरे मोर्चे के रिकवेस्ट पर जब कलाम जी दूसरे कार्यकाल के लिए तैयार हो गए थे, तो वामपंथी सब उनको गरियाने काहे लगे थे! कलाम को गरियाना वामपंथियों व पवार की बीमार मानसिकता की उपज थी औरो ई बीमार मानसिकता कलाम ने ही इन नेताओं को इंफीरियरिटी काम्प्लेक्स के रूप में दी थी। सीधी बात है, न कलाम जी एतना सुपर आदमी होते, न नेताओं को मिरची लगती। हां, तो हम ई कह रहे थे कि कलाम के जाने से बहुतों का दिमाग हल्का हो गया है। अब का है कि काजल के कोठरी में वही एक ठो बगु

कम कपड़ा, बेसी कल्याण

पिछले दिनों कपड़ा उतारने की दो- तीन घटनाओं ने मंगरू को बेचैन कर दिया है। नहीं, उसकी बेचैनी इस बात को लेकर कतई नहीं है कि सभ्य समाज को कपड़ा नहीं उतरना चाहिए। इस दौर में तो पूरा कपड़ा में ऊ सभ्य समाज की कल्पने नहीं कर सकता! ऊ तो ई जानने के लिए बेचैन है कि आखिर कपड़ा उतारने की नौबते काहे आती है औरो आती है, तो उसका कौनो फैदा होता है कि नहीं? कपड़ा उतारने की पहली घटना के बारे में उसको पता चला कि यह काम उस गरम ... ऊ का कहते हैं... हॉट मॉडल की है, जो चलती टरेन पर छैंया छैंया गाकर रेल के नियम-कानून को ठेंगा दिखा चुकी है। ई जानकर मंगरू बहुते खुश हुआ। आखिर ऊ टरेन के छत पर नाच-गाकर भारतीय गरीबों को रेल की मुफ्त सवारी का रास्ता जो बता चुकी है। मंगरू खुदे बहुते बार ऐसन सवारी कर चुका है। खैर, तो नाम मात्र के कपड़ा में फोटुआ खिंचवाकर उस माडल ने घोषणा की कि ऐसा महान काम उसने यह जागरूकता फैलाने के लिए किया है कि मकाऊ तोते के जान पर आफत आ पड़ी है, इसलिए उसको बचाया जाए। ई जानकर मंगरू एक बार फिर खुश हुआ। उसको पूरा भरोसा है कि मुफ्त टरेन यात्रा का रास्ता दिखाने वाली माडल उसको फिर से रास्ता दिखाएगी औरो उसक

नेतागिरी में कमाऊ कैरियर

जब से हमने यूपी की मुखमंतरी बहन जी के 52 करोड़ रुपये की संपत्ति के बारे में सुना है, हमरा मन नेता बनने के लिए मचलने लगा है। ऊ भी एतना कि उसको संभालना हमरे लिए मुशकिल हो रहा है। बताइए, इससे बढ़िया कैरियर औरो कौन हो सकता है, जिसमें 3 साल में आपकी संपत्ति चार सौ गुना हो जाए! जब बहुजन का नेता बनकर कोयो दस-बीस साल में 52 करोड़ बना सकता है, तो जरा सोचिए हम सर्वजन का नेता बनकर केतना अरब कमा लूंगा? फिर जब सामाजिक औरो आरथिक रूप से कमजोर वर्ग का नेता जनता के चंदा से आधा अरबपति बन सकता है, तो मजबूत वर्ग का नेता तो चंदा के बल पर खरबपति बन जाएगा! बस, इसलिए नेता बनने की हम पलानिंग कर रहा हूं। तब जनता से 'नजराना वसूलने' के लिए हम साल में दो बार जनम दिन मनाऊंगा- एक ठो ओरिजिनल औरो एक ठो सारटीफिकेट वाला। फिर इसी तरह पहले क्वाटर जनमदिन औरो फिर अद्धा, मतलब चंदा लेबे वाला जेतना बहाना हो सकता है, सब आजमाऊंगा। आखिर बलैक माल को हुआइट कराने का इससे बढ़िया बहाना औरो का हो सकता है? का बताएं, हमको तो बहुतों को कोसने का मन कर रहा है, लेकिन किस- किस को कोसूं, ई डिसैड नहीं कर पा रहा हूं। बताइए, एतना बढ़िया क

महिला राष्ट्रपति औरो डीवीडी पिलेयर!

हम गए थे एक ठो डीवीडी पिलेयर खरीदने, लेकिन हमको विष्णु शरमा जैसन एक ठो ऐसन दुकानदार भेंटा गया कि उससे पूरा माडर्न पंचतंत्र पढ़कर आ रहा हूं। हमने उससे कहा कि भैया, एक ठो ढंग का डीवीडी पिलेयर चाहिए। उसने बत्तीस ठो गुड़ गोबर कमपनी का डीवीडी पिलेयर दिखा दिया औरो उसकी खासियत भी गिना दी, लेकिन बरांडेड कमपनी का एको ठो नहीं दिखाया। हमने उससे कहा कि भैया, हम 'महंगा रोए, एक बार' के सिद्धांत में विश्वास करता हूं, इसलिए तनिक बरांडेड डीवीडी पिलेयर दिखाओ। बेचारा, ऐसन उखड़ा कि हम उसके दुकान से बाहर होते-होते बचे। बोला, 'ऐसन है कि आप डीवीडी पिलेयर मांग रहे बरांडेड औरो इसमें डीवीडी चलाइएगा पायरेटेड। बराडेंड डीवीडी पिलेयर में दुनिया का सब डीवीडी चल सकता है, लेकिन पायरेटेड नहीं। आप बजार से ढाई सौ टका वाला ओरिजिनल डीवीडी तो खरीदिएगा नहीं औरो दौड़े आइएगा हमरे पास कि हमने सामान डुपलीकेट पकड़ा दिया। भैया, छोटकी-मोटकी लोकल कंपनी का कोयो डीवीडी पिलेयर ले जाइए, कैसेनो सड़ल डीवीडी लगाइएगा, झक्कास दिखेगा, चाहे ऊ ब्लू हो या हुआइट। बरांडेड चीज लेकर अचार डालिएगा का? दू हजार के इस लोकल कंपनी के डीवीडी पिल

निरमोही विदेशिया कोच

लीजिए, अभी एक लात का दर्द हम भूलबो नहीं किए थे कि दूसरा पड़ गया। एक ऊ 'भगवान' गरेग चैपल थे, जिन्होंने पहले तो इस निरीह किरकेटिया देश को सरेआम उंगली दिखाई दी, फिर टीम की ऐसन लुटिया डुबोई कि बांग्लादेश हम पर भारी पड़ गया औरो अब ई एक गराहम फोर्ड बाबू हैं, जिन्होंने आने से पहले ही देश को जुतिया दिया। बताइए, केतना उमीद से हमने 'स्वयंवर' रचा के उन्हें अपना तारणहारण नियुक्त किया था औरो केतना बेदरदी से उन्होंने हमरी उम्मीदों को मटियामेट कर दिया! कहां तो हम उनसे किरकेट खिलवाना चाहते थे औरो कहां ऊ हमरे इमोशन से खेल गए! फोर्ड बाबू, काश! आप हमरे देश के सवा अरब जनता के उम्मीदों पर ऐसन पानी फेरने से पहले एक बार सोच लिए होते। केतना निरमोही हैं आप भी? बताइए, फिक्सिंग से हम केतना नफरत करते हैं कि हमने अजहर औरो अजय जडेजा जैसन अपने स्टार पिलयर को हमेशा के लिए टीम से निकाल दिया, लेकिन आप एक 'भगवान' थे कि फिक्सिंग में आपका नाम आने के बादो हमने आपको साल भर पूजना स्वीकार किया, लेकिन आपने हमारे इमोशन की...! एतना ही नहीं, हमने आपको ई जानते हुए भी 'भगवान' माना कि आप पर घोर नसलवाद

राष्ट्रपति की कुर्सी, मंगरू की उम्मीदवारी

देश को एक अदद राष्ट्रपति चाहिए। पूरा देश आजकल उसी की खोज में व्यस्त है, लेकिन एको ठो योग्य उम्मीदवार पर सहमति नहीं बन पा रही। अब जबकि कांग्रेस, बीजेपी से लेकर बसपा तक इस नेशनल टैलेंट हंट शो में जोर आजमाइश कर रहा है, हमको लगता है कि हमरा मंगरू इस पोस्ट के लिए सबसे पकिया उम्मीदवार है। का है कि राष्ट्रपति बनने के लिए अब तक तमाम पार्टियों ने जिस-जिस टैलेंट की बात की है, अपना मंगरू उन सब पर सोलहो आना खरा उतरता है। मंगरू की सबसे बड़की खासियत ई है कि ऊ सब दिन से दबा कुचला रहा है, इसलिए ऊ बोलता बहुत कम है। ऐसन में राष्ट्रपति बनने के बाद ऊ सरकार या संसद के किसी भी ऊटपटांग हरकत के बारे में कभियो कुछो नहीं बोलेगा, इसकी गरंटी है। सोनिया को 'लाभ का पद' के दायरे से बाहर करने की तो बाते छोड़िए, अगर सरकार देश को बेचने का अध्यादेशो लेके आ जाए, तभियो ऊ कुछो नहीं कहेगा। ऐसने अगर सरकार चाहे, तो ऊ एक नहीं हजारों अफजल गुरु को फांसी की तख्ती से उतार देगा औरो सरकार का वोट बैंक मजबूत करने में पूरा मदद कर करेगा। उसकी दूसरी खासियत ई है कि ऊ निपट गंवार है, मतलब ई कि ऊ कभियो सरकारी फैसलों पर उंगली नहीं उठा

बदनाम का हुए, नाम हो गया!

वोल्फोवित्ज जी को आप जानते हैं कि नहीं? हां, हां... वही विश्व बैंक के अध्यक्ष महोदय, जिनकी कुर्सी महज इसलिए छीन ली गई, काहे कि वे प्रेम-पुजारी बन गए हैं। पता नहीं आप इस बारे में का सोचते हैं, लेकिन हमरे खयाल से तो ई बहुत बड़ा अन्याय है उस बेचारे के साथ। बताइए, जिस दुनिया में प्रेम को पूजा माना जाता हो औरो इश्क-मोहब्बत के लिए 'शहीद' हो गए महात्मा वैलंटाइन को देवता जैसन पूजा जाता हो, वहां भला किसी आदमी को अपनी प्रेमिका को प्रमोट करने का कहीं ऐसन खामियाजा भुगतना पड़े? वैसे, वोल्फोवित्ज महोदय की भी गलती है-- उनको चोंच लड़ाने का सार्वजनिक प्रदर्शन करने की का जरूरत थी? अरे भाई, इस बुढ़ापे में घी पीना ही था, तो चुपचाप कंबल ओढ़कर पीते। न किसी को आपकी गुटरगूं का पता चलता औरो न आप परेशान होते। अब बेसी काबिल बनिएगा, तो ऐसने परिणाम भुगतना होगा! सर जी, विदवान औरो बड़का एडमिनिस्ट्रेटरे होने से सब कुछ नहीं हो जाता, बहुत कुछ औरो सीखना पड़ता है। केतना बढ़िया होता, अगर आप हमरे यहां के नेतवन सब से कुछ सीख लिए होते, जो दूसरे की मेहरारू को भी अपनी बताकर सरकारी पैसा पर दुनिया भर में सैर कराते रहते ह

एक अदद पाकेटमार नेता चाहिए!

अपने देश में हर तरह के अपराध को अंजाम देने वाला नेता सब है, बस पाकेटमारों औरो सेंधमारों में से ही ऐसन प्रतिभा नहीं निकल पाया है, जो लोकसभा या विधानसभा की 'गरिमा' बढ़ा सके। ऐसन में अपने देश में समाजवाद खतरे में पड़ गया है। इसका अंदाजा हमको उस दिन हुआ, जब अखिल भारतीय जेबकतरा-सेंधमार महासंघ के राष्ट्रीय महासचिव से हमरी अचानक मुलाकात हो गई। ऊ बेचारा अपने देश के नेतवन सब से बहुते निराश है। कारण ई कि नेता सब सब तरह के कुकर्म कर रहा है, लेकिन पाकेटमारी औरो सेंधमारी की फील्ड में खुलकर अभियो सामने नहीं आ रहा। पता नहीं आप उसकी निराशा को केतना जायज मानेंगे, लेकिन हमको उससे गहरी सहानुभूति है। उन लोगों के साथ सहिए में अन्याय हुआ है। अब का है कि नेतवन सब ने हत्या, अपहरण, घूसखोरी, घपले-घोटाले जैसन तमाम अपराध को गलैमराइज कर दिया है, तो गांजा-अफीम से लेकर आदमी तक की तस्करी को इज्जत बख्स दी है... का चाकूबाजी औरो का कबूतरबाजी, सब में नेता सब नाम कमा रहे हैं औरो दाम भी, लेकिन अब तक कोयो नेता पाकेटमारी या सेंधमारी करते नहीं पकड़ाया। अब इससे बड़का अन्याय का होगा? उस राष्ट्रीय महासचिव जी का इहो मानना

उसके 'टांग उठाने' के इंतजार में...

मिसराइन जी आजकल बहुते परेशान हैं। उनकी परेशानी का कारणो कम अजीब नहीं है। दिक्कत ई है कि उसका जर्मन नसल वाला डॉगी चारों टांग जमीन पर रखकर सूसू करता है। आप कहेंगे, भाई इसमें परेशानी वाली का बात है... उसकी मरजी... ऊ कुछो करे। अब कुत्ता हुआ, तो कोयो जरूरी है कि टांग उठा के ही...? आप ऐसन कह सकते हैं, लेकिन मिसराइन जी की अपनी तकलीफ है, जो उन्हें डॉगी के टांग उठाने का बेसब्री से इंतजार करवा रही है। अब का है कि उनके पति महोदय, यानी मिसिर जी का कहना है कि जिस दिन डॉगी 'टांग उठाने' लगेगा, तो बूझना कि बच्चा जवान हो गया औरो तब ऊ यहां-वहां गंदा कर तुम्हे परेशान नहीं करेगा। वैसे, मिसराइन को डॉगी से एतनही परॉबलम नहीं है, परॉबलम औरो सब है, लेकिन मिसिर जी के कारण ऊ कुछो बोलतीं नहीं। एक दिन टेबुल पर मिसराइन को एक ठो दवाई वाला चिट्ठा दिख गया, उस पर मरीज का नाम लिखा था लियो मिसर। अब मिसराइन की समझ में ई नहीं आ रहा कि जिस मिसिर जी ने जिंदगी भर कभियो अपने सरनेम पर गर्व नहीं किया, ऊ एतना शान से कुत्ता महोदय के नाम में अपना सरनेम कैसे लगवा रहे हैं! वैसे, मिसराइन को मिसिर जी की ओर से सख्त हिदायत है कि

शहाबुद्दीन को सजा: कानून नहीं, सत्ता की जीत

राजद सांसद शहाबुद्दीन को स्पेशल कोर्ट ने अपहरण और हत्या के एक मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है। अधिकतर लोगों का मानना है कि चलिए, देर से ही सही, एक बिल्ली के गले में अंतत: घंटी तो बांध दी गई, लेकिन सवाल है कि शहाबुद्दीन जैसे बिलौटे इतने बेखौफ क्यों घूमते रहते हैं? इसका जवाब यह है कि जब तक आपकी राजनीतिक हैसियत आपको कानून के लंबे हाथों से बचाने का काम करती रहेगी, आपका इस देश में कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। शहाबुद्दीन को नौ साल पुराने मामले में यह सजा सुनाई गई है और ऐसा भी तभी मुमकिन हुआ है, जब बिहार में उनकी विरोधी पार्टियों की सरकार है। जाहिर है, जब तक बिहार में राजद की सरकार रही, शहाबुद्दीन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका, क्योंकि मामले की छानबीन करने वाली पुलिस सत्ता के सामने नतमस्तक थी और सत्ता शहाबुद्दीन के सामने। चूंकि शहाबुद्दीन को भी यह बात अच्छी तरह पता थी कि एक तो वह बाहुबली हैं और ऊपर से अल्पसंख्यक, इसलिए उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ऐसे में उन्होंने स्थिति का जमकर फायदा उठाया और वर्षों तक सिवान में समानांतर सत्ता चलाई। वैसे, शहाबुद्दीन के इस पतन का कारण बिहार में विरोधी पार्टियो

किरकेट के नाम पर दे दे बाबा

ई किरकेटिया खिलाडि़यो सब न अजीब हैं। विश्व कप से पहिले किरकेट छोड़कर ऊ विज्ञापनों में बिजी रहते थे औरो विश्व कप से बाहर हुए, तो बीसीसीआई से कुश्ती लड़ने में बिजी हो गए हैं। मतलब सब कुछ करेंगे, बस किरकेट नहीं खेलेंगे! लेकिन उनका ई किरकेट न खेलना अब उन्हीं के लिए समस्या बन गई है। खिलाडि़यों को लाइन पर लाने के लिए किरकेट बोर्ड ने उन्हें तीन से बेसी शैंपू-सर्फ बेचने से रोक दिया है। इससे अब ऊ रो रहे हैं। दिक्कत ई है कि विज्ञापन नहीं करेंगे, तो पैसा कहां से आएगा औरो जब पैसे नहीं आएगा, तो उनके सपनों के उन महलों का क्या होगा, जिनकी नींव विज्ञापनों के भरोसे ही पड़ी है! अब महेंद सिंह धोनी को लीजिए। बेचारे ने इन्हीं विज्ञापनों के बूते लंबे-चौड़े स्विमिंग पूल वाले फाइव स्टार घर का सपना देखा था। निरमाण कार्य शुरुओ हो गया था, लेकिन अब पूरा होना मुश्किल है! मिडिल क्लास फैमिली के धोनी किरकेटर नहीं होते, तो बुढ़ापे में मुश्किल से एक ठो घर खरीद पाते, लेकिन किरकेट में ऐसन चमके सपने भी करोड़ों का देखने लगे। लेकिन इस मुए विश्व कप ने सब चकनाचूर कर दिया। अब कैसे उनका फाइवस्टार घर बनेगा औरो कैसे स्विमिंग पूल,

कितने गिरे गीअर?

पिछले दिनों एड्स जागरूकता के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में हॉलिवुड एक्टर रिचर्ड गीअर और शिल्पा शेट्टी के चुंबन प्रकरण को यूं तो मोरल पुलिसिंग न करने के नाम पर खारिज किया जा सकता है, लेकिन गौर से देखें, तो यह यूं ही भुला देने वाली बात भी नहीं है। हालांकि खुद शिल्पा ने इतना कुछ होने के बावजूद इसका कोई खास विरोध नहीं किया और रिचर्ड की संस्कृति की बात कहकर वह इस मामले को ठंडा भी करना चाहती हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या इसे रिचर्ड और शिल्पा के बीच का आपसी मुद्दा मानकर छोड़ देना चाहिए या भविष्य के लिए सबक के तौर पर याद रखना चाहिए? वैसे, सवाल और भी हैं। पहली बात तो यह कि क्या रिचर्ड या शिल्पा जैसी शख्सियतों से सार्वजनिक मंच पर इतनी छिछोरी हरकत की उम्मीद की जा सकती है? दूसरी बात यह है कि क्या खुले माहौल का मतलब अभी भी यही माना जाए कि पुरुष कहीं भी अपनी मनमानी के लिए स्वतंत्र हैं? और तीसरी बात यह कि खबरिया चैनल्स इस तरह के दृश्य को घंटों दिखाकर अपने को कैसे कम गुनाहगार मान सकते हैं? गौरतलब है कि कुछ ही महीनों के अंदर यह दूसरा मौका है, जब सेलिब्रिटी स्टेटस प्राप्त दो महिलाओं के साथ उनके पुरुष मित्

न्याय पर एतना गुस्सा!

उस दिन नेताजी बहुते गुस्सा में थे। लगा उनका बस चलता, तो देश से सब ठो कोर्ट-कचहरी को उखाड़ फेंकते। बोलने लगे, 'आखिर हर चीज की एक लिमिट होती है, लेकिन ई कोर्ट है कि दिनों दिन बेकाबुए होता जा रहा है। बताइए, कभियो आरक्षण में अड़ंगा लगा देता है, तो कभियो अल्पसंख्यक की परिभाषे बदल देता है। अरे भाई, आपको जो काम दिया गया है, ऊ न कीजिए, खामखा सामाजिक न्याय में टांग काहे अड़ाते हैं... आप चोरी चकारी का मामला देखिए, मियां-बीवी का झगड़ा सुलटाइए, पॉकेटमारों को सजा दीजिए..., झूठ्ठे सरकारी फैसलों में न्याय खोजते रहते हैं! न्याय किस चिडि़या का नाम है, ई हम नेता लोग से ज्यादा आप नहीं जान सकते! अपनी औकात समझिए औरो हमरी औकात पर सवालिया निशान मत लगाइए! एतना कहते कहते नेताजी का हलक सूखने लगा। हमने उन्हें बढ़िया कंपनी का कोला पिलाया, तब जाकर ऊ तनिक ठंडा हुए, लेकिन तुरंते फिर गरमा गए, 'ई कोर्ट ने जीना हराम कर दिया है। माना कि हम सिंगुर औरो नंदीग्राम में बाजार से हार गया हूं, लेकिन कोर्ट से थोड़े हार सकता हूं। हम ईंट से ईंट बजा दूंगा।' ईंट की बात सुनकर हमने नेताजी को रोका, 'लेकिन आपने गरीबों को

कांग्रेस की बत्ती गुल!

क्या कहते हैं उसे... हां 'धो डालना'। तो बीजेपी ने भी कांग्रेस को दिल्ली के एमसीडी के चुनाव में धो डाला। धोना इस सेंस में कि खुद कांग्रेस को भी अपनी ऐसी दुर्गति की आशंका नहीं थी और न ही बीजेपी को इतनी बड़ी जीत की उम्मीद! आखिर कौन यह सोच सकता था राज्य में बिना किसी कद्दावर नेतृत्व के भी बीजेपी 164 सीटें पा लेगी और कांग्रेस 69 सीट लेकर देखती रह जाएगी! वैसे, इसे लोकतंत्र का चमत्कार और विडंबना ही कहिए कि इस जीत के लिए खुद बीजेपी भी अपनी पीठ नहीं थपथपा सकती! यह तो कहिए कि कांग्रेस ने दिल्ली की इतनी दुर्गति ही कर दी थी कि मजबूरन लोगों को बीजेपी को चुनना पड़ा। वरना बीजेपी कोई सुधरी पार्टी कतई नहीं है कि उसे एमसीडी की जिम्मेदारी सौंप कर जनता निश्चिंत हो जाए। तमाम लोग यह मानते हैं कि कांग्रेस को सीलिंग और अवैध निर्माणों के तोड़फोड़ की सजा मिली, लेकिन यह हार की एकमात्र और सबसे बड़ी वजह कतई नहीं है। कांग्रेस की इस दुर्गति के लिए जो सबसे बड़ा फैक्टर जिम्मेदार है, वह है कमर तोड़ महंगाई। दाल, चावल, सब्जियों और घरेलू चीजों के दाम हाल के महीनों में इतनी तेजी से बढ़े कि लोगों को घर का बजट देखकर

ई तो कुछ बेसिए हो गया

आपने ऊ सुना कि नहीं कि एक सर्वे में दिल्ली को 'क्वालिटी आफ लिविंग' के पैमाना पर 215 देशों में 148वां स्थान मिला है औरो इस बात पर तमाम लोग खुशियां मना रहे हैं। लोगों का तो नहीं पता, लेकिन हमरे लिए ई फैसला कर पाना मुश्किल हो रहा है कि इस खबर पर हंसूं या रोऊं। हमरे लिए ई गर्व की बात इसलिए नहीं, काहे कि हमको इसकी बुनियादे बहुत कमजोर दिखती है। सबसे पहली बात तो ई कि दिल्ली की सारी चमक-दमक दस परसेंट लोगों के बल पर है औरो अगर नब्बे परसेंट लोग बस किसी तरह जिंदगी काट रहे हों, तो आप किसी शहर को ऐसन तमगा नहीं दे सकते। दूसरी बात ई कि इन दस परसेंट लोग में से भी 'पसीने की कमाई' बहुत कम लोगों के पास है औरो उन्हीं लोगों के चलते बाकी नब्बे परसेंट दिल्ली झुग्गी बनकर रह गई है। दरअसल, भरष्टाचार की अजीब महिमा ई है कि इससे पावर औरो पैसे वाले लोगों का तो जीवनस्तर सुधरता चला जाता है, लेकिन यही सुधरता जीवनस्तर बाकियों के लिए अभिशाप बन जाता है। आखिर जोंक दूसरे जीवों का खून पीकर ही तो मोटे होते हैं। तो अगर जोंकों के भरोसे दिल्ली का लिविंग स्डैंडर्ड किसी सर्वे में हाई दिखता हो, तो हमरे खयाल से किसी

गम और भी हैं जमाने में किरकेट के सिवा

भारत किरकेटिया विश्व कप से पहले ही राउंड में बाहर हुआ नहीं कि लगा जैसन देश में करोड़ों एबोरशन एक साथ हो गया हो। हर कोयो स्यापा मना रहा है, जैसे यह विश्व कप न होकर विश्व युद्ध हो औरो बांग्लादेश से हारकर देश अब बस गुलामी के जंजीर में जकड़ा जाने वाला हो। सच बताऊं, तो किरकेट के लिए लोगों को एतना परेशान देखकर हम कन्फ्यूजिया गया हूं कि ई भारत ही है या हम किसी दूसरे मुलुक में आ गया हूं! हमरे कन्फ्यूजन की वजह ई है कि एके दिन में हमको अपना देश पलटता हुआ लग रहा है। आज किरकेटरों को पानी पी-पीकर गरियाने वाला ई मुलुक, वही मुलुक है, जिसकी जनता सैकड़ों निकम्मे-नाकारे नेताओं को दशकों से झेलती आ रही है, लेकिन उफ तक नहीं कहती! दो रोटी को तरशने वाला आदमी इसी देश में नेता बनते ही करोड़पति-अरबपति बन जाता है, लेकिन जनता उसको भरष्ट नहीं मानती औरो चुनावों में भारी बहुमत से जिताती रहती है। लालूओं, मुलायमों, बादलों, चौटालों, मायावतियों, जयललिताओं ... के इस देश में नेताओं की काली कमाई पर सिर्फ उनके विरोधियों को ऐतराज रहता है, समर्थकों को नहीं! यह वही देश है, जिसकी जनता धरना-परदरशन करना भूल गई है। पांच रुपया किलो

जस्ट कूल ड्यूड, कुछ पॉजिटिव तो ढूंढ

भारत विश्व कप में पिट गया और तमाम लोग परेशान हो गए। रात भर जगने का सिला आखिर टीम इंडिया ने क्या दिया-- टीम का बंडल बंध गया। खैर, आप परेशान मत होइए और नकारात्मक सोच से बचने के लिए कुछ पॉजिटिव सोचिए। आखिर हर चीज का एक सकारात्मक पक्ष तो होता ही है ना। मान लीजिए कि जो होना था, वह हो गया। आइए, हम यहां आपको इस सदमे से उबरने में मददगार कुछ पॉजिटिव बातें बताते हैं। धूप में भी पकते हैं बाल जी हां, अगर आप युवा हैं, तो मान लीजिए कि इस हार ने आपको यही मैसेज दिया है। और क्रिकेट के 'अंध भक्त' होने के कारण आपको इस बात में पूरा विश्वास भी करना चाहिए कि बाल अनुभव बढ़ने के साथ ही नहीं पकते! ऐसे में अगर अब आपको कोई यह कहकर घुड़की दे कि 'मैंने अपने बाल धूप में नहीं पकाए हैं और मेरे अनुभव के सामने तुम कहीं नहीं ठहरते', तो अब आपको उसके प्रभामंडल से घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि बांग्लादेश और आयरलैंड का उदाहरण उसके सामने रखने की जरूरत है। सच मानिए, भारत की हार ने आपको एक बड़ा उदाहरण दिया है, यह साबित करने का कि अनुभव ही सब कुछ नहीं होता, आज के बच्चे 'सीखने' से पहले ही काफी कुछ सीख चु

आप तो झूठ्ठे सेंटिया गए...

हो गया न, जिसका हमको डर था। हम पहिलिये न कहते थे वूल्मर जी आपसे कि बेकार का मगजमारी करने यहां मत आइए, लेकिन आप थे कि मानने को तैयारे नहीं थे। पता नहीं आपको ई कैसे लगता था कि पाकिस्तान में प्रतिभा की कमी नहीं है, बस तराशने वाला चाहिए, ऊ विश्वविजेता बन जाएगा। अरे भाई साहब, ई भारत- पाकिस्तान है, इनको भगवानो नहीं सुधार सकता, फिर आप तो साधारण इनसान थे। विश्वास नहीं था, तो अपने बिरादर चैपल भैय्या से पूछ लेते कि प्रोफेशनलिज्म दिखाना इस इलाके में केतना खतरनाक होता है। दू साल हो गए, बेचारे चैपल बाबू एको ठो युवा प्रतिभा नहीं तलाश सके। औरो भारत अभियो उसी सचिन, द्रविड़, गांगुली व कुंबले के भरोसे विश्व कप जीतने की फिराक में है, जिनको उन्होंने बूढ़ा घोषित कर दिया था। आपको का लगता है कि भारत में प्रतिभा की कमी है? जी नहीं, प्रतिभा की यहां कौनो कमी नहीं है, दिक्कत बस ई है कि यहां उसको पनपने नहीं दिया जाता। प्रतिभा यहां कुछ लोगों की बपौती होती है औरो उनके बिना भी किसी का काम चल जाए, यह उनको गंवारा नहीं। अब देखिए न उस नेताजी को, राजनीति के मैदान में उसका अभी दूध का दांतों नहीं टूटा है, लेकिन दावा ई है क

मंतरी जी के 'गरीब'

हमरे लिए ई सवाल हमेशा से भेजा घुमाने वाला रहा है कि आखिर गरीब कौन है? बच्चा में जब ई सवाल हम मास्टर जी से पूछते थे, तो रवि मुखिया, सुकन तांती सब का नाम गिनाकर ऊ परिभाषा सोचने का काम हम पर छोड़ देते थे। पराइमरी एजुकेशन में इससे बेसी नहीं बताया गया। हाई इस्कूल में हमको बताया गया कि जिसको दू जून रोटी खाने को मिल जाए, समझो ऊ गरीब नहीं है। मतलब तभियो हमको गरीब की परिभाषा नहीं बताई गई। कॉलेज में शिक्षा व्यवस्था उदार हुई, तो हमको बताया गया कि यूएन एक निश्चित डॉलर से कम की रोजाना आमदनी वालों को गरीब मानता है। अब डॉलर की बात तो हमरी समझ में कभियो नहीं आई, लेकिन सरकार ने भारतीय टका में गरीब 'न' होने की जो 'औकात' बताई थी, ऊ हमरे आसपास के सौ लोगों में से दस की भी नहीं थी। खैर, अब भला हो उस नेताजी का, जिन्होंने गरीब रथ चलाकर हमको गरीबी की परिभाषा समझाने में मदद की है! गरीब रथ मंतरी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है औरो सरकारी प्रोजेक्ट है, तो जाहिर है ई रेल भी गरीब की सरकारी परिभाषा पर ही बनी होगी। तो आइए, हम गरीब रथ को देखकर भारत के गरीबों को समझने की कोशिश करते हैं। बॉगी में घुसते ही जो गर

बॉलिवुड़िया होली का लाइव प्रसारण

बॉलिवुड की होली खास होती है, आखिर वह सपनों की दुनिया जो ठहरी। तो लीजिए, आज हम आपको वहीं लिए चलते हैं, जहां होली का हुड़दंग शबाब पर है। यह लाइव टेलिकास्ट सिर्फ आपके लिए है, बिल्कुल एक्सक्लूसिव। चूंकि इसमें कुछ एडल्ट कंटेट भी हैं, इसलिए इसे सेंसर बोर्ड ने 'ए' सर्टिफिकेट जारी किया है। जाहिर है, जिन लड़कों की मूंछें नहीं उगी हैं या जिन लड़कियों ने अब तक गुड़ियों के साथ सोना बंद नहीं किया है, उनके लिए यह लेख निषिद्ध है: आज समय हमारे पास भी कम है, इसलिए बिना कोई बाउंड्री बांधे हम आपको सीधे मुंबई लिए चलते हैं। यह झुग्गियों के बीच में गगन चूमती जो इमारतें आपको दिखाई दे रही हैं, इन्हें देखकर आप यह तो समझ ही गए होंगे कि यह अपने देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई ही है। दरअसल, तमाम राजधानियों में झुग्गियों की बहुतायत उस धर्म-पताका की तरह होती है, जो हमेशा यह भान कराती रहती है कि यहां लोगों के पास समानता का अधिकार है। आखिर किस देश में गरीब अमीरों के बराबर में अपनी झुग्गियां बना पाते हैं? खैर, इस बार बॉलिवुड से जुड़ी चार होली हो रही है- अमिताभ की होली, शाहरुख की होली, बॉलिवुड के वंचितों से बाजा